किसान सस्ते में उपज बेचने को है मजबूर
सरकारी खरीद मूल्य 3880 रुपए प्रति क्विंटल घोषित हुआ है किसानों को आढ़तियों से 3000 से 3500 रुपए प्रति क्विंटल तक के मूल्य ही मिल पा रहे हैं।
कोटा। राजस्थान में कोटा संभाग के खरीफ के कृषि क्षेत्र की मुख्य फसलों सोयाबीन, मूंग, उड़द और मूंगफली के समर्थन मूल्य की सरकार ने घोषणा तो कर दी है, लेकिन सरकारी खरीद शुरु नहीं होने से किसानों को फसलें औने -पौने दामों में मजबूर होना पड़ रहा है।
राज्य सरकार ने सोयाबीन की 3880 रुपए प्रति क्विंटल जबकि उड़द की 6000 रुपए, मूंग की 7106 रुपए, मूंगफली की 5272 रुपए प्रति क्विंटल तय की थी, लेकिन फिलहाल यह घोषणा ही है इसका लाभ किसानों को तुरंत नहीं मिल पायेगा, क्योंकि अभी सोयाबीन, मूंग, मूंगफली, उड़द आदि की खरीद के लिए ऑनलाइन रजिस्ट्रेशन की प्रक्रिया ही शुरू नहीं हो पाई है, यह ऑनलाइन प्रक्रिया मंगलवार से शुरू होगी।
जहां तक किसानों से उनकी उपज की खरीद का सवाल है तो खरीद का काम अगले महीने की एक तारीख यानी एक नवम्बर से शुरू होगा और मात्र 18 दिन तक चलेगा।
यह सर्वविदित है कि राजस्थान में हाड़ौती संभाग को सबसे अधिक सोयाबीन उत्पादक क्षेत्र माना जाता है और संभाग के चारों जिलों कोटा, झालावाड़, बारां और बूंदी में इसकी बड़े पैमाने पर बुआई होती है। चूंकि कम खर्चीली और कम सिंचाई की आवश्यकता की फसल होने के कारण हाड़ौती में हर साल इसका व्यापक उत्पादन होता है। लिहाजा सोयाबीन की समर्थन मूल्य पर सरकारी खरीद मात्र 18 दिन में होना संभव नहीं लग रहा है क्योंकि खरीद के कामकाज को देखने वाली सरकारी मशीनरी कितनी गति से कार्य करती है, यह जगजाहिर है।
ऐसे में कितने किसान सरकारी समर्थन मूल्य पर अपनी उपज बेच पाएंगे, यह कहना मुश्किल है। राज्य सरकार के स्तर पर दावा तो यह किया जा रहा है कि केंद्र सरकार ने खरीफ कृषि सत्र की उपजों में शामिल सोयाबीन की 2.92 लाख, मूंग की 3.57 लाख, मूंगफली की 3.74 लाख और उड़द की 71.55 हजार टन खरीद के लक्ष्य को मंजूरी प्रदान की है और इसकी खरीद के लिए राज्य सरकार ने सोयाबीन की खरीद के लिए 79, मूंग के 365, मूंगफली के 266 और उड़द के 161 खरीद केंद्र तय किए हैं जहां समर्थन मूल्य पर किसानों की उपज की खरीद की जाएगी।
सूत्रों ने बताया कि राजस्थान के हाड़ौती संभाग के ज्यादातर इलाकों में किसानों की खरीफ की मुख्य फसल सोयाबीन सहित अन्य दलहनी फसलें पक चुकी हैं और कटकर बाजार में आने के लिए तैयार हैं। संभाग के चारों जिलों कोटा, बूंदी, बारां और झालावाड़ की कृषि उपज मंडी में काफी कम दाम पर बिक रही हैं, क्योंकि समर्थन मूल्य पर सरकारी खरीद की केवल 'कागजी' घोषणा हुई है, लिहाजा किसान बिचौलियों -आढ़तियों को औने -पौने दामों पर अपनी उपज बेचने को मजबूर है। इसकी मुख्य वजह यह भी है कि नवरात्रि के साथ त्योहारी दिन आने से किसानों के पास अपनी आर्थिक जरूरतों को पूरा करने के लिए दूसरा विकल्प ही नहीं है।
छोटी जोत के किसानों के लिए समर्थन मूल्य पर सरकारी खरीद केंद्रों पर अपनी उपज बेचने के लिए लंबे समय तक प्रतीक्षा करना काफी मुश्किल है। अभी घोषित सरकारी मूल्य पर खरीद की फसलों की खरीद दूर की कौड़ी है इसलिए जरूरतमंद किसान कम दामों पर अपनी फसल बेचने को मजबूर हैं। चूंकि सोयाबीन खरीफ के कृषि सत्र में हाड़ौती अंचल की मुख्य फसल है। इसका सरकारी खरीद समर्थन मूल्य 3880 रुपए प्रति क्विंटल घोषित किया हुआ है, लेकिन फिलहाल सरकारी खरीद शुरु नहीं होने से किसानों को आढ़तियों-बिचौलियों से 3000 से 3500 रुपए प्रति क्विंटल तक के मूल्य ही मिल पा रहे हैं।
यही हालत बूंदी और बारां जिले में बड़े पैमाने पर उत्पादित होने वाले धान के दामों की है। पिछले साल धान 3500 रुपए प्रति क्विंटल के दाम तक बिका था जबकि अभी बिचौलिए इसे 1500 से 1700 रुपए क्विंटल के भाव पर खरीद रहे हैं। मक्का का वैसे तो समर्थन मूल्य 1850 रुपए प्रति क्विंटल घोषित किया गया है, लेकिन कृषि उपज मंडियों में यह मात्र 800 से 1100 रुपए प्रति क्विंटल के भाव पर बिक रहा है।
इसी तरह सरकारी समर्थन मूल्य पर अपनी फसल बेचने के लिए किसानों को इतनी मुश्किलों का सामना करना पड़ता है कि वे लड़ने से पहले हार जाते हैं। इसकी शुरुआत फसल के लिए फसल को बेचने के लिए कंप्यूटर पर ऑनलाइन पंजीकरण से ही शुरू हो जाती है जो बैंक खाते में भुगतान होने तक जारी रहती है, क्योंकि ऐसे किसानों की संख्या कम नहीं है जो अभी भी इस सारे तकनीकी ज्ञान से अनभिज्ञ हैं।
सूत्रों ने बताया कि सरकारी खरीद पर फसल बेचने के लिये किसानों को पहले ऑनलाइन पंजीयन करवाना होगा और शर्त यह कि जन आधार कार्ड में से जिसके नाम गिरदावरी होगी, उसके नाम से ही पंजीयन होगा। यानी पहले जन आधार कार्ड बनाना भी जरूरी है। ऐसे लोगों की संख्या काफी है जिनके पास यह कार्ड नहीं है। इसके अलावा मोबाइल होना चाहिए जो इस कार्ड से लिंक हो। बैंक खाता तो होना जरूरी है। किसान पर इतनी सारी जिम्मेदारी थोप कर सरकार एक हेल्पलाइन नंबर देखकर अपनी सारी दुश्वारियों से मुक्ति पा जाती है।
वार्ता