महिन्दा राजपक्षे पर किसका दबाव

भारत ने स्वतंत्रता के बाद अपने सभी पड़ोसियों से मधुर रिश्ते कायम करने का प्रयास किया है। एक पड़ोसी को छोड़कर बाकी सबसे रिश्ते अच्छे भी हैं।

Update: 2021-02-06 00:45 GMT

नई दिल्ली। लंका के राजा रावण ने सीता माता का अपहरण किया था और भगवान राम ने वानरों, रीछों और अन्य वनवासियों को एकत्रित करके रावण का वध किया और रावण के भाई विभीषण को वहां का राजपाट सौंप दिया था। इस प्रकार अयोध्या अर्थात भारत से लंका की पहली दोस्ती हुई थी। यह युगों पुरानी घटना है और भारत व श्रीलंका दोनों ने तभी से मधुर रिश्ते कायम रखे हैं। भारत के महात्मा गौतम बुद्ध ने शांति का मार्ग दिखाया। बौद्ध धर्म को कयी देशों ने अपनाया। इनमें श्रीलंका भी शामिल है। भारत ने स्वतंत्रता के बाद अपने सभी पड़ोसियों से मधुर रिश्ते कायम करने का प्रयास किया है। एक पड़ोसी को छोड़कर बाकी सबसे रिश्ते अच्छे भी हैं।

श्रीलंका में नई सरकार बनी और वहां के प्रधानमंत्री महिंदा राजपक्षे ने दोनों देशों के सुखद भविष्य का आश्वासन भी दिया था लेकिन अभी कुछ दिनों पूर्व श्रीलंका ने भारत को रणनीतिक डील के मोर्चे पर बड़ा झटका दे दिया है। दरअसल, भारत और जापान के साथ मिलकर श्रीलंका ने एक बड़ा पोर्ट टर्मिनल बनाने के समझौते पर हस्ताक्षर किया था। अब बताया जा रहा है कि देश में एक सप्ताह से चल रहे विपक्षी दलों के विरोध प्रदर्शन से आजिज आकर प्रधानमंत्री महिंदा राजपक्षे ने डील को रद्द करने की घोषणा कर दी है।

हिंद महासागर में अपनी मजबूत उपस्थिति दर्ज कराने की कोशिश कर रहे भारत के लिए यह झटका माना जा रहा है। हिंद महासागर में चीन की चाल को नाकाम करने की कोशिश में जुटे अमेरिका को भी श्रीलंका में बड़ा झटका लगा है। इसलिए यह भी कहा जा रहा है कि राजपक्षे पर चीन का दबाव पड रहा था। अमेरिका ने श्रीलंका की उदासीनता के कारण 480 मिलियन डॉलर के मिलेनियम डेवलपमेंट असिस्टेंस प्रोग्राम को बंद करने का फैसला किया है। इसे चीन की बड़ी रणनीतिक जीत माना जा रहा है, क्योंकि अक्टूबर में अमेरिकी विदेश मंत्री माइक पोम्पियो ने श्रीलंका का दौरा कर उसे इस समझौते के लिए मनाने का प्रयास किया था।अपनी कोलंबो यात्रा के दौरान अमेरिकी विदेश मंत्री ने गोटबाया राजपक्षे सरकार से मिलेनियम चैलेंज को ऑपरेशन समझौते पर हस्ताक्षर करने के लिए दबाव बनाया था। जब श्रीलंका ने इसे साइन करने में आनाकानी दिखाई तो पोम्पियो ने गोटबाया प्रशासन से साफ शब्दों में चीन या अमेरिका में से किसी एक को चुनने को कहा था। उनके इसी बयान के बाद चीन ने पोम्पियो की यात्रा पर कड़ा विरोध भी जताया था।


श्रीलंका ने भारत और जापान के साथ एक समझौते के तहत रणनीतिक दृष्टि से महत्वपूर्ण ईस्ट कंटेनर टर्मिनल (ईसीटी) बनाने का फैसला किया था। इस डील में टर्मिनल का 49 फीसदी हिस्सा भारत और जापान के पास होता। श्रीलंका पोर्ट अथॉरिटी के पास इसमें 51 फीसदी का हिस्सा होता। श्रीलंका ने कहा था कि वह वेस्ट कंटेनर टर्मिनल का निर्माण भारत और जापान के साथ मिलकर करेगा। श्रीलंका के भारत और जापान के साथ इस समझौते का कोलंबो पोर्ट ट्रेड यूनियंस विरोध कर रहे थे। यूनियंस की मांग थी कि ईसीटी पर पूरी तरह से श्रीलंका पोर्ट का अधिकार हो यानी 100 फीसदी हिस्सा उसके जिम्मे हो। श्रीलंका की 23 ट्रेड यूनियंस ने पोर्ट डील का विरोध किया था। यूनियंस का आरोप था कि भारत के अडाणी समूह के साथ ईसीटी समझौता सही नहीं है। अडाणी समूह का नाम सामने आने से भारत में भी विपक्षी दल हंगामा कर सकते हैं।

इस समझौते का विरोध कर रहे ज्यादातर यूनियंस सत्तारूढ़ श्रीलंका पीपुल्स पार्टी (एसएलपीपी) से जुड़े हुए हैं। उनके विरोध के बाद सरकार इस डील पर आगे नहीं बढ़ रही थी।

श्रीलंका में भारतीय हाई कमीशन ने कहा था कि भारत को उम्मीद है कि यह समझौता समय पर पूरा होगा। ध्यान रहे 2019 में इस डील पर हस्ताक्षर हुए थे। श्रीलंका की कैबिनेट ने इस डील को तीन महीने पहले हरी झंडी दी थी लेकिन इस डील का श्रीलंका के ट्रेड यूनियंस और विपक्षी पार्टियों द्वारा विरोध किया जा रहा था। वे इस डील को रोकने की मांग कर रहे थे।

पड़ोसी चीन के मुकाबले भारत ने भी समुद्र में बड़ी बढ़त बनाने के लिए श्रीलंका के साथ यह डील की थी। अब श्रीलंका का इस समझौते को रद्द करना भारत के लिए एक रणनीतिक झटका माना जा रहा है।

चीन श्रीलंका को अपनी महत्वाकांक्षी योजना बेल्ट एंड रोड का अहम किरदार मानता रहा है। ड्रैगन ने पिछले दशक में श्रीलंका की कई अहम परियोजनाओं के लिए अरबों डॉलर का लोन दिया था। हालांकि, विशेषज्ञों का कहना है कि श्रीलंका को चीन द्वारा दिए गए लोन से ज्यादा लाभ नहीं होने वाला है। श्रीलंका को इसको वापस करने में दिक्कतों का सामना करना पड़ेगा।

श्रीलंकाई पीएम महिंदा राजपक्षे के साथ बैठक के बाद कोलंबो बंदरगाह के श्रमिकों ने व्यस्ततम बंदरगाह के 'कंटेनर टर्मिनल' का विकास रोकने के लिए भारतीय दबाव के खिलाफ जारी विरोध प्रदर्शन को खत्म कर दिया था। श्रमिकों ने कहा था कि यदि सरकार किसी अन्य देश को ईस्टर्न कंटेनर टर्मिनल (ईसीटी) बनाने की मंजूरी देती है तो वे अनिश्चितकालीन हड़ताल पर चले जाएंगे।

श्रीलंका की पूर्ववर्ती सिरीसेना सरकार ने ईसीटी को विकसित करने के लिए त्रिपक्षीय प्रयास के तहत भारत और जापान के साथ सहयोग ज्ञापन (एमओसी) पर हस्ताक्षर किए थे। ईसीटी 50 करोड़ डॉलर के चीन संचालित कोलंबो इंटरनेशनल कंटेनर टर्मिनल (सीआईसीटी) के पास मौजूद है। एमओसी पिछले साल पूरा हो गया था लेकिन टर्मिनल विकास के लिए औपचारिक समझौते पर हस्ताक्षर बाकी है। श्रमिकों के विभिन्न संगठन सरकार पर एमओसी को छोड़ने और टर्मिनल को सौ फीसदी श्रीलंकाई उद्यम के रूप में विकसित करने के लिए दबाव डाल रहे थे। श्रमिक संगठन के नेता शमाल सुमनार्तने ने पीएम के हस्तक्षेप का शुक्रिया अदा किया। प्रधानमंत्री कार्यालय ने कहा कि राजपक्षे ने श्रमिक संगठनों के साथ दक्षिण में स्थित अपने घर पर बातचीत की। बंदरगाह के श्रमिकों ने विरोध प्रदर्शन करते हुए अधिकारियों से अपील की थी कि वे नए आयातित गैंट्री क्रन को ईसीटी पर लगाएं। प्रदर्शनकारियों की यह मांग भारत और जापान के साथ हुए समझौते को रोकने की थी। इससे पहले पीएम महिंदा राजपक्षे ने कहा था कि 'ईस्टर्न कंटेनर टर्मिनल' (ईसीटी) को भारत को सौंपने के बारे में अभी तक कोई अंतिम निर्णय नहीं लिया गया है।

भारत के इस प्रोजक्ट को हंबनटोटा पोर्ट पर चीन की मौजूदगी की काट के रूप में देखा गया था। महिंदा राजपक्षे ने कैबिनेट की बैठक के बाद बताया कि अब ईस्ट कंटेनर टर्मिनल का संचालन श्रीलंका पोर्ट्स अथॉरिटी अपने दम पर करेगी। वहीं, इस बैठक में फैसला लिया गया है कि अब वेस्ट टर्मिनल को भारत और जापान के साथ एक पब्लिक प्राइवेट पार्टनरशिप के रूप में विकसित किया जाएगा। भारत ने श्रीलंका सरकार के इस फैसले के खिलाफ कड़ी प्रतिक्रिया दी है। भारत ने कहा कि मौजूदा त्रिपक्षीय समझौते को लेकर श्रीलंका को एकतरफा कोई फैसला नहीं लेना चाहिए। माना जा रहा है कि श्रीलंका यह सब चीन के दबाव में कर रहा है क्योंकि आर्थिक संकट में फंसे देश को चीन 50 करोड़ डॉलर का कर्ज दे रहा है।

भारत ने भी कुछ दिन पहलेे ही नेबरहुड फर्स्ट नीति के तहत श्रीलंका को कोविशील्ड वैक्सीन की 5 लाख डोज फ्री में दी थी। श्रीलंका के राष्ट्रपति गोटबाया राजपक्षे ने भारत की उदारता के लिए पीएम मोदी और भारत का आभार भी जताया था। भारत अपने पड़ोसी पर एहसान नहीं जताता लेकिन सहयोग की अपेक्षा तो रखता ही है। (हिफी)

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