Age को लेकर डॉक्यूमेंट प्रूफ के मुकाबले मेडिकल प्रूफ को दी जाएगी वरीयता

इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने कहा है आयु निर्धारण को लेकर विवाद स्थिति में मेडिकल साक्ष्यों को दस्तावेज साक्ष्य के मुकाबले

Update: 2020-09-26 15:42 GMT

प्रयागराज। इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने कहा है कि आयु निर्धारण को लेकर विवाद की स्थिति में मेडिकल साक्ष्यों को दस्तावेजी साक्ष्य के मुकाबले वरीयता दी जाएगी।

पीड़िता के आयु निर्धारण को लेकर पैदा हुए एक विवाद के मामले में उच्च न्यायालय ने सीजेएम गाजीपुर द्वारा मेडिकल साक्ष्य को वरीयता देने के लिए निर्णय को सही करार देते हुए निगरानी याचिका खारिज कर दी है।

न्यायमूर्ति अरविंद कुमार मिश्र प्रथम ने याचिका पर सुनवाई की।

पीड़िता के पिता ने निगरानी अर्जी दाखिल कर छह जनवरी 2020 के सीजेएम के आदेश को चुनौती दी थी। कहा गया था कि इस मामले में दाखिल याचिका पर उच्च न्यायालय ने पीड़िता के अभिभावकों को भी सुनकर आयु निर्धारण का आदेश दिया था। लेकिन सीजेएम ने उसे सुने बिना ही एकतरफा आदेश दे दिया जबकि उन्होंने पीड़िता की जन्म तिथि का प्रमाणपत्र जूनियर हाईस्कूल की मार्कशीट, जिसमें उसकी जन्म तिथि 25 जनवरी 2004 दर्ज है प्रस्तुत की थी। पुलिस ने आरोपी के खिलाफ पाक्सो एक्ट में आरोप पत्र भी दाखिल कर दिया है। इस हिसाब से पीड़िता को नाबालिग मानना चाहिए।



 सरकारी वकील का कहना था कि सीजेएम के समक्ष जो जूनियर हाईस्कूल की मार्कशीट पेश की गई उसमें जन्म तिथि 24 जनवरी 2001 है। सीजेएम ने मेडिकल बोर्ड की रिपोर्ट को आधार बनाया। जिसमें पीड़िता की आयु 18 से 19 वर्ष आंकी गई है। जबकि याची का कहना था कि मेडिकल रिपोर्ट छह माह पुुरानी है। घटना एक जून 2019 की है। अदालत का कहना था कि इस मामले में दो मार्कशीट प्रस्तुत की गई है। दोनों में जन्म तिथि अलग अलग है। ऐसी स्थिति में मेडिकल बोर्ड की रिपोर्ट ही मान्य होगी। यदि रिपोर्ट छह माह पुरानी है तब भी रिपोर्ट में राय दी गई है कि आयु 18 से 19 वर्ष के बीच है। इस हिसाब से पीड़िता की आयु घटना के समय भी 18 वर्ष से कम नहीं है। सीजेएम ने अभिभावकों का पक्ष ना सुनकर गलती की है । लेकिन अभिभावकों को इस अदालत ने सुनवाई का पूरा मौका दिया है।

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