लोगों के आकर्षण का केन्द्र बनी चलन से बाहर दैनिक जरूरतों की पुरानी चीजें
श्रीराम कालेज में आयोजित गुड़ महोत्सव में ग्रामीणों की रोजमर्रा के जीवन में उपयोग आने वाले चलन से बाहर हो चुके विभिन्न मशीनों को ग्रामीणों द्वारा म्यजियम में सुरक्षित रखने के लिए भेट की गयी। महोत्सव में प्रदर्शन के लिए रखी दैनिक दिनचर्या में प्रयोग में आने वाली चीज न केवल शहरी, बल्कि ग्रामीण परिवेश से आने वाले बहुत से दर्शकों के लिए भी कौतुहल का विषय बनी।;
मुजफ्फरनगर। श्रीराम कालेज में आयोजित गुड़ महोत्सव में ग्रामीणों की रोजमर्रा के जीवन में उपयोग आने वाले चलन से बाहर हो चुके विभिन्न मशीनों को ग्रामीणों द्वारा म्यजियम में सुरक्षित रखने के लिए भेट की गयी। महोत्सव में प्रदर्शन के लिए रखी दैनिक दिनचर्या में प्रयोग में आने वाली चीज न केवल शहरी, बल्कि ग्रामीण परिवेश से आने वाले बहुत से दर्शकों के लिए भी कौतुहल का विषय बनी।
प्रत्यक्षदर्शियों के अनुसार गुड़ महोत्सव में जहां एक ओर आधुनिक तकनीक से युक्त गन्ना बुआई की मशीन, निराई-गुडाई की मशीन, गन्ने से रस निकालने की मशीन सहित खेत की जुताई के नये-नये यंत्र प्रदर्शन के लिए रखे गये थे, वहीं चलन से बाहर हो चुके पुराने समय में दैनिक दिनचर्या का मुख्य हिस्सा रहे कुछ यंत्र भी दर्शकों के कौतुहल का विषय बने रहे।
वर्तमान समय में आने-जाने व सामान ढोने के लिए जैसे ट्रैक्टर-ट्राॅली, भैंसा-बुग्गी आदि का प्रयोग किया जाता है, वैसे ही ग्रामीणों के लिए बीते दिनों में दैनिक जीवन से जुड़ी, लेकिन वर्तमान में लुप्तप्रायः हो चुके ग्राम बेहडा सादात निवासी चौधरी सुधीर द्वारा भेट की गयी बैलगाड़ी, ग्राम खरपोड निवासी चौधरी डालेन्द्र सिंह द्वारा प्रदान किये गये बैल तांगा और उद्दलहेडी निवासी चौधरी हरपाल सिंह द्वारा प्रस्तुत किया गये रथ को देखकर दर्शक विशेष रूप से शहरी परिवेश के लोग अपने दांतो तले अंगुली दबाते नजर आये। प्रदर्शन के लिए रखे गये लकड़ी का हल देखकर बुजुर्ग ग्रामीणों के चेहरे पर जहां मुस्कान नजर आयी, वहीं युवा आश्चर्य से इसकी बनावट को देखते हुए पाये गये।
पुराने समय मे गांवों में दूध बिलोने के लिए प्रयोग में आने वाली लकडी रई को देखकर शहरी ही नहीं ग्रामीण परिवेश से आने वाले युवा समझ ही नहीं पाये कि आखिर ये है क्या? क्योंकि वर्तमान में तो काफी समय से हम बाजार में उपलब्ध इलैक्ट्रोनिक्स मथानी को ही दूध बिलोने (मथने) के लिए जानते-पहचानते हैं। इसके साथ ही पुराने समय में घर की औरतों द्वारा गेहूं पीसने व दालों के दलने के लिए हाथ से चलने वाली पत्थर के पाटों वाली आटा चक्की देखकर भी महोत्सव में आये युवा साथी बुजुर्गो से कई सवाल करते नजर आये। यहां मौजूद पुराने समय में विभिन्न अनाज को कूटने के प्रयोग में आने वाले मूसल व ओखली देखकर अनेक शहरी परिवेश के बच्चे व युवा तो बुजुर्ग भी समझ ही नहीं पाये कि आखिर ये चीज क्या है? गुड़ महोत्सव में प्रदर्शित बिनौलों से रूई निकालने की मशीन व पुराने समय में सिचाईं का मुख्य साधन चडस अथवी चीड्स को देखकर तो शहरी व ग्रामीण बच्चे व युवा तो दूर कई व्यस्क व बुजुर्ग भी चक्कर खा गये। वो तो भला हो प्रदर्शनी के आयोजकों का, कि उन्होंने काफी समय से प्रचलन से बाहर वस्तुओं के बारे में पूरा विवरण लिखकर समझाने का अच्छा प्रयास किया गया था।
गुड़ महोत्सव में आये दर्शकों की मानें तो महोत्सव में यूं तो सभी प्रदर्शित चीजें दर्शनीय हैं, लेकिन वर्तमान में चलन से बाहर हो चुकी ये एंटिक चीजें पुराने ग्रामीण परिवेश को जानने व समझने के लिए जानकारी को बढ़ाने व विशेष आकर्षण का केन्द्र साबित हो रही हैं।