भाजपा के सामने रिकॉर्ड बचाने की चुनौती

भारतीय जनता पार्टी के सामने पिछला रिकार्ड बचाने की चुनौती है, वहीं विपक्ष की सत्ता परिवर्तन करने की बेताबी साफ नजर आ रही है

Update: 2022-02-08 15:07 GMT

अमरोहा। उत्तर प्रदेश के अमरोहा जिले में भारतीय जनता पार्टी के सामने पिछला रिकार्ड बचाने की चुनौती है, वहीं विपक्ष की सत्ता परिवर्तन करने की बेताबी साफ नजर आ रही है। यहां दलित मतदाता निर्णायक भूमिका में है। चुनाव के दूसरे चरण में जिले की चार विधानसभा सीटों पर 14 फरवरी को मतदान होगा।

वर्ष 2017 के विधानसभा चुनाव में जिले में चार में से तीन सीटों पर भाजपा को जीत मिली थी जबकि एक में सपा गठबंधन ने विजय पताका फहराई थी।

पांचवीं जीत के लिए जोर आजमाइश कर रहे अमरोहा सदर विधायक व लोकलेखा समिति के अध्यक्ष महबूब अली का तिलिस्म तोड़ऩे की भाजपा की रणनीति इस बार कितनी कामयाब हो पाती है यह तो चुनाव परिणाम के बाद ही पता चल सकेगा, लेकिन दलित मतदाता की बंधी मुठ्ठी और लक्ष्य पर पैनी नज़र को देखते हुये लगता है कि इस बार चौंकाने वाले परिणाम सामने आएंगे।

अमरोहा विधानसभा में कुल मतदाता 3,12,862 हैं जिनमें दो लाख से अधिक मुसलमान, लगभग 35 हजार दलित, 15 हजार सैनी व शेष गुर्जर-जाट, बनिया-ब्राह्मण व अन्य जातियों के मतदाता शामिल हैं। वर्ष 2017 के चुनाव में महबूब अली सबसे कम अंतर 15 हजार 42 वोटों से जीते थे। हालांकि राजनीतिक समीकरण के लिहाज से इस सीट पर सबसे बड़ा उलटफेर होने की कयासबाजी चर्चाओं में है।

अमरोहा की चार विधानसभा सीटों पर कुल 43 उम्मीदवार चुनाव मैदान में हैं जिनकी तकदीर 13,47,726 वोटरों के हाथ में है। आधी आबादी के लिए इस बार केवल कांग्रेस ने सोचा और उस पर खरी उतरी। कांग्रेस से एकमात्र महिला उम्मीदवार रेखा रानी नौगावां सादात से उतारी गई हैं। जिले में कुल चार विधानसभा सीटों अमरोहा, धनौरा, हसनपुर और नौगांवा सादात में से 2017 के चुनाव में तीन सीटों पर भाजपा ने जीत हासिल की थी।

जिले में मतदाताओं को लुभाने के लिए लगभग सभी राजनीतिक दलों के दिग्गज यहां आ चुके हैं जिनमें बसपा सुप्रीमो मायावती, रक्षामंत्री राजनाथ सिंह, भाजपा अध्यक्ष जेपी नड्डा, गृहमंत्री अमित शाह, भाजपा प्रदेश अध्यक्ष स्वतंत्र देव, आल इंडिया मजलिस इत्तेहाद-ए-मुस्लिमीन (एआइएमआइएम) अध्यक्ष सांसद असदुद्दीन ओवैसी शामिल हैं, वहीं वर्चुअल रैली के माध्यम से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी यहां की जनता को संबोधित कर चुके हैं।

उम्मीद है कि 12 फरवरी को समाजवादी पार्टी के अध्यक्ष व पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव अमरोहा में रथ लेकर पहुंचेंगे। उनके साथ रालोद अध्यक्ष जयंत चौधरी के आने की भी संभावना है।

अमरोहा विधान सीट पर पूर्व मंत्री एवं वर्तमान विधायक महबूब अली, नौगावां सादात में सिटिंग विधायक संगीता चौहान के स्थान पर पूर्व सांसद देवेंद्र नागपाल, पूर्व विधायक समरपाल सिंह, मंडी धनौरा में भाजपा के मौजूदा विधायक राजीव तरारा,बसपा छोडकर सपा में शामिल बडे नेताओं में शुमार पूर्व सांसद वीर सिंह, इनके पुत्र विवेक गठबंधन प्रत्याशी के रूप में मैदान में हैं जबकि हसनपुर में भाजपा के मौजूदा विधायक महेंद्र सिंह खड़गवंशी,और सपा-रालोद गठबंधन की ओर से मुखिया गुर्जर तथा बसपा के फिरे सिंह गुर्जर चुनाव मैदान में है।

भाजपा के साथ-साथ समाजवादी पार्टी गठबंधन को भी अपना जीत का अंतर बढाने के साथ-साथ मौजूदा सीट जीतने की चुनौती बनी हुई है। जोर आजमाइश के तहत एक दूसरे पर आरोप प्रत्यारोप और जाति मजहब की राजनीति अधिक हो रही है। जनता का हित किनारे कर अपना हित साधने पर ज्यादा जोर है। अपनी जीत के लिए वह किसी भी हद तक जा सकते हैं। वैसे इस बार चुनावी रंग कुछ अलग ही तरीक़े से चटख है। हाईटेक वार में मंच आभासी जरूर हैं लेकिन जंग असली है।

यहां के प्रमुख मुद्दे में अमरोहा में जलभराव, पोंटी चढ्ढा के वेव ग्रुप को बेची अमरोहा की बंद पडी चीनी मिल, कैलसा में रेलवे लाइन पर ओवरब्रिज, अमरोहा में अंडरपास,औद्योगिक क्षेत्र में दर्जनों फैक्ट्रियों के बंद हो जाने से हजारों की तादाद में बेरोजगारों को रोजगार की समस्या, गजरौला में यूपी रोडवेज बस डिपो की स्थापना, दिल्ली-लखनऊ नेशनल हाईवे-24-9 पर आए दिन सडक दुर्घटनाओं में इलाज के अभाव में मौतों में बढोत्तरी, यहां ट्रामा सेंटर की बरसों पुरानी मांग, उत्तराखंड के अलग हो जाने के बाद से गढगंगा-बृजघाट-तिगरीधाम को धार्मिक पर्यटन स्थल के रूप में विकसित करने की सरकार की घोषणा हवा हवाई साबित होने, हसनपुर में फायर स्टेशन, मेडिकल कॉलेज और सरकारी डिग्री कॉलेज है।

जनसंपर्क के दौरान धनौरा से मौजूदा विधायक भाजपा प्रत्याशी राजीव तरारा तथा हसनपुर से मौजूदा विधायक तथा भाजपा प्रत्याशी महेंद्र सिंह खडगवंशी से जनता जवाब मांग रही है।सत्ता विरोधी असंतोष गुस्से में तब्दील हो जाने से अमरोहा के चुनाव में समाजवादी पार्टी तथा रालोद गठबंधन ,भाजपा के लिए चुनावी समरभूमि में सीधे मुकाबले भी टेढे दिख रहे हैं।

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