टीएमसी में भगदड़ क्यों?
ममता बनर्जी ने केंद्र सरकार को पत्र लिखकर कहा है कि प्रधानमंत्री किसान योजना को राज्य में लागू करने के लिए तैयार हैं
कोलकाता। पश्चिम बंगाल में चुनाव से पहले ममता बनर्जी की पार्टी तृणमूल (टीएमसी ) को मिलने वाले झटकों का सिलसिला थमने का नाम ही नही ले रहा है। इसी कड़ी में गत 22 जनवरी को वन मंत्री राजीव बनर्जी ने पार्टी से इस्तीफा दे दिया है। इससे दो दिन पहले 20 जनवरी को टीएमसी के विधायक अरिंदम भट्टाचार्य ममता बनर्जी का साथ छोड़ कर भाजपा में शामिल हो गए। इससे पहले टीएमसी के बडा चेहरा माने जाने वाले शुभेन्दु अधिकारी और उनके पिता शिशिर अधिकारी ने टीएमसी छोड़ कर भाजपा का दामन थाम लिया है। इनके अलावा लगभग 15 विधायक और सैकड़ों अन्य लोग हैं जो टीएमसी को डूबता जहाज समझने लगे हैं।
ममता बनर्जी ने केंद्र सरकार को पत्र लिखकर कहा है कि प्रधानमंत्री किसान योजना को राज्य में लागू करने के लिए तैयार हैं लेकिन उन्होंने मांग की थी कि पैसा राज्य सरकार के जरिए दिया जाए। राज्यपाल जगदीप धनखड़ ने मुख्यमंत्री को पत्र लिख कर पूछा है कि प्रधानमंत्री किसान योजना के तहत केंद्र से पैसा मिलने पर राज्य बिचैलिया क्यों बनना चाहता है। इस प्रकार भाजपा इस दांव को सफल नहीं होने देना चाहती। ममता बनर्जी का अभी हाल साथ छोड़ने वाले अरिंदम भट्टाचार्य पश्चिम बंगाल की शांतिपुर विधानसभा सीट से विधायक हैं। इससे पहले शुभेंदु अधिकारी जैसे दिग्गज टीएमसी नेता भी बीजेपी में शामिल हो चुके हैं। उधर, बीजेपी लगातार इस साल प्रस्तावित विधानसभा चुनाव में पूर्ण बहुमत के साथ सरकार बनाने के दावे कर रही है। भाजपा महासचिवों कैलाश विजयवर्गीय, भूपेन्द्र यादव, अरुण सिंह और डी पुरंदेश्वरी तथा पार्टी प्रवक्ता शाहनवाज हुसैन की मौजूदगी में उन्हें पार्टी की सदस्यता दिलाई गई। इस अवसर पर विजयवर्गीय ने कहा कि भट्टाचार्य बंगाल के ओजस्वी वक्ता और तेजस्वी नेता हैं जो तृणमूल कांग्रेस की 'अराजकता' से तंग आकर भाजपा में शामिल हुए हैं।
उन्होंने कहा, मुझे बहुत प्रसन्नता है कि एक युवा नेता जो बंगाल की राजनीति में महत्वपूर्ण दखल रखते हैं, वह प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व पर भरोसा जताते हुए आज भाजपा की सदस्यता ले रहे हैं। अरिंदम भट्टाचार्य का टीएमसी के युवा और प्रभावशाली नेताओं में शुमार किया जाता है।
हालांकि अरिंदम ने अपने राजनीतिक जीवन की शुरुआत कांग्रेस पार्टी से की थी। पेशे से वकील अरिंदम पश्चिम बंगाल यूथ कांग्रेस के अध्यक्ष रह चुके हैं। वो 2001 से 2017 तक कांग्रेस में थे, फिर 2017 में उन्होंने तृणमूल कांग्रेस जॉइन की थी। इससे पूर्व 2016 के विधानसभा चुनाव में जब राज्य में तृणमूल की लहर थी तब अरिंदम ने कांग्रेस का प्रत्याशी रहते हुए शांतिपुर सीट पर टीएमसी के अजॉय डे को हराया था लेकिन फिर एक साल के भीतर ही वो कांग्रेस छोड़कर तृणमूल में चले गए थे। अब इस साल फिर से विधानसभा चुनाव होने हैं। ऐसे में माना जा रहा है कि शांतिपुर सीट पर अरिंदम बीजेपी का झंडा बुलंद कर सकते हैं। जाहिर है कि अरिंदम भट्टाचार्य भी जनसेवक से ज्यादा सत्ता के सेवक हैं।
तृणमूल कांग्रेस इस समय संकट के दौर से गुजर रही है। पार्टी के वरिष्ठ सांसद एवं भाजपा नेता शुभेंदु अधिकारी के पिता शिशिर अधिकारी ने भी खुद को पूर्वी मिदनापुर जिला अध्यक्ष पद से हटाए जाने के एक दिन बाद यह कहकर भाजपा में जाने का संकेत दिया कि श्राजनीति में कुछ भी असंभव नहीं है। हालांकि अधिकारी ने कहा कि उन्होंने अभी इस बारे में फैसला नहीं लिया है, लेकिन साथ ही उन्होंने यह भी कहा कि वह पार्टी प्रमुख ममता बनर्जी के साथ इस मुद्दे पर चर्चा करेंगे।
तृणमूल कांग्रेस छोड़कर बीजेपी का दामन थामने वाले शुभेंदू अधिकारी ने भी इस चैलेंज को स्वीकार करते हुए कहा है कि ममता बनर्जी नंदीग्राम से बुरी तरह चुनाव हारेंगी। पश्चिम बंगाल के चंदननगर में एक रैली के दौरान उन्होंने कहा-मुझे नहीं मालूम कि नंदीग्राम से कौन चुनाव लड़ेगा। ये बीजेपी की केंद्रीय लीडरशिप तय करेगी लेकिन मैं एक बात निश्चित तौर पर कह सकता हूं कि ममता बनर्जी कम से कम आधे लाख मतों से चुनाव हारेंगी। मैं नंदीग्राम का खयाल रखूंगा। आप लोग चंदन नगर का खयाल रखना। शुभेंदू अधिकारी ने यह भी कहा कि लेफ्ट फ्रंट समर्थकों से मेरा कहना है कि रैली में जाना है तो जाइए लेकिन वोट बीजेपी को ही कीजिएगा। अगर आपने ऐसा नहीं किया तो तृणमूल आपको वोट ही नहीं डालने देगी। वहीं तृणमूल कंपनी के लिए मेरा कहना है कि अभी आप ट्रेलर देख रहे हैं। पिक्चर अभी बाकी है। पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने सत्ता में आने के बाद दार्जिलिंग स्वायत्त परिषद के माध्यम से गोरखा आंदोलन को शांत करने की कोशिश की थी, लेकिन इसकी मांग फिर से उठ गई। दरअसल इस आग को चिंगारी ममता सरकार के उस फैसले से मिली है जिसमें उन्होंने पहली से दसवीं कक्षा तक सभी स्कूलों में बांग्ला भाषा को अनिवार्य कर दिया था।
गोरखा जनमुक्ति मोर्चा इसी फैसले के विरोध के माध्यम से अलग राज्य की मांग के लिये आंदोलन तेज करना चाहता था। ममता बनर्जी को दार्जिलिंग का महत्त्व पता है और उन्होंने मामला संभाल भी लिया। दार्जिलिंग पश्चिम बंगाल का एक खूबसूरत पहाड़ी जिला है। पर्यटन के लिहाज से यह सबसे अच्छी स्थल है। फिर भी, चुनाव से पहले पश्चिम बंगाल की राजधानी कोलकाता की सड़कों पर साल भर में दूसरी बार विवादित नारा श्गोली मारोश् (देशद्रोहियों को गोली मारो) गूंजा। इस बार मौका था राज्य की सत्ताधारी पार्टी तृणमूल कांग्रेस की पदयात्रा का, जिसमें पार्टी के कई वरिष्ठ नेताओं, सांसदों समेत ममता बनर्जी सरकार के वरिष्ठ मंत्री भी शामिल थे। दक्षिणी कोलकाता में यह पदयात्रा विपक्षी भारतीय जनता पार्टी के रोड शो के जवाब में आयोजित की गई थी। टीएमसी ने इस पदयात्रा में अपना शक्ति प्रदर्शन किया। बीजेपी ने उसी रूट पर अपना रोड शो आयोजित कर अपनी बढ़ती ताकत का इजहार किया था। तब बीजेपी और तृणमूल समर्थकों के बीच तीन जगहों पर झड़पें भी हुई थीं। दक्षिणी कोलकाता की सांसद माला रॉय ने सभा को संबोधित किया। इस दौरान उन्हें मंच से यह कहते हुए सुना गया, अगली बार अगर तुमलोग (बीजेपी) दक्षिणी कोलकाता में आकर उपद्रव करते दिखे तो सिर्फ पैर ही नहीं तोड़ेंगे बल्कि सिर भी कुचल देंगे। बंगाल में जैसे जैसे चुनाव करीब वैसे वैसे राजनीतिक हिंसा भी तेज हो गई है। प्रदेश में लगातार बीजेपी और टीएमसी कार्यकर्ताओं के बीच झड़प तेज हो गई है। सीपीआई नेता अमीर हैदर जैदी ने बंगाल हिंसा को लेकर कहा कि क्या बंगाल के मुद्दे ये होंगे कि टीएमसी के गुंडों ने भाजपा के गुंडों को पीट दिया या ये कि बीजेपी के गुंडों ने टीएमसी के गुंडों को पीट दिया।
बहरहाल, भाजपा अध्यक्ष जे पी नड्डा कहते हैं कि पश्चिम बंगाल के आगामी विधानसभा चुनाव में वहां की जनता लोकतांत्रिक तरीके से मुख्यमंत्री ममता बनर्जी के नेतृत्व वाली तृणमूल कांग्रेस की सरकार को करारा जवाब देगी। कार्यकर्ताओं की शहादत व्घ्यर्थ नहीं जाने देंगे और वहां कमल खिलेगा जबकि जम्मू एवं कश्मीर और केरल में भी हिंसा का दौर खत्म होगा और एक दिन ऐसा भी आएगा जब वहां पार्टी की सरकार बनेगी। मैं उन सभी कार्यकर्ताओं को अपने विनम्र श्रद्धांजलि देते हुए यह प्रण लेता हूं कि उनकी शहादत कभी व्यर्थ नहीं जाने देंगे।' नड्डा ने अपने काफिले पर हुए हमले का उल्लेख करते हुए कहा कि लगातार सुरक्षा घेरे में रहने वाले उनके जैसे देश के सबसे बड़ी राजनीतिक पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष पर भी जब पश्चिम बंगाल में दिन के उजाले में जानलेवा हमला हो सकता है तो ऐसी परिस्थिति में पार्टी के आम कार्यकर्ता किस मुश्किल में कार्य करते होंगे, यह आसानी से समझा जा सकता है। टीएमसी में भगदड़ का क्या यह भी एक कारण है? (हिफी)