भारत को मोदी पर गर्व
मंदिर जाना रूढ़िवादिता नहीं है। गंगा जैसी पवित्र नदियों को प्रणाम करना पिछड़ापन नहीं है।
नई दिल्ली। गीता भारतीय दर्शन का प्रतिनिधि ग्रंथ है। मोदी ने अनेक राष्ट्राध्यक्षों को गीता भेंट की है। मोदी पर सारी दुनिया का भरोसा बढ़ा है। हाल ही में उन्होंने रूस के राष्ट्रपति से कहा यह समय युद्ध का नहीं है। युद्ध से कोई लाभ नहीं होता। प्रधानमंत्री ने अपने अभियानों से सिद्ध कर दिया है कि धर्म और संस्कृति की पक्षधरता और प्रतिबद्धता किसी भी रूप में साम्प्रदायिकता नहीं है। मंदिर जाना रूढ़िवादिता नहीं है। गंगा जैसी पवित्र नदियों को प्रणाम करना पिछड़ापन नहीं है।
भारत के धरती और आकाश केसरिया हो गए हैं। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में भारत का आत्मविश्वास सातवें आसमान पर है। अब भारत की ओर दुनिया की कोई भी महाशक्ति आंख नहीं उठा सकती। एक नई तरह का सांस्कृतिक पुनर्जागरण चल रहा है। हम भारत के लोग अपनी विशेष संस्कृति के कारण दुनिया के अद्वितीय राष्ट्र हैं। विदेशी सत्ता के दौरान यहां धर्म, संस्कृति और सांस्कृतिक प्रतीकों के अपमान का वातावरण था। भारतीय ज्ञान परंपरा को अन्धविश्वास कहा जा रहा था। पश्चिम से आयातित सेकुलर विचार ने भारतीय परंपरा को अपमानित करने का पाप किया था। हिन्दू होना अपमानजनक था। मोदी ने भारत के स्वाभाविक विचार प्रवाह को नेतृत्व दिया। धार्मिक सांस्कृतिक प्रतीक गर्व के विषय बनें। मोदी ने काशी विश्वनाथ कॉरिडोर के उदघाटन कार्यक्रम में श्रेष्ठ भारत का बिगुल फूंका। सांस्कृतिक कार्यक्रम से चिढ़े कथित प्रगतिशील सेकुलर तत्व मोदी पर हमलावर थे। कथित सेकुलर खेमें ने प्रधानमंत्री के कार्यक्रम को सेकुलर विरोधी बताया था। कहा था कि, मोदी ने मंदिर के धार्मिक कार्यक्रम में हिस्सा लेकर संविधान में उल्लिखित सेकुलर भावना का अपमान किया है। मोदी अपनी धुन के पक्के हैं। प्रधानमंत्री के रूप में उन्होंने भारतीय धर्म साधना व संस्कृति को लगातार मजबूती दी है।
यूरोपीय कालगणना में ''ईसा के पूर्व व ईसा के बाद'' समय का विभाजन है। समय विभाजन की इस धारणा में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी का नाम जुड़ गया है। भारत के संदर्भ में धर्म संस्कृति और लोकमंगल मोदी के पूर्व व मोदी के समय विचारणीय हैं। मोदी के पहले भारत का मन उदास था, अब मोदी के समय भारत का मन उल्लास में है। मोदी के पहले भारत का मन आत्मविश्वासहीन था, अब मोदी के समय भारत आत्मनिर्भर हो रहा है। राष्ट्रजीवन के सभी क्षेत्रों में उमंग, उत्साह का वातावरण है। भारत आत्मविश्वास से भरा पूरा है। धर्म संस्कृति को लेकर मोदी के पहले हीन भाव था। विदेश आयातित सेकुलर पंथ का प्रभाव था। राजनैतिक वातावरण अल्पसंख्यकवादी था। अब मोदी के समय राष्ट्र सर्वोपरिता का वातावरण है। मोदी विरल हैं, स्वभाव से संवेदनशील तरल हैं। उनके 'मन की बात' पर राष्ट्र का भरोसा है। संसद संवैधानिक जनप्रतिनिधि सदन है। प्रधानमंत्री के रूप में जब वे पहली दफा संसद पहुंचे, उन्होंने संसद को साष्टांग प्रणाम किया। मोदी के पहले ऐसा दूसरा उदाहरण नहीं मिलता। जम्मू कश्मीर की विशेष संवैधानिक स्थिति (अनु.370) समूचे राष्ट्र के लिए चिंता का विषय थी। इसकी समाप्ति राष्ट्रवादियों की गहन अभिलाषा थी। मोदी के नेतृत्व में इस व्यवस्था का निरसन हुआ। इतिहास देवता ने मोदी के कर्म संकल्प को सम्मान जनक ढंग से अपने अंतः स्थल में संरक्षित किया है। मोदी अंतर्राष्ट्रीय नेता हैं।
योग सम्पूर्ण विज्ञान है। मोदी विरोधी योग विज्ञान पर भी आक्रामक रहे हैं। पतञ्जलि (लगभग 185-184 ई०पू०) ने योग सूत्र लिखे थे। योग विश्व को भारतीय ध्यान साधना का अद्वितीय उपहार है। मोदी ने संयुक्त राष्ट्र में योग की मान्यता का प्रस्ताव किया। मोदी के प्रस्ताव को 170 से ज्यादा देशों का समर्थन मिला। इनमें 47 मुस्लिम देश हैं। 21 जून अंतर्राष्ट्रीय योग दिवस घोषित किया गया। उन्होंने सेकुलरपंथियों की परवाह न करते हुए अयोध्या के श्रीरामजन्मभूमि के शिलान्यास में हिस्सा लिया। श्रीराम जन्मभूमि मंदिर राष्ट्र का स्वप्न था। स्वप्न सच हो रहा है। वाराणसी में वे गंगा आरती में सम्मिलित हुए। उन्होंने केदारनाथ मंदिर में 15 घंटे साधना की। वे दुनिया के सभी देशों में अपनी यात्रा के दौरान भारत के सांस्कृतिक प्रतीकों की प्रतिष्ठा बढ़ाते हैं। वे इस विशाल और प्राचीन देश की मूल चेतना को प्रतिनिधित्व देते हैं। बांग्लादेश की यात्रा में गए। ढाकेश्वरी मंदिर पहुंचे। देवी की उपासना की। इसी तरह नेपाल के पशुपतिनाथ मंदिर गए। पूजा और उपासना की। धर्म संस्कृति के प्रति सेकुलरों द्वारा बढ़ाया गया हीन भाव समाप्त हो रहा है। लोक में प्राचीन संस्कृति के प्रति आदर व आत्मविश्वास बढ़ा है।
मंदिर भारतीय साधना के शिखर कलश हैं। मंदिर भारत के लोगों को आश्वस्ति देते हैं। सेकुलरपंथी मंदिर के नाम पर चिढ़ते हैं। लेकिन मोदी अपनी सांस्कृतिक प्रतिबद्धता से समझौता नहीं करते। उन्होंने करतारपुर साहिब में श्रद्धालुओं के आवागमन की सुविधा बहाल कराई। कैलाश मानसरोवर के तीर्थ यात्री अव्यवस्था से परेशान थे। चीन में होने के कारण इसकी व्यवस्था कठिन थी। डा० राम मनोहर लोहिया की बात याद आती है। लोहिया जी ने कहा था कि ''दुनिया में ऐसी कोई कौम नहीं जो अपने सबसे बड़े देवता शिव को परदेस में बसा दे। लेकिन यह बहुत दिन नहीं चलेगा। भारत की गद्दी पर शक्तिहीन और कमजोर ही नहीं बैठे रहेंगे। एक दिन ऐसा आएगा जब सब बदल जाएगा।'' वाकई अब यह समय आ गया है। मोदी ने कैलाश मानसरोवर यात्रा को आसान बनाया है। मोदी जहां-जहां जाते हैं, वहां-वहां भारत की संस्कृति का ध्वज ऊंचा करते हैं।
गीता भारतीय दर्शन का प्रतिनिधि ग्रंथ है। मोदी ने अनेक राष्ट्राध्यक्षों को गीता भेंट की है। मोदी पर सारी दुनिया का भरोसा बढ़ा है। हाल ही में उन्होंने रूस के राष्ट्रपति से कहा यह समय युद्ध का नहीं है। युद्ध से कोई लाभ नहीं होता। प्रधानमंत्री ने अपने अभियानों से सिद्ध कर दिया है कि धर्म और संस्कृति की पक्षधरता और प्रतिबद्धता किसी भी रूप में साम्प्रदायिकता नहीं है। मंदिर जाना रूढ़िवादिता नहीं है। गंगा जैसी पवित्र नदियों को प्रणाम करना पिछड़ापन नहीं है। श्रीराम, श्रीकृष्ण और शिव की प्रत्यक्ष उपासना रूढ़िवादिता नहीं है। देश काल वातावरण बदल चुका है। मोदी ने हिन्दू जीवन शैली और प्रतीकों को प्रतिष्ठित किया है। इसका सर्वव्यापी प्रभाव हुआ है। अब हिन्दू और हिन्दुत्व की उपेक्षा संभव नहीं है। सेकुलर राजनीति में सक्रिय वरिष्ठ महानुभाव भी हिन्दू प्रतीकों से जुड़ रहे हैं। हिन्दुत्व से अलग रहकर राजनीतिक क्षेत्र में भी कोई संभावना नहीं है। राहुल गांधी भी हिन्दू होने का प्रचार कर चुके हैं। इस राजनीति द्वारा जनेऊ भी दिखाए जा रहे हैं। मोदी के परिश्रम का परिणाम है कि हिन्दू मान्यताएं सर्वमान्य हो रही हैं। सबसे बड़ी बात है कि भारतीय विचार के विरोधी सेकुलर पंथ की विदाई तय हो चुकी है। कला के क्षेत्र में भी मोदी के सांस्कृतिक राष्ट्रवाद का जादू है। पहले सिनेमा के कथानक में मंदिरों और महंतों को अपमानजनक ढंग से प्रस्तुत किया जाता था। अब भारत के नए वातावरण में हिन्दुओं का मजाक बनाने वाले कथानक पसंद नहीं किये जाते। पूरे भारत का वातावरण बदल गया है। संस्कृति तत्व सत्य सिद्ध हो चुके हैं। एक नई तरह का नवजागरण गठित हो रहा है। इस राष्ट्र जागरण में भारत की रीति की प्रतिष्ठा है। भारत की प्रीति का अभिनन्दन है। भारत की नीति की प्रतिष्ठा है। यह सब काम आसान नहीं था। पहले हिन्दू होना पीड़ादाई था। अब हिन्दू होना सौभाग्यशाली होना है। यह नामुमकिन था लेकिन मोदी के कारण मुमकिन हो चुका है। मोदी ने वाकई में चमत्कार किया है। समूचा विश्व भारत की लगातार बढ़ रही प्रतिष्ठा को ध्यान से देख रहा है। मोदी के पांच प्रण- '2047 तक विकसित भारत', 'गुलामी के अहसास से आजादी', 'विरासत पर गर्व', 'एकता व एकजुटता पर जोर' व 'नागरिकों का कर्तव्य' - भारत के प्रण संकल्प हैं। राष्ट्र इनसे प्रतिबद्ध है। (हिफी)