विधानसभा चुनाव- शुरू हुई गठबंधन की कवायद- साथ आएंगे यूपी के दो लड़के

प्रदेश में अपनी रणनीति में बदलाव किए जाने का दबाव बढ़ गया है। इस समय पार्टी में गठबंधन किए जाने की मांग तेज हो गई है।

Update: 2021-05-31 08:40 GMT

नई दिल्ली। हाल ही में पिछले दिनों हुए पांच राज्यों के विधानसभा चुनाव में हुई हार से कांग्रेस में मचे हाहाकार के बाद कांग्रेस पर उत्तर प्रदेश में अपनी रणनीति में बदलाव किए जाने का दबाव बढ़ गया है। इस समय पार्टी में गठबंधन किए जाने की मांग तेज हो गई है। आला नेताओं का मानना है कि वर्ष 2020 में होने वाले उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव में कांग्रेस को भाजपा की हार सुनिश्चित करने के लिए क्षेत्रीय दलों के साथ मिलकर चुनाव लड़ना होगा। यदि ऐसा नहीं किया जाता है तो पार्टी के लिए राज्य में राजनीति की राह आसान नहीं होगी। 

दरअसल उत्तर प्रदेश में वर्ष 2022 में विधानसभा के चुनाव होने है। जिसे लेकर राजनैतिक दलों की ओर अपनी तैयारियां शुरू कर दी गई है। हाल ही में पिछले दिनों हुए पांच राज्यों के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस को उम्मीद के मुताबिक कामयाबी नहीं मिल सकी है। जिसके चलते अधिकतर स्थानों पर उसे हार का सामना करना पड़ा है। पार्टी की हार को लेकर संगठन में बुरी तरह से हाहाकार मचा हुआ है। कांग्रेस के ऊपर उत्तर प्रदेश में अपनी चुनावी रणनीति को बदलने का दबाव बढ़ गया है। उत्तर प्रदेश में चुनावी गठबंधन किए जाने की वकालत करने वाले नेताओं का अपनी दलील में कहना है कि पार्टी को पांच राज्यों के चुनाव परिणामों से सबक लेना चाहिए। जहां तमाम प्रयासों के बाद भी पार्टी केरल और असम में जीत की दहलीज तक नहीं पहुंच पाई है। इन दोनों ही राज्यों में सरकार में कांग्रेस की वापसी की सबसे ज्यादा उम्मीदें थी। ऐसे हालातों के बीच अब कांग्रेस को उत्तर प्रदेश में अकेले अपने दम पर सत्ता में वापसी का सपना छोड़ते हुए हकीकत का सामना करना चाहिए।

पार्टी नेताओं का कहना है कि पश्चिम बंगाल में तमाम कोशिशों के बावजूद कांग्रेस अपना खाता तक खोलने में कामयाब नहीं हो सकी। क्योंकि वहां पर पार्टी के विपरीत हवा चल रही थी। पार्टी के एक वरिष्ठ नेता ने कहा है कि उत्तर प्रदेश भारतीय जनता पार्टी के लिए एक बहुत ही अहम राज्य है। इसलिए भाजपा अपनी सरकार बनाए रखने के लिए राज्य में हर मुमकिन कोशिश करेगी। जबकि कांग्रेस का पूरा दारोमदार अपने परंपरागत मतदाताओं के अलावा मुस्लिमों के वोटों पर है। वरिष्ठ नेताओं का मानना है कि मुस्लिम मतदाता अभी तक उत्तर प्रदेश में अलग-अलग कारणों से प्रथक प्रथक राजनीतिक दलों को अपना वोट करते हुए आ रहे हैं। परंतु बिहार विधानसभा चुनाव के बाद मुस्लिमों द्वारा वोट करने के तरीके में बदलाव आया है। पश्चिम बंगाल में मुस्लिम मतदाताओं ने एकजुट होकर टीएमसी के पक्ष में एक तरफा वोट डाला है। ऐसे हालातों में उत्तर प्रदेश में भी मुस्लिम मतदाता एकजुट होकर किसी एक पार्टी का चयन कर उसे वोट दे सकते हैं।

नेताओं की दलील है भाजपा के खिलाफ मतदाता केवल उस पार्टी को वोट देंगे जो सरकार बनाने की स्थिति में हो। हालातों को देखते हुए फिलहाल कांग्रेस इस स्थिति में नहीं है कि वह अपने दम पर सरकार बना सके। ऐसी परिस्थितियों में कांग्रेस को भाजपा विरोधी वोट एकजुट रखने के लिए गठबंधन करने पर विचार करना चाहिए। हालांकि कई नेता गठबंधन किए जाने के खिलाफ भी हैं। उनका मानना है कि वर्ष 2017 में हुए विधानसभा चुनाव में सपा के साथ किए गए गठबंधन से कांग्रेस को नुकसान हुआ है। किसी बड़े क्षेत्रीय दल के साथ गठबंधन करने के बजाय कांग्रेस को छोटे दलों को साथ लेकर सोशल इंजीनियरिंग करनी चाहिए। इन नेताओं का मानना है कि वर्ष 2012 के चुनाव में कांग्रेस को 28 सीटों के साथ लगभग 12 प्रतिशत वोट मिले थे। लेकिन इसके बाद 2017 में हुए विधानसभा चुनाव में कांग्रेस महज 6 प्रतिशत वोट ही हासिल कर सकी। इन परिस्थितियों को ध्यान में रखते हुए कांग्रेस को गठबंधन के बजाय अपने संगठन को मजबूत बनाने पर अत्यधिक ध्यान देना चाहिए।

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