मराठा आरक्षण पर चली सुप्रीम कैंची- कहा 50 प्रतिशत की सीमा तोड़ना गलत

सुप्रीम कोर्ट ने मराठा आरक्षण को समाप्त करते हुए कहा कि यह पहले से ही निर्धारित 50 प्रतिशत आरक्षण की सीमा का उल्लंघन करता है।

Update: 2021-05-05 08:19 GMT

नई दिल्ली। महाराष्ट्र सरकार की ओर से राज्य में दिए गए मराठा आरक्षण पर कैंची चलाते हुए उच्चतम न्यायालय ने खारिज कर दिया है। सुप्रीम कोर्ट ने मराठा आरक्षण को समाप्त करते हुए कहा कि यह पहले से ही निर्धारित 50 प्रतिशत आरक्षण की सीमा का उल्लंघन करता है।   

बुधवार को सुप्रीम कोर्ट के 5 जजों की संवैधानिक पीठ ने महाराष्ट्र सरकार की ओर से दिए गए मराठा आरक्षण मामले पर सुनवाई करते हुए कहा है कि आरक्षण की सीमा को 50 प्रतिशत से ज्यादा नहीं बढ़ाया जा सकता है। इसके साथ ही न्यायालय की पीठ ने वर्ष 1992 के इंदिरा साहनी मामले में दिए गए फैसले की समीक्षा करने से भी इंकार कर दिया है। सुप्रीम कोर्ट ने मराठा आरक्षण पर अपनी कैंची चलाते हुए कहा है कि यह 50 प्रतिशत आरक्षण की सीमा का उल्लंघन करता है। अदालत ने कहा कि यह समानता के अधिकार का हनन है। इसके साथ ही अदालत ने वर्ष 2018 के राज्य सरकार के कानून को भी खारिज कर दिया है।

दरअसल महाराष्ट्र सरकार ने मराठा समुदाय को नौकरियों और शिक्षण संस्थानों में 50 प्रतिशत की सीमा से बाहर जाते हुए आरक्षण दिए जाने का ऐलान किया था। राज्य सरकार की ओर से वर्ष 2018 में लिए गए इस फैसले के खिलाफ कई याचिकाएं उच्चतम न्यायालय में दायर की गई थी। जिस पर बुधवार को सुनवाई करते हुए शीर्ष अदालत ने अपना यह फैसला सुनाया है। निर्णय सुनाते हुए जस्टिस भूषण ने कहा कि वह इंदिरा साहनी केस पर दोबारा विचार करने का कोई कारण नहीं समझते हैं। न्यायालय ने मराठा आरक्षण पर सुनवाई करते हुए कहा कि राज्य सरकारों की ओर से आरक्षण की 50 प्रतिशत की सीमा को नहीं तोड़ा जा सकता है। जस्टिस अशोक भूषण की अध्यक्षता वाली उच्चतम न्यायालय की बेंच ने मामले की सुनवाई करते हुए कहा है कि मराठा आरक्षण देने वाला कानून 50 प्रतिशत आरक्षण की सीमा को तोड़ता है और यह समानता के खिलाफ है। इसके अलावा न्यायालय ने यह भी कहा है कि राज्य सरकार यह बताने में नाकाम रही है कि कैसे मराठा समुदाय सामाजिक और आर्थिक तौर पर बिछड़ा हुआ है। इसके साथ ही इंदिरा साहनी केस में वर्ष 1992 के शीर्ष अदालत के फैसले की समीक्षा से भी न्यायालय ने इंकार कर दिया है।

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