हमने भंग की है ग्लेशियरों की तपस्या

भारतीय वायुसेना ने उत्तराखंड आपदा की कमान संभाल ली थी सर्दी के मौसम में हुए इस हादसे ने वैज्ञानिकों को भी हैरत में डाल दिया

Update: 2021-02-09 06:38 GMT

नई दिल्ली। उत्तराखंड के चमोली जिले में ग्लेशियर फटने से भारी तबाही के कारण इन पंक्तियों के लिखे जाने तक 10 लोगों की मौत हो चुकी थी जबकि 150 लोग लापता बताए गये थे। उत्तराखंड में तबाही को देखते हुए उप्र और बिहार में गंगा किनारे के सभी जिलों को हाई अलर्ट पर रखा गया था। इस तबाही के बाद राहत एवं बचाव कार्य लगातार जारी थे। ऐसा कहा जा रहा था कि चमोली में अभी भी कुछ लोग टनल में फंसे हुए हैं। टनल को खोलने के लिए एक्सावेटर और पोकलैंड मशीन लगाई गई है।

भारतीय वायुसेना ने उत्तराखंड आपदा की कमान संभाल ली थी। सर्दी के मौसम में हुए इस हादसे ने वैज्ञानिकों को भी हैरत में डाल दिया क्योंकि गर्मी के दिनों में हिमखंडों अर्थात ग्लेशियर का पिघलना स्वाभाविक होता है लेकिन फरवरी की 7 तारीख सर्दी से भरी रहती है। उत्तराखंड में इसबार जमकर बर्फ भी गिरी है लेकिन ग्लोबल वॉर्मिंग से उत्तराखंड भी प्रभावित हुआ है। भू वैज्ञानिकों ने चेतावनी भी दे रखी थी। चमोली की तबाही ने एक और चेतावनी दी है। प्रकृति हमारी कार्य प्रणाली से नाराज है। उसे और ज्यादा नाराज मत होने दीजिए, वरना ऐसे ही तबाही के मंजर देखने को मिलेंगे।

उत्तराखंड में ग्लेशियर टूटने से उत्पन्न हुई परिस्थितियों के मद्देनजर मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने 7 फरवरी को ही उत्तर प्रदेश के संबंधित विभागों और अधिकारियों को हाई अलर्ट पर रहने का निर्देश दिया और घटना पर दुख प्रकट किया। मुख्घ्यमंत्री के निर्देश के बाद गंगा किनारे बसे जिलों में प्रशासनिक सक्रियता बढ़ गई । केंद्र सरकार ने कहा कि उत्तराखंड के चमोली जिले में ग्लेशियर के फटने से प्रभावित नदी के जल स्तर में वृद्धि हुई है. हालांकि निचले स्घ्तर के गांवों को कोई दिक्कत नहीं है। अब राज्य के अन्य गांवों और हाइड्रोप्रोजेक्ट्स के लिए कोई खतरा नहीं है। राष्ट्रीय आपदा प्रतिक्रिया बल (एनडीआरएफ ) और राज्य आपदा प्रतिक्रिया बल (एसडीआरएफ ) के साथ रेस्क्यू ऑपरेशन में लगी भारत-तिब्बत सीमा पुलिस (आई टीबीपी) ने कहा कि वह रात में ऑपरेशन जारी रखेगी। इससे पहले बल ने कहा था कि उसने लगभग 10 शव बरामद किए हैं। एसडीआरएफ ने कहा था कि लगभग 170 लोग लापता हैं। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने मृतकों के परिवार को पीएमएनआरएफ से 2-2 लाख रुपये और गंभीर रूप से घायलों को 50-50 हजार मुआवजे का ऐलान किया है।

उत्तराखंड के सीएम त्रिवेंद्र सिंह रावत ने कहा कि इस घटना में जिन लोगों की मृत्यु हुई है, उन सभी के परिवार को राज्य सरकार 4-4 लाख रुपये मुआवजा के तौर पर देगी। चमोली पुलिस कंट्रोल रूम के अनुसार, नदी का जलस्तर बढ़ रहा है। चमोली के पुलिस अधीक्षक यशवंत सिंह चैहान के आदेशानुसार, नदी के आस-पास के इलाकों में रहने वाले लोगों को अलर्ट किया जा रहा है। उत्तराखंड के डीजीपी अशोक कुमार ने कहा कि एनटीपीसी की 900 मीटर लंबी तपोवन सुरंग में बचाव कार्य जल स्तर बढ़ने के कारण रोकना पड़ा।

उत्तराखंड के चमोली जिले के जोशीमठ में नंदा देवी ग्लेशियर का एक बड़ा हिस्सा टूटने के कारण धौली गंगा नदी में आयी भीषण बाढ़ से प्रभावित लोगों के बचाव के लिए सेना ने चार कॉलम और दो मेडिकल टीमें तैनात की थीं। अधिकारियों ने बताया कि जोशीमठ के रिंगी गांव में सेना के इंजीनियरिंग टास्क फोर्स का एक दल भी तैनात किया गया । तपोवन-रेणी पनबिजली परियोजना में काम कर रहे 150 से ज्यादा मजदूरों के मारे जाने की आशंका है।

चमोली की तबाही ने 2013 की याद दिला दी है। उत्तराखंड में एक बार फिर भारी तबाही देखने को मिल रही है। चमोली जिले में ग्लेशियर टूटने से अलकनंदा और धोलीगंगा नदी उफान पर चढ़ गई, जिसके चलते आस-पास के इलाकों को खाली कराया गया और लोगों से सुरक्षित स्थानों पर चले जाने की अपील की गयी। आईटीबीपी के जवान बचाव कार्य के लिए पहुंचे। इससे पहले साल 2013 में हुई तबाही ने भारत ही नहीं बल्कि पूरी दुनिया हो हिला कर रख दिया था। साल 2013 में हुई केदारनाथ की आपदा में कई हजार जानें चली गई थीं। लोगों को अपने परिवार वालों के शव तक नसीब नहीं हो पाए थे। दुनिया के कई बड़े अखबारों ने इसे पूरी दुनिया में हुई सबसे बड़ी आपदाओं में से एक माना था।

उत्तराखंड में तबाही का यह मंजर प्रकृति से हद से ज्यादा छेडछाड़ की चेतावनी है।बताते हैं हिमालय के ग्लेशियर के तेजी से पिघलने को लेकर 2019 में ही दी गई थी। अध्ययनकर्ताओं ने कहा था कि भारत, चीन, नेपाल और भूटान में 40 वर्षों के दौरान उपग्रह से ली गई तस्वीरों के अध्ययन में पाया गया कि जलवायु परिवर्तन के चलते हिमालयी हिमखंड समाप्त हो रहे हैं।

उत्तराखंड के चमोली जिले में 7 फरवरी को हिमखंड टूटने के कारण आई भीषण बाढ़ की घटना ने हिमालय के हिमखंडों के पिघलने को लेकर आगाह करने वाले वर्ष 2019 के एक अध्ययन में किये गये दावों की फिर से याद दिला दी है। वर्ष 2019 में प्रकाशित एक अध्ययन में यह दावा किया गया था कि तापमान में वृद्धि के कारण 21वीं सदी की शुरुआत के बाद से ही हिमालय के हिमखंड (ग्लेशियर) दोगुनी तेजी से पिघल रहे हैं, जिसके चलते भारत समेत विभिन्न देशों के करोड़ों लोगों को जलापूर्ति प्रभावित होने का सामना करना पड़ सकता है। साइंस एडवांस जर्नल में जून 2019 में प्रकाशित इस अध्ययन के मुताबिक, हिमालय के हिमखंड वर्ष 2000 के बाद से वर्ष 1975 से 2000 की तुलना में दोगुना अधिक तेज गति से पिघल रहे हैं।

अमेरिका के कोलंबिया विश्वविद्यालय के अनुसंधानकर्ता जोशुआ मोरेर ने कहा है कि यह तस्वीर बिल्कुल स्पष्ट है कि इस समयावधि में कितनी तेजी से और क्यों हिमालय के हिमखंड पिघल रहे हैं? मोरेर ने कहा, हालांकि, अध्ययन में यह सटीक गणना नहीं की गई है, लेकिन पिछले चार दशकों में हिमखंडों ने अपने विशाल द्रव्यमान (आकार) का एक चैथाई हिस्सा खो दिया है। अध्ययन के दौरान पूरे क्षेत्र की शुरुआती दौर की उपग्रह से ली गई तस्वीरों और वर्तमान तस्वीरों के बीच फर्क पाया गया। अध्ययनकर्ताओं ने बढ़ते तापमान को इसके लिए जिम्मेदार ठहराया और कहा कि अलग-अलग स्थान का तापमान भिन्न हैं, लेकिन यह वर्ष 1975 से 2000 की तुलना में वर्ष 2000 से 2016 के बीच औसतन एक डिग्री अधिक पाया गया है। उन्होंने पश्चिम से पूर्व तक 2,000 किलोमीटर के दायरे में फैले करीब 650 हिमखंडों की सेटेलाइट (उपग्रह से ली गई) तस्वीरों का अध्ययन किया था।

अमेरिकी खुफिया उपग्रहों के द्वारा ली गई त्रि आयामी (थ्री डी)तस्वीरों के जरिए समय गुजरने के साथ ही हिमखंडों में आए बदलाव को स्पष्ट रूप से देखा जा सकता था। बाद में अध्ययनकर्ताओं ने जब वर्ष 2000 के बाद ली गई तस्वीरों की पुरानी तस्वीरों से तुलना की तो सामने आया कि 1975 से 2000 के दौरान प्रतिवर्ष हिमखंडों की 0.25 मीटर बर्फ कम हुई। वहीं, यह भी पाया गया कि 1990 के दशक में तापमान में वृद्धि के चलते यह बढ़कर आधा मीटर प्रतिवर्ष हो गई। अब हमें विचार करना है कि इसके लिए हम लोग कितने जिम्मेदार हैं। हमने अंधाधुन्ध पेड़ काटे हैं, जंगल उजड़ गये और पहाड़ नंगे हो गये। ग्लेशियरों की तपस्या हमने भंग की है, कहीं ये उनका कोप तो नहीं है ?

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