तहसीलदार को जमीन की प्रकृति बदलने का अधिकार नही- हाईकोर्ट

कोर्ट ने मछलीशहर के तहसीलदार के पिछले 23 फरवरी को पारित आदेश को रद्द कर दिया है और कहा है कि राज्य सरकार को किसी भी भूमि को लेने का अधिकार है।

Update: 2020-11-13 13:09 GMT

प्रयागराज। इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने कहा है कि तहसीलदार को किसी जमीन की प्रकृति बदलने का अधिकार नही है। बंजर भूमि को नवीन परती कर सडक भूमि दर्ज करने का तहसीलदार को क्षेत्राधिकार नही है।    

कोर्ट ने मछलीशहर के तहसीलदार के पिछले 23 फरवरी को पारित आदेश को रद्द कर दिया है और कहा है कि राज्य सरकार को किसी भी भूमि को लेने का अधिकार है।

बंजर भूमि गाँव सभा की होने के नाते सरकार की है।कोर्ट ने कहा कि यदि सडक बनाना जरूरी हो तो सरकार जमीन लेकर सडक बना सकती है। यह आदेश न्यायमूर्ति अंजनी कुमार मिश्र ने विश्वनाथ बाबुल सिंह की याचिका पर दिया है।

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याची का कहना था कि जौनपुर की मछलीशहर तहसील के नीभापुर गाँव के प्लाट 473 व 474 को तहसीलदार ने नवीन परती दर्ज कर सडक बनाने का आदेश दिया है। जिसके खिलाफ यह याचिका दायर की गयीं थी।

याचिका पर सवाल उठाया गया कि तहसीलदार को किसी जमीन की प्रकृति बदलने का अधिकार नही है। जिसे कोर्ट ने सही माना।

सरकार की तरफ से कहा गया कि तहसीलदार धारा 25 में रास्ते का विवाद तय कर सकता है। इसलिए ऐसा किया गया है । कोर्ट ने इसे सही नही माना और कहा कि रास्ते के विवाद को तय करने के अधिकार के तहत जमीन की प्रकृति नही बदली जा सकती।

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