बशीर बद्र और कुंअर बेचैन को पढ़ेंगे छात्र
लखनऊ। चौधरी चरण सिंह यूनिवर्सिटी मेरठ के छात्र-छात्राएं अब उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ, योगगुरू बाबा रामदेव, बशीर बद्र, कुंवर बेचैन, जग्गी वासुदेव जैसी नामचीन हस्तियों को भी पढ़ेंगे। इसके लिए यूनिवर्सिटी के बोर्ड ऑफ स्टडीज ने इन हस्तियों की किताबों को पाठ्यक्रम में शामिल करने का फैसला किया है।
यूनिवर्सिटी की ओर से गठित बोर्ड ऑफ स्टडीज द्वारा नए पाठ्यक्रम को मंजूरी दे दी गयी। नए पाठ्यक्रम के मुताबिक यूपी के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ द्वारा लिखी पुस्तक हठयोग की पढ़ाई होगी। इस पुस्तक में योगी आदित्यनाथ ने हठ योग का स्वरूप व साधना के बारे में लिखा है। योगी की लिखी गई इस किताब को गोरखनाथ ट्रस्ट की ओर से प्रकाशित कराया गया है। इसके अलावा योगगुरू बाबा रामदेव की योग साधना एवं योग चिकित्सा रहस्य पुस्तक को भी पढ़यक्रम में शामिल किया गया है। इन पुस्तकों को बीए दर्शनशास्त्र के पाठ्यक्रम में शामिल किया गया है। वहीं बीए दर्शनशास्त्र में अब योग प्रैक्टिकल और थ्योरी दोनों की पढ़ाई होगी। नए पाठ्यक्रम के मुताबिक हिंदी साहित्य में उर्दू गीतकार कुंवर बेचैन और शायर बशीर बद्र को पढ़ने का मौका मिलेगा. इसके अलावा आईआईटीयन मोटिवेशनल गुरु सदगुरु जग्गी वासुदेव की ईशा प्रिया साधना को भी रखा गया है। फिजिक्स में आर्य भट्ट को शामिल किया गया है। इन्हें बीएससी के फर्स्ट ईयर के छात्र पढ़ सकेंगे। यूनिवर्सिटी के कंवीनर डॉ. डीएन सिंह ने बताया कि बीएससी के कोर्स में भी बदलाव किया गया है। अब भारतीय गणितज्ञों जैसे आर्यभट्ट, भास्कराचार्य, लीलावती, रामानुजन, माधवाचार्य, स्वामी कृष्णतीर्थ के योगदान को भी पढ़ाया जाएगा।
यह बहुत अच्छी बात है। हिन्दी साहित्य का विस्तार होगा। अयोध्या में 15 फरवरी 1935 को पैदा हुए बशीर बद्र ने अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी से शिक्षा प्राप्त की। कहा जाता है कि उन्होंने 7 बरस की उम्र से ही शेरो-शायरी शुरू कर दी थी। उन्हें 1999 में पद्मश्री और उर्दू के साहित्य अकादमी पुरस्कार से नवाजा गया। उनकी कविताएं और शेर अंग्रेजी और फ्रेंच में भी अनुवाद किए गए हैं।
कोई हाथ भी न मिलाएगा, जो गले मिलोगे तपाक से,
ये नए मिजाज का शहर है, जरा फासले से मिला करो।
उजाले अपनी यादों के हमारे साथ रहने दो,
न जाने किस गली में जिंदगी की शाम हो जाए।
सर झुकाओगे तो पत्थर देवता हो जायेगा,
इतना मत चाहो उसे वो बे-वफा हो जायेगा।
हम भी दरिया हैं हमें अपना हुनर मालूम है,
जिस तरफ भी चल पड़ेंगे रास्ता हो जायेगा।
दुश्मनी जम कर करो लेकिन ये गुंजाइश रहे
जब कभी हम दोस्त हो जायें तो शर्मिंदा न हों।
लोग टूट जाते हैं एक घर बनाने में,
तुम तरस नहीं खाते बस्तियां जलाने में।
तमाम रिश्तों को मैं घर पे छोड़ आया था,
फिर उस के बाद मुझे कोई अजनबी न मिला।
हिंदी गजल और गीत के महत्वपूर्ण हस्ताक्षर कुंवर बेचैन का जन्म उत्तर प्रदेश के मुरादाबाद जिले के उमरी गांव में हुआ था। मुरादाबाद से उनका विशेष लगाव था। चंदौसी के मेला गणेश चैथ और मुरादाबाद के जिगर मंच और कलेक्ट्रेट मैदान के कवि सम्मेलनों और मुशायरों में वह हर वर्ष आते थे। कुंवर बेचैन साहब ने कई विधाओं में साहित्य सृजन किया। कवितायें भी लिखीं, गजल, गीत और उपन्यास भी लिखे। बेचैन उनका तखल्लुस है। असल में उनका नाम डॉ. कुंवर बहादुर सक्सेना था।
बेचैन जी गाजियाबाद के एम.एम.एच. महाविद्यालय में हिन्दी विभागाध्यक्ष रहे।
उनका नाम सबसे बड़े गीतकारों और शायरों में शुमार किया जाता था। उनके निधन से साहित्य जगत को एक बड़ी क्षति पहुंची है। व्यवहार से सहज, वाणी से मृदु इस रचनाकार को सुनना-पढ़ना अपने आप में अनोखा अनुभव है।
उनकी रचनाओं में पिन बहुत सारे, भीतर साँकलः बाहर साँकल, उर्वशी हो तुम, झुलसो मत मोरपंख, एक दीप चैमुखी, नदी पसीने की, दिन दिवंगत हुए आदि हैं।
बेचैन जी लिखते हैं-
जिस मृग पर कस्तूरी है
मिलना और बिछुड़ना दोनों
जीवन की मजबूरी है।
उतने ही हम पास रहेंगे,
जितनी हम में दूरी है।
शाखों से फूलों की बिछुड़न
फूलों से पंखुड़ियों की
आंखों से आंसू की बिछुड़न
होंठों से बांसुरियों की
तट से नव लहरों की बिछुड़न
पनघट से गागरियों की
सागर से बादल की बिछुड़न
बादल से बिजुरियों की
जंगल जंगल भटकेगा ही
जिस मृग पर कस्तूरी है।
उतने ही हम पास रहेंगे,
जितनी हम में दूरी है।
माना रोज बिछुड़ते हैं
धरती पर आते हैं पंछी
चाहे ऊंचा उड़ते हैं
सीधे सादे रस्ते भी तो
कहीं कहीं पर मुड़ते हैं
अगर हृदय में प्यार रहे तो
टूट टूटकर जुड़ते हैं
हमने देखा है बिछुड़ों को
मिलना बहुत जरूरी है।
उतने ही हम पास रहेंगे,
जितनी हम में दूरी है।
उनकी एक गजल है-
देखते ही देखते पहलू बदल जाती है क्यूं
नींद मेरी आंखों में आते ही जल जाती है क्यूं
हाथ में 'शाकुंतलम' है और मन में प्रश्न है
याद की मछली अंगूठी को निगल जाती है क्यूं
ऐ मुहब्बत, तू तो मेरे मन में खिलता फूल है
तुझसे भी उम्मीद की तितली फिसल जाती है क्यूं
इक सुहानी शाम मुझको भी मिले, चाहा अगर
आने से पहले ही फिर वो शाम ढल जाती है क्यूं
ये सुना था मौत पीछा कर रही है हर घड़ी
जिन्दगी से मौत फिर आगे निकल जाती है क्यूं
मेरे होठों पर हंसी आते ही गालों पर मेरे
आंसुओं की एक सन्टी सी उछल जाती है क्यूं
आंसुओं से जब भी चेहरे को निखारा ऐ 'कुंअर'
जिन्दगी चुपके से आकर धूल मल जाती है क्यूं
देश के जाने-माने कवि व गीतकार डॉ. कुंअर बेचैन को क्रूर कोरोना वायरस ने इसी वर्ष 29 अप्रैल को छीन लिया। कथाकार सूरज प्रकाश का कहना है कि कवि सम्मेलन में कुंअर बेचैन का गीत सुनकर जीवन से निराश एक व्यक्ति इतना प्रेरित हुआ कि उसने आत्महत्या का अपना इरादा त्याग दिया था। (हिफी)