असम नागरिकता का चिंतनीय पहलू
असम पहला राज्य है जहां राष्ट्रीय नागरिकता रजिस्टर बनाया गया है। पिछले साल के अंतिम दिन अर्थात 31 दिसम्बर 2017 को राष्ट्रीय नागरिक रजिस्टर का पहला मसौदा जारी किया गया। इसके बाद ही असम के लोग अपनी नागरिकता जानने के लिए उमड़ पड़े। नागरिकता का विवाद वहां बहुत पहले से चल रहा है। इसके लिए छात्रों ने भी आंदोलन किया था और आखिर असम छात्र संघ बनाया गया। इसने चुनाव भी लड़ा और छात्र नेता प्रफुल्ल कुमार महंत मुख्यमंत्री बनाये गये। इसके बाद कई सरकारें आयीं और मौजूदा समय में भाजपा की सरकार है। सर्वानंद मुख्यमंत्री हैं। उन्होंने असम की जनता को उनके अधिकार दिलाने का वादा कर रखा है। इसी के तहत यह जांच-पड़ताल हो रही है। राज्य के सेवा केन्द्रों पर नागरिकता की सूची लगी है।;
पूर्वोत्तर भारत के संवेदनशील राज्य असम में राज्य के स्वास्थ्य मंत्री हेमंत विश्वशर्मा ने एक ऐसा बयान दिया था जिस पर काफी हंगामा मचा। हेमंत विश्व शर्मा ने कहा कि लोग कैंसर जैसी घातक बीमारी से इसलिए ग्रस्त हैं क्योंकि उन्होंने अतीत में पाप किये हैं और यह ईश्वर का न्याय है। ईश्वर और धर्म पर आस्था रखने वाले लगभग इसी प्रकार की सोच रखते हैं कि हम जो भी भोग रहे हैं, वह हमारे अपने कर्मों का फल है। इससे उन्हें आत्मसंतोष मिलता है, किसी प्रकार की कुंठा नहीं होती और किसी अन्य से शिकायत भी नहीं रहती। यह संतोष की भावना कभी-कभी परम सुख देती है। असम के लोगों ने अगर इस तरह संतोष न किया होता तो आज वहां भयंकर घमासान हो रहा होता। असम के मूल लोगों के हिस्से की मलाई खाने वाले वहां इतने बढ़ गये कि असमिया भूखों मरने लगे। अभी हाल में असम का राष्ट्रीय नागरिक रजिस्टर खोला गया तो लोग यह देखकर हैरान रह गये कि सवा करोड़ से अधिक लोगों को नागरिकता ही नहीं मिली है। ये बाहरी लोग हैं और असम के लोगों के व्यापार, नौकरी और सुविधाओं पर कब्जा जमाए हुए हैं। इस सूची में असम के दो सांसद भी शामिल नहीं हैं। इनमें एक सांसद बदरूद्दीन अजमल हैं। सरकार के एक मंत्री ने तो मान ही लिया कि सब कुछ भाग्य के चलते हो रहा है। दशकों बाद वहां सरकार बदली है तो असम के लोगों का भाग्य भी बदलना चाहिए लेकिन नागरिकता की पहचान पुख्ता होना चाहिए।
असम पहला राज्य है जहां राष्ट्रीय नागरिकता रजिस्टर बनाया गया है। पिछले साल के अंतिम दिन अर्थात 31 दिसम्बर 2017 को राष्ट्रीय नागरिक रजिस्टर का पहला मसौदा जारी किया गया। इसके बाद ही असम के लोग अपनी नागरिकता जानने के लिए उमड़ पड़े। नागरिकता का विवाद वहां बहुत पहले से चल रहा है। इसके लिए छात्रों ने भी आंदोलन किया था और आखिर असम छात्र संघ बनाया गया। इसने चुनाव भी लड़ा और छात्र नेता प्रफुल्ल कुमार महंत मुख्यमंत्री बनाये गये। इसके बाद कई सरकारें आयीं और मौजूदा समय में भाजपा की सरकार है। सर्वानंद मुख्यमंत्री हैं। उन्होंने असम की जनता को उनके अधिकार दिलाने का वादा कर रखा है। इसी के तहत यह जांच-पड़ताल हो रही है। राज्य के सेवा केन्द्रों पर नागरिकता की सूची लगी है।
नागरिकता के मसौदे में 3.29 करोड़ आवेदनों में से 1.9 करोड़ लोगों को ही कानूनी रूप से भारतीय नागरिक माना गया है। पिछले दिनों म्यांमार से रोहिंग्या मुसलमानों के पलायन की चर्चा हुई थी। इनमें से कितने ही बांग्लादेश गये थे और बांग्लादेश से असम और पश्चिम बंगाल में काफी लोग आये हैं। सबसे बड़ी समस्या असम की है क्योंकि बाहर से आने वालों के चलते वहां के मूल निवासी अल्प संख्यक हो गये हैं। इसलिए असम में नागरिकता की पहचान करना ज्यादा जरूरी है। अब 3.29 करोड़ लोगों ने नागरिकता के लिए आवेदन किया था तो उनमें सिर्फ 1.9 करोड़ लोग ही भारतीय नागरिक पाये गये तो बाकी 1.39 करोड़ लोग कौन हैं और वे असम में वहां के लोगों के हिस्से की सुविधाएं कैसे गटक रहे है। इन लोगों में अब बेचैनी होना स्वाभाविक है और इसी के मद्देनजर सेना और सुरक्षा बलों को सतर्क कर दिया गया है क्योंकि ये लोग अपने को नागरिक साबित करने के लिए अशांति भी पैदा कर सकते हैं। एहतियात के तौर पर असम और त्रिपुरा से लगी बांग्लादेश की सीमा पर निगरानी भी बढ़ा दी गयी है। राज्य सरकार ने 60 हजार पुलिस कर्मियों और अर्द्धसैनिक बलों को संवेदन शील क्षेत्रों में तैनात कर दिया है।
राज्य के मुख्यमंत्री सर्वानंद सोनो बाल ने सभी लोगों को आश्वासन दिया है कि नागरिकता सूची से किसी को घबड़ाने की जरूरत नहीं है। यह आश्वासन विशेष रूप से उनके लिए है जो इस सूची में शामिल नहीं हो सके हैं। मुख्यमंत्री ने कहा कि पहली सूची में जिनके नाम नहीं है, उन्हें आतंकित होने की जरूरत नहीं है। अभी और दस्तावेजों की जांच की जाएगी और इन दस्तावेजों की जांच के बाद बाकी नाम भी इस रजिस्टर में शामिल किये जाएंगे। मुख्यमंत्री ने मीडिया से भी अपील की है कि सही जानकारी लोगों तक पहुंचाएं। इसके साथ ही सोशल मीड़िया पर भी नजर रखी जा रही है क्योंकि सवा करोड़ से अधिक लोगों को नागरिकता से वंचित कर देना उन लोगों के लिए झटका है जो अब तक अपने को असम का नागरिक बताते रहे हैं। असमियों को लेकर कई राज्यों में संदेह है। उत्तर प्रदेश में भी माना जा रहा है कि असमियों के नाम पर बांग्लादेशी बड़ी संख्या में रह रहे हैं। मुख्य मंत्री योगी आदित्यनाथ ने इन सभी लोगों के बारे में सटीक जानकारी जुटाने का अधिकारियों को निर्देश दे रखा है। असम में भी बांग्लादेशी इसी प्रकार रह रहे हैं।
नेशलनल रजिस्टर और सिटीजन्य (एनआरसी) की मदद से असम में अवैध रूप से रह रहे बांग्लादेशियों और अन्य लोगों की पहचान की जाएगी। रजिस्ट्रार जनरल आफ इंडिया श्री शैलेष का भी कहना है कि मसौदे के इस पहले हिस्से में जिन लोगों की नागरिकता की पुष्टि नहीं हो पायी है, उनके बारे में जांच की जा रही है। यह जांच सुप्रीम कोर्ट के निर्देश पर की जा रही है, इसलिए इसे बंद नहीं किया जा सकता। श्री शैलेष कहते हैं कि जैसे ही अन्य लोगों के बारे में जानकारी मिलेगी तो उनके नाम भी रजिस्टर में दर्ज हो जाएंगे। इसलिए ऐसे लोगों के बारे में आशंकाएं जताने की जरूरत नहीं है। इसके बावजूद कुछ मामले ऐसे आये भी है जहां संवेदनशील पदों पर रहने वाले भी अपनी नागरिकता साबित नहीं कर पाये। दूसरी तरफ असम पुलिस को इसके लिए फजीहत झेलनी पड़ी कि उसने नागरिकता साबित करने का गलत नोटिस थमा दिया। गुवाहाटी में सेना के एक सेवा निवृत्त अधिकारी को अपनी नागरिकता साबित करने का नोटिस दे दिया गया था। इससे असम पुलिस की किरकिरी हुई। असम के पुलिस महानिदेशक मुकेश सहाय ने भी इस भूल को स्वीकार किया। उन्होंने कहा कि यह गलत पहचान का मामला हैं क्योंकि जेसीओ (सैन्य अधिकारी) और संदिग्ध विदेशी नागरिक के नाम में काफी समानता थी। सेना के जूनियर कमीशंड अधिकारी (जेसीओ) के तौर पर सेवानिवृत्त हुए असम के रहने वाले मोहम्मद अजमल हक को नोटिस भेजा गया था कि साबित करें वह भारतीय नागरिक है।
असम में नागरिकता का मामला इसलिए भी महत्वपूर्ण हो गया है क्योंकि बीते साल 2017 के अंत में पंचायत एवं रूरल डेवलपमेंट (पीएनआरडी) ने जूनियर सहायक पंचायत सचिव समेत अन्य पदों के लिए 945 पदों पर नौकरियों का विज्ञापन जारी किया है। ये नौकरियां दूसरे मुल्क के लोगों को न मिलें, इसका ध्यान रखा जा रहा है। अवैध रूप से रह रहे बांग्लादेशियों और अन्य लोगों की पहचान होना भी असम की बहुत बड़ी जरूरत है लेकिन किसी के साथ अन्याय भी नहीं होना चाहिए। जनता ने भाजपा को सत्ता सौपी है तो इस जटिल समस्या का समाधान भी कराने की उससे अपेक्षा है।
अशोक त्रिपाठी (हिफी)