BJP का यूपी में राज्यसभा गणित
राजनीति को समझना आसान नहीं होता है। उत्तर प्रदेश में राज्यसभा के चुनाव होने हैं। भाजपा के पास जितने विधायक हैं
लखनऊ। राजनीति को समझना आसान नहीं होता है। उत्तर प्रदेश में राज्यसभा के चुनाव होने हैं। भाजपा के पास जितने विधायक हैं, उसके आधार पर पार्टी अपने नौ सदस्य राज्यसभा में भेज सकती थी लेकिन उसने सिर्फ 8 प्रत्याशी मैदान में उतारे हैं। उत्तर प्रदेश में मौजूदा विधानसभा में 395 सदस्य हैं हालांकि प्रदेश की 403 विधायकों वाली विधानसभा है। यहां पर 8 सीटें खाली है। इनमें से 7 पर उपचुनाव हो रहे हैं। विधानसभा की मौजूदा स्थिति के अनुसार नवम्बर में होने वाले राज्यसभा चुनाव में जीत के लिए हर सदस्य को करीब 36 वोट चाहिए। भाजपा के पास 306 विधायक हैं जबकि 9 अपना दल और 3 निर्दलीय विधायकों का समर्थन हासिल है। इसके साथ ही समाजवादी पार्टी के पास 48, कांग्रेस के पास सात और बसपा के पास 18 विधायक है। ओमप्रकाश राजभर की पार्टी के पास भी 4 विधायक हैं। इस गणित से सपा को भी एक सदस्य राज्यसभा में भेजने का अवसर है लेकिन बसपा ने भी रामजी गौतम को राज्यसभा चुनाव मैदान में भेजकर लोगों को कयास लगाने के लिए मजबूर कर दिया है। बसपा को किसकी मदद मिलेगी, यही चर्चा का विषय है। सपा ने प्रो। रामगोपाल यादव को प्रत्याशी बनाया है। बसपा को भाजपा अथवा कांग्रेस का समर्थन मिल सकता है।
उत्तर प्रदेश में राज्यसभा की 10 सीटों पर हो रहे चुनाव के लिए बीजेपी ने अपने आठ प्रत्याशियों के नाम का ऐलान कर दिया है। बीजेपी ने यूपी में 9 प्रत्याशी जीतने की स्थिति में होने के बाद भी आठ प्रत्याशी उतारे हैं, जिसे बसपा को वॉकओवर देने का दांव माना जा रहा है। बीजेपी ने राज्यसभा चुनाव में अपने कोर वोटबैंक का खास ख्याल रखा है और जातीय समीकरण साधने के साथ-साथ नए चेहरों को भी मौका दिया है। यही नहीं कांग्रेस छोड़कर बीजेपी में आए अमेठी के राजा संजय सिंह को तगड़ा झटका लगा है, क्योंकि बीजेपी ने उन्हें राज्यसभा का प्रत्याशी नहीं बनाया है।
यूपी में 9 नवंबर को होने वाले राज्यसभा चुनाव के लिए बीजेपी की केंद्रीय चुनाव समिति ने 26 अक्टूबर देर रात 8 उम्मीदवारों की लिस्ट जारी की। इसमें केंद्रीय मंत्री हरदीप सिंह पुरी, अरुण सिंह, पूर्व डीजीपी बृजलाल, नीरज शेखर, हरिद्वार दुबे, गीता शाक्य, बीएल शर्मा और सीमा द्विवेदी को उम्मीदवार बनाया गया। बीजेपी ने दो राजपूत, दो ओबीसी, दो ब्राह्मण, एक दलित और एक सिख समुदाय के प्रत्याशी के जरिए जातीय समीकरण साधने की कवायद की है।
बीजेपी ने जातीय संतुलन साधने के साथ बृजलाल, गीता शाक्य और बीएल वर्मा जैसे नये चेहरों को भी मौका दिया है। सेवानिवृत डीजीपी बृजलाल दलित समुदाय से आते हैं और मायावती के करीबी माने जाते थे, लेकिन उन्होंने अपना सियासी सफर बसपा की बजाय बीजेपी के साथ शुरू किया। हाल ही में हाथरस मामले में जिस तरह से विपक्ष ने बीजेपी को दलित राजनीति के नाम पर घेरने की कोशिश की थी, ऐसे में पार्टी ने बृजलाल को राज्यसभा भेजकर दलित समुदाय को सियासी संदेश देने की कोशिश की है।
उत्तर प्रदेश में ब्राह्मण राजनीति को लेकर विपक्ष लगातार योगी सरकार पर हमलावर है। ऐसे में बीजेपी ने यूपी से राज्यसभा में दो ब्राह्मण उम्मीदवारों को भेजने का दांव चला है, जिसमें पूर्व मंत्री हरिद्वार दुबे और पूर्व विधायक सीमा द्विवेदी का नाम शामिल है। दुबे यूपी में कल्याण सरकार में वित्त राज्य मंत्री रहे हैं और उनकी गिनती आगरा के वरिष्ठ भाजपा नेताओं में होती है। हालांकि, मूलरूप से वे बलिया के रहने वाले हैं और सीतापुर, अयोध्या और शाहजहांपुर में आरएसएस के जिला प्रचारक रहे हैं। वहीं, सीमा द्विवेदी जौनपुर के मुंगरा बादशाहपुर से दो बार विधायक रह चुकी हैं।
बीजेपी ने राजपूत समुदाय से राज्यसभा के दो प्रत्याशी बनाए हैं। बीजेपी के राष्ट्रीय महामंत्री, महासचिव तथा केंद्रीय कार्यालय प्रभारी अरुण सिंह के साथ पूर्व प्रधानमंत्री स्वर्गीय चंद्रशेखर के पुत्र नीरज शेखर को फिर से राज्यसभा में भेजने का फैसला लिया है। नीरज शेखर ने पिछले साल सपा छोड़कर बीजेपी का दामन थामा था। वहीं, डॉ। संजय सिंह के राज्यसभा जाने के अरमानों पर पानी फिर गया है। संजय सिंह ने पिछले साल कांग्रेस के साथ राज्यसभा की सदस्यता से भी इस्तीफा देकर बीजेपी का दामन थामा था। ऐसे में माना जा रहा था कि पार्टी उन्हें राज्यसभा भेजेगी, लेकिन सूबे में जिस तरह से ठाकुरों को लेकर बीजेपी निशाने पर है। ऐसे में दो से ज्यादा प्रत्याशी बनाने पर सवाल खड़े होते, लगता है यही वजह है कि पार्टी ने उन्हें राज्यसभा का प्रत्याशी नहीं बनाया।
बीजेपी ने 2022 के विधानसभा चुनाव को ध्यान में रखते हुए राज्यसभा प्रत्याशी के चयन का फैसला किया है। बीजेपी ने ओबीसी समुदाय से दो राज्यसभा कैंडिडेट बनाए हैं। औरैया की जुझारू नेता गीता शाक्य के जरिए पार्टी नेतृत्व ने महिला और पिछड़ा कोटा पूरा करने के साथ बुंदेलखंड को भी प्रतिनिधित्व प्रदान किया है। ऐसे लोध समुदाय से आने वाले बीएल वर्मा को प्रत्याशी बनाया गया है। वर्मा पूर्व सीएम कल्याण सिंह के करीबी माने जाते हैं और यूपी में लोध समुदाय बीजेपी का परंपरागत वोटर माना जाता है। इस तरह से बीजेपी ने सूबे के पिछड़ा वर्ग को भी सियासी संदेश देने की कवायद की है।
खास बात है कि बीजेपी ने सूबे में आठ राज्यसभा कैंडिडेट उतारे हैं जबकि पार्टी 9 सदस्य जिताने की स्थिति में थी। सपा और बसपा के मैदान में एक-एक उम्मीदवार उतारने के बाद अब कुल 10 प्रत्याशी मैदान में होंगे। ऐसे में कोई निर्दलीय उम्मीदवार मैदान में नहीं आता है तो सभी का निर्विरोध निर्वाचन तय है। हालांकि, पहले माना जा रहा था कि बीजेपी 9 प्रत्याशी उतारेगी, लेकिन 8 नामों का ऐलान करके सभी को चैंका दिया है। इस बीच कांग्रेस ने आरोप लगाया है कि बीजेपी ने बीएसपी के उम्मीदवार को समर्थन देने के लिए अपनी एक सीट खाली छोड़ी है।
दरअसल, यूपी में बीएसपी के पक्ष में समीकरण न होते हुए भी पार्टी की तरफ से रामजी गौतम ने नामांकन दाखिल किया है, लेकिन बीजेपी के दांव से अब राज्यसभा में बीएसपी की राह आसान लग रही है। बीजेपी उम्मीदवार की लिस्ट जारी होने के बाद यूपी कांग्रेस ने ट्वीट किया, बीजेपी की हालत पतली है। बीएसपी उपचुनावों में बीजेपी को वोट ट्रांसफर करे इसके लिए बीएसपी-बीजेपी के छुपन-छुपाई गठबंधन का ऐलान हुआ। यूपी विधानसभा में मौजूदा सदस्य संख्या के आधार पर जीत के लिए उम्मीदवार को 36 वोटों की आवश्यकता होगी। बीजेपी के आठ उम्मीदवारों की जीत तो तय है लेकिन पार्टी ने अभी अपने सारे पत्ते नहीं खोले हैं। ऐसे में सभी की नजरें नामांकन के आखिरी दिन पर टिकी है और अगर निर्दलीय कोई नहीं उतरता है तो फिर सभी का निर्विरोध निर्वाचन तय है। (अशोक त्रिपाठी-हिन्दुस्तान समाचार फीचर सेवा)