लाख टके का सवाल- इस सीट पर क्या टूट सकेगा सपा का तिलिस्म
दिलचस्प होगा कि सपा उम्मीदवार लकी यादव पार्टी के लिये कितने भाग्यशाली साबित होंगे
जौनपुर। उत्तर प्रदेश में जौनपुर की मल्हनी विधानसभा में जीत की हैट्रिक बना चुकी समाजवादी पार्टी (सपा) का तिलिस्म तोड़ने के लिये प्रबल प्रतिद्धंदी निर्दलीय धनंजय सिंह के अलावा भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) और बहुजन समाज पार्टी (बसपा) ने कमर कस ली है, ऐसे में देखना दिलचस्प होगा कि सपा उम्मीदवार लकी यादव पार्टी के लिये कितने भाग्यशाली साबित होंगे।
पूर्वी उत्तर प्रदेश की राजनीति में खासा दखल रखने वाले पूर्व सांसद धनंजय सिंह मल्हनी विधानसभा चुनाव में एक बार फिर सपा उम्मीदवार को चुनौती देंगे हालांकि हर बार की तरह भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) और बहुजन समाज पार्टी (बसपा) के उम्मीदवार न सिर्फ धनंजय की राह में मुश्किलें खड़ी करेंगे बल्कि सपा का वर्चस्व तोड़ कर इस सीट को अपने पाले में करने की हर मुमकिन कोशिश करेंगी।
जिला पंचायत चुनाव में धनंजय सिंह की पत्नी श्रीकला धनंजय सिंह को मिली सफलता के बाद अब कयास लगाए जा रहे हैं कि अपने पुराने प्रतिद्वंदी पारसनाथ यादव के निधन के बाद इस बार धनंजय मल्हनी विधानसभा की सीट अपने कब्जे में लेने की पुरजोर कोशिश करेंगे हालांकि उनके लिए यह राह इतनी आसान नहीं है। 2012 में अस्तित्व में आयी मल्हनी विधानसभा पर सपा दो विधानसभा चुनाव और एक उपचुनाव के साथ जीत की हैट्रिक लगा चुकी है। धनंजय इन तीनो चुनाव में दूसरे नम्बर पर रहे। राजनीति के जानकारों का तर्क है कि धनंजय की जीत में भाजपा और बसपा हमेशा रोड़ा बन कर खड़ी हुयी और यही वजह सपा की मुश्किलें आसान करने की वजह बनी।
2012 से पहले रारी विधानसभा में बसपा के कोर वोटर के मिल जाने से धनंजय सिंह की इस क्षेत्र में तूती बोलती थी। राजनीतिक पंडितों की मानें तो यदि यहां भाजपा या बसपा इस सीट पर अपना प्रत्याशी ही ना उतारे तो निश्चित ही सपा का यह किला पर धनंजय फतह कर सकते हैं, दूसरी ओर यदि धनंजय सिंह इस चुनाव में खुद को बाहर कर लें तो भाजपा व बसपा के लिये शायद कुछ जीत के आसार बन सकते हैं।
नए परिसीमन के बाद से जिले के मल्हनी विधानसभा सीट का सृजन वर्ष 2012 में हुआ, तब से लेकर अब तक हुए तीन बार के चुनाव में हर बार समाजवादी पार्टी का ही कब्जा रहा है। इस सीट से लगातार दो बार विधायक रहे पूर्व कैबिनेट मंत्री पारसनाथ यादव की मौत के बाद जनता ने उनके बेटे लकी यादव को अपना विधायक चुना , लेकिन अबकी सपा के लिए राह आसान नजर नहीं आ रही है।
वर्ष 2012 के पहले यह विधानसभा सीट रारी के नाम से जानी जाती थी। यहां के चुनावी इतिहास पर नजर डालें तो लगातार छह बार यानी साल 1952, 1957, 1969, 1978, 1980 व 1989 कांग्रेस ने जीत दर्ज की थी। 2012 में यह सीट नए परिसीमन के बाद अस्तित्व में आई और मल्हनी विधानसभा क्षेत्र के नाम से जानी जाने लगी। सिकरारा, बक्शा और करंजाकला ब्लॉक के अधिसंख्य और सिरकोनी ब्लॉक के कुछ हिस्सों को मिलाकर इस विधानसभा क्षेत्र का गठन हुआ है।
2012 में इस सीट पर पहली बार चुनाव हुआ तो सपा के पारसनाथ यादव ने रिकार्ड 81602 वोट पाकर जीते थे। उन्होंने धनंजय सिंह की पूर्व पत्नी निर्दल उम्मीदवार डा. जागृति सिंह को 31502 वोटों के अंतर से हराया था। 2017 में सपा के पारसनाथ यादव को हराने के लिए निषाद पार्टी से बाहुबली पूर्व सांसद धनंजय सिंह मैदान में उतरे थे, लेकिन उन्हें भी हार का सामना करना पड़ा था। कोरोना काल में पारसनाथ यादव के निधन के बाद साल 2020 में उपचुनाव हुआ। सपा ने उनके बेटे लकी यादव को आगे लाया जिन्होंने इस सीट पर सपा के जीत की हैट्रिक बनवाई हालांकि इस उपचुनाव में कांटे का मुकाबला देखने को मिला था, जिसमें सपा के लकी यादव 73462 मत पाकर विधायक बने थे, जबकि पूर्व सांसद धनंजय सिंह निर्दल प्रत्याशी के तौर पर मैदान में थे और उन्हें 68,838 मिले थे। वहीं भाजपा के मनोज सिंह 28860 और बसपा के जय प्रकाश दुबे 25180 मत पाए थे।
इस बार यहां मुकाबला काफी दिलचस्प होने की उम्मीद है। पूर्व सांसद धनंजय सिंह का चुनाव लड़ना तय हो गया है। वहीं, सीटिंग विधायक लकी यादव भी जनता के बीच जाकर प्रचार-प्रसार में जुटे हुए हैं। इस वीआईपी सीट को हर हाल में जीतने को लेकर बसपा, भाजपा, कांग्रेस, आप समेत अन्य सभी दल रणनीति तैयार करने में लगे हुए हैं।लेकिन असली जीत किसे नसीब होगी वह तो भाजपा व बसपा के टिकट की घोषणा से भी समझ आ सकता है।