स्ट्राबेरी व केले की वैज्ञानिक खेती
दलहनी और तिलहनी फसलों के साथ गेहूं, चावल और गन्ना जैसी फसलें तो वैज्ञानिक तरीके से होने ही लगी हैं
नई दिल्ली। परम्परागत खेती अब इतिहास का विषय बनती जा रही है। दलहनी और तिलहनी फसलों के साथ गेहूं, चावल और गन्ना जैसी फसलें तो वैज्ञानिक तरीके से होने ही लगी हैं, फलों का उत्पादन भी इस तरह से हो रहा है जिससे उनका रूप-रंग और पौष्टिकता भी बदल गयी है। झारखण्ड के किसानों ने स्ट्राबेरी की वैज्ञानिक तरीके से खेती करके फ्रूट क्रांति पैदा कर दी है। इसी तरह केले की भी वैज्ञानिक खेती ने किसानों की न सिर्फ आमदनी बढ़ायी बल्कि उनकी सोच में भी बदलाव किया है।
केले के पत्ता से लेकर फल तक उपयोगी
केला उष्णकटिबंधीय क्षेत्र का एक महत्वपूर्ण आहार फसल है। यह एक सस्ता, परिपूर्ण व सबसे ज्यादा पोषक तत्वों से भरपूर फल है। पका केला में कार्बोहाइड्रेट की मात्रा अधिक तथा प्रोटीन व वसा की मात्रा कम होती है। पका केला विटामिन ए का अच्छा एवं सी एवं बी का सामान्य स्रोत है। लगभग 60 डिग्री सेंटीग्रेट तापमान पर पकाने पर भी इसके विटामिन नष्ट नहीं होते केला का हर भाग उपयोगी है। इसके तने से पेपर बोर्ड, टिश्यू पेपर एवं धागे आदि बनते हैं। पत्ते सजावट एवं थाली के काम में आते हैं। कच्चे केले से चिप्स बनाकर अच्छी कमायी की जा सकती है। इसके अलावा बनाना फिग, शीतल पेय, आटा, जैम पेस्ट, चाकलेट, सिरका, पेक्टिन एवं शराब आदि बनाने में भी उपयोग में लाया जाता है। सब्जी वाली प्रजाति में कांच केला, बेहुला, बत्तिसा, नेंद्रण, भुर केला, मनोहर हैं जबकि खाने वाली प्रजाति में ग्रौस मिशेल, जायंट कैवेंडिश, डवार्क कैवेंडिश, रोबस्टा, लाल केला, चम्पा व मालभोग है।
एक बार केलारोपण के उपरान्त 3-5 फसल तक ली जा सकती है। फलियों का रंग हल्का हरा होना शुरू होने व सतह की धारियों में गोलापन आने पर गहर तोड़ लें। ऐसे में पुष्प के भाग छूने पर गिरने लगते हैं। प्रथम बार केला रोपण से पुष्प क्रम 9-12 महीने के बाद निकलता है व गहरे परिपक्व होने में 12-16 महीने का समय लगता है। पहली फसल 5-10 महीने में तैयार होती है। गहर काटने के उपरान्त ठूँठ को काटकर फेंक दें। फल तोड़ते समय फलियों को चोट न लगे।
केला को पकाने के कई तरीके हैं। कम मात्रा में रहने पर चूल्हे के ऊपर टांग कर धुंए के द्वारा पकाया जा सकता है। कार्बाइड का प्रयोग फल पकाने में किया जा सकता है। इथ्रेल 2000 पी.पी.एम. का छिड़काव कर भी पका सकते हैं। शीतभंडार में 20-21 सेंटीग्रेट व 85-85 प्रतिशत आर्द्रता पर 1-2 सप्ताह तक रखकर एक समान लुभावने पीले रंग वाले फलों के रूप में पकाया जा सकता है। ज्यादा तापक्रम से काले धब्बे बनते हैं।
साधारणतया केले को 13 सेंटीग्रेड व 85-90 प्रतिशत आर्द्रता पर 1-5 सप्ताह तक भंडारित किया जा सकता है। केले की रोबस्टा किस्म के पके फल 14.5़ 1 सेंटीग्रेड ताप व 85-90 प्रतिशत आर्द्रता पर केले को 3 सप्ताह तक भंडारित किया जा सकता है। जिरो एनर्जी शीतक कक्ष का प्रयोग भण्डारण हेतु किया जा सकता है। साथ ही सूखे पत्तों के तहों के बीच रखकर दूरस्थ बाजारों हेतु भेजा जा सकता है। इससे किसानों को अच्छी आमदनी होती है।
झारखण्ड में होती है स्ट्राबेरी की खेती
झारखंड के हजारीबाग में किसान परंपरागत खेती से हटकर वैज्ञानिक पद्धति से स्ट्रॉबेरी की खेती कर रहे हैं। किसानों को उम्मीद है कि इसमें उनको ज्यादा मुनाफा होगा। दरअसल हाल के दिनों में हर क्षेत्र में अलग हटकर काम करने की होड़ देखी जा रही है। ऐसे में किसान भी अपने आप को पीछे नहीं रखना चाहते हैं। यही वजह है कि हजारीबाग के कटकमदाग प्रखंड के अडरा गांव में किसान वैज्ञानिक पद्धति से परंपरागत खेती से हटकर स्ट्रॉबेरी की खेती कर रहे हैं. ताकि उन्हें अच्छा मुनाफा हो सके।
अडरा गांव में पहली बार स्ट्रॉबेरी खेती करने वाले किसान कहते हैं कि कम जगह पर भी यह खेती की जा सकती है और इसके लागत मूल्य से चार गुना ज्यादा फायदा मिलेगा। इतना ही नहीं किसान यह भी बताते हैं कि अन्य खेती में पौधा मरने का डर रहता है, लेकिन इसमें वह डर ना के बराबर है और तो और इसमें दवा भी काफी कम लगती है। अगर इस बार मुनाफा हुआ तो अगली बार वृहद पैमाने पर इसकी खेती करेंगे और लोगों को प्रेरित भी करेंगे।
किसानों को स्ट्रॉबेरी की खेती करने को प्रेरित करने के लिए केजीवीके नामक एक संस्था आगे आई और ना सिर्फ किसानों को स्ट्रॉबेरी की खेती करने के लिए प्रेरित किया बल्कि बैंक के सहयोग से आर्थिक रूप से भी इन्हें मदद की ताकि किसान हिम्मत से खेती करें। संस्था के प्रशिक्षक भवर सिंह माहौर कहते हैं कि हजारीबाग में स्ट्रॉबेरी की खेती पहले नहीं की जाती थी। लोग यहां परंपरागत खेती ही करते थे। ऐसे में किसानों को कम मेहनत में ज्यादा मुनाफा हो इस बात को ध्यान में रखते हुए फिलहाल दो गांव में पायलट प्रोजेक्ट के तहत स्ट्रॉबेरी की खेती के लिए प्रेरित किया गया है और किसान को अच्छा मुनाफा भी होगा। अब राज्य के दूसरे किसान भी स्ट्राबेरी पैदा करना चाहते हैं। (हिफी)