हाईकोर्ट ने प्रोफेसर डॉ.उमेश के खिलाफ दर्ज FIR को किया कैंसिल

डॉ उमेश प्रताप सिंह ने प्रयागराज के कोटवा कोरेंटाइन सेंटर की बदहाली की स्थिति को लेकर फेसबुक पर टिप्पणी की थी।

Update: 2020-11-12 15:18 GMT

प्रयागराज। इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने ईसीसी प्रयागराज में अर्थशास्त्र के एसोसिएट प्रोफेसर और आक्टा के महासचिव डॉ.उमेश प्रताप सिंह पर प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र,कोटवा बनी के सुपरिंटेंडेंट डॉ.अमृत लाल यादव द्वारा दर्ज कराई प्राथमिकी को रद्द कर दिया है ।

जस्टिस पंकज नकवी व जस्टिस विवेक अग्रवाल की खंडपीठ ने यह आदेश दिया है। न्यायालय ने प्राथमिक रद्द करते हुए कहा कि यह दुर्भावना से प्रेरित होकर दर्ज कराई गई थी।अदालत ने सख्त टिप्पणी करते हुए कहा कि यदि प्रशासन फेसबुक पर कोरेंटाइन सेंटर की अव्यवस्था और उसकी कमियों के खिलाफ की गई टिप्पणियों के आधार पर अपनी व्यवस्था में सुधार करता या इस पोस्ट के बाद उसमें इंगित की गई कमियों में सुधार लाता और अपनी व्यवस्थागत कमियों को दूर करता तो वह इस बात की प्रशंसा करता,लेकिन प्रशासन ने ऐसा कुछ ना करके अपने द्वारा किए गए कृत्य को न्यायोचित ठहराने का प्रयास किया।

न्यायालय ने कहा है कि इससे ऐसा लगता है जैसे राज्य का अपने अधिकारियों पर नियंत्रण ख़त्म हो रहा है और वे विरोध के किसी स्वर को उठने ही नहीं देना चाहते हैं। वस्तुतः सुधारवादी आवाजों के प्रति असहिष्णुता प्रदर्शित करने के लिए प्रशासन दोषी है और यह न्याय के प्रशासन में एक प्रकार का हस्तक्षेप है।

गौरतलब है कि इलाहाबाद विश्वविद्यालय के पुस्तकालय अध्यक्ष डॉ बी के सिंह के उनके कुछ शुभचिंतकों से हुई बातचीत के आधार पर ऑक्टा महासचिव डॉ उमेश प्रताप सिंह ने प्रयागराज के कोटवा क्वॉरेंटाइन सेंटर की बदहाली की स्थिति को लेकर फेसबुक पर टिप्पणी की थी। बाद में डॉ बीके सिंह ने अपनी बात का खंडन किया और और कहा कि वहां कोई अव्यवस्था नहीं है।

प्रशासन की तरफ से सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र कोटवा बनी, प्रयागराज के सुपरिटेंडेंट डॉ अमृत लाल यादव ने 23 जून 2020 को डॉ उमेश प्रताप सिंह के खिलाफ एफ आई आर दर्ज कराई। जिसमें आईपीसी के सेक्शन 500 (2) और 500 के प्रावधानों के तहत अपराध दर्ज किया गया। गत 24 जून को ही महामारी (संशोधन) विधेयक 2020 के सेक्शन 3(2) के तहत एक नई धारा जोड़ दी गयी।

इसके विरुद्ध डॉ उमेश प्रताप सिंह ने उच्च न्यायालय में याचिका दायर कर दर्ज प्राथमिकी को चुनौती दी । उनके वकील ए के त्रिपाठी ने न्यायालय में पक्ष रखते हुए कहा कि किसी भी क्वारंटाइन सेंटर की अव्यवस्था और उसकी कमियों को उजागर करना किसी भी प्रकार से भारतीय दंड संहिता की धारा 505 दो और 501 के तहत अपराध नहीं बनता है। और न ही महामारी (संशोधन) विधेयक 2020 के अंतर्गत किसी प्रकार का अपराध नहीं बनता है। न्यायालय का भी मानना है कि यदि कोई नागरिक प्रशासन की व्यवस्था से असंतुष्ट होकर फेसबुक पर कोई पोस्ट लिखता है तो इसे वैमनस्व बढ़ाने वाला अथवा व्यवस्था को बदनाम करने वाली प्रिंटेड विषय वस्तु के रूप में नहीं देखा जा सकता है। इस कारण यह महामारी एक्ट की धाराओं के तहत नहीं आता है । उच्च न्यायालय में डॉ अमृत लाल यादव व्यक्तिगत रूप से रहे । न्यायालय ने कहा कि ना तो डॉक्टर यादव और ना ही सरकार के अधिवक्ता यह बता पाने में सक्षम रहे कि उक्त धाराओं के तहत किस आधार पर याची के खिलाफ मुकदमा दर्ज किया गया।

न्यायालय ने कहा कि यह स्पष्ट है कि राज्य के अधिकारियों द्वारा अपने क्वॉरेंटाइन सेंटर के कुप्रबंधन और कुव्यवस्था के विरुद्ध उठाई गई आवाज को कुचलने के लिए एफ आई आर किया गया और इस प्रकार का एफआईआर स्पष्ट रूप से दुर्भावनापूर्ण है और रद्द करने योग्य हैं । अदालत ने कोटवा बनी प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र के सुपरिंटेंडेंट डॉ यादव व सी एम एस पर पांच हजार रूपया हर्जाना लगाया है जो उन्हें अपने वेतन से देना है ।

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