पुलिस को धारा 188 के अंतर्गत प्राथमिकी दर्ज करने का अधिकार नही-उच्च न्यायालय
एकल पीठ ने आज राजनांदगांव की निवासी डा.अपूर्वा घिया की याचिका को स्वीकारते हुए उनके खिलाफ पुलिस द्वारा दर्ज प्राथमिकी को शून्य घोषित कर दिया।
बिलासपुर। छत्तीसगढ़ उच्च न्यायालय ने अपने अहम निर्णय में कहा हैं कि धारा 188 के तहत किए अपराध पर धारा 154 के तहत प्राथमिकी दर्ज करने अधिकार पुलिस को नही हैं।
न्यायमूर्ति संजय के अग्रवाल की एकल पीठ ने आज राजनांदगांव की निवासी डा.अपूर्वा घिया की याचिका को स्वीकारते हुए उनके खिलाफ पुलिस द्वारा दर्ज प्राथमिकी को शून्य घोषित कर दिया।डा.घिया ने अपनी याचिका में कहा था कि वह लाकडाउन के दौरान सिविल सेवा परीक्षा की तैयारी के लिए दिल्ली में थी।वह ई पास लेकर गत 07 जून को दिल्ली से राजनांदगांव और अगले दिन अपने घर अम्बागढ़ चौकी पहुंची।वहां उन्होंने सामुदायिक स्वास्थ्य केन्द्र में अपना चेकअप कराया और मुख्य चिकित्सा एवं स्वास्थ्य अधिकारी को अपने पहुंचने की जानकारी दी। वह इसकी जानकारी मुख्य नगर पंचायत अधिकारी (सीएमओ) को नहीं दे पाईं।
सीएमओ की शिकायत पर अम्बागढ़ चौकी थाने में उनके विरुद्ध आईपीसी की धारा 188 के तहत 16 जून को अपराध दर्ज कर लिया गया। याचिकाकर्ता ने इस आधार पर अदालत से एफआईआर रद्द करने की मांग की कि किसी भी लोक सेवक को धारा 188 के तहत किए अपराध पर धारा 154 के तहत प्राथमिकी दर्ज करने का अधिकार नहीं है।जिला दंडाधिकारी द्वारा इस तरह का कोई प्रचार भी नहीं किया गया था यात्रा से आने के बाद किन किन लोगों को सूचना देनी है। मुख्य नगर पंचायत अधिकारी कलेक्टर के अधीन कार्य करने वाले व्यक्ति हैं और उन्हें स्वयं अपराध दर्ज कराने का अधिकार नहीं है।दिल्ली से लौटने के बाद उसने स्वयं को मेडिकल जांच के लिये प्रस्तुत किया था जो प्रशासन को सूचित करने का पर्याप्त आधार है।
ज्ञातव्य हैं कोरोना वायरस पर नियंत्रण के लिए छत्तीसगढ़ समेत देशभर में लाकडाउन एवं अन्य प्रतिबन्धों की अवहेलना पर भारतीय दंड संहिता की धारा 188 के तहत कानूनी कार्रवाई हो रही है और प्राथमिकी भी दर्ज हो रही है।