IPS अशोक कुमार SPECIAL - एक आईआईटीयन बना 'खाकी में इंसान'

आईपीएस अशोक कुमार जितने काबिल अफसर है, उतने ही अच्छे एक लेखक भी है और उससे कहीं ज्यादा व एक शिक्षक के रूप में युवाओं के लिए एक प्रेरक बने नजर आते हैं

Update: 2020-08-30 06:40 GMT

देहरादून। आज हिन्दुस्तान में पुलिसिंग बदल रही है, लेकिन आजादी के 74वें जश्न तक  पहुंच चुकी पुलिस की यह तस्वीर आज भी कहीं ना कहीं अंग्रेजीकाल के प्रभाव में रंगी हुई है। आज भी खाकी में इंसान की तलाश करने निकले तो गाहे-बगाहे ही किसी के मिलने पर यह तलाश लम्बे सफर के पड़ाव पर आकर खत्म होती नजर आती है। आज देश के सभी राज्यों में पुलिस छवि सुधार के लिए एक मुहिम चली हुई है, एग्रीसिव पुलिसिंग के साथ साथ ही कम्युनिटी पुलिसिंग, गुड पुलिसिंग पर जोर दिया जा रहा है, लेकिन यह आज की बात है, हम उस दौर में 'खाकी में इंसान' की बात लेकर आपके बीच आये हैं, जिस दौर में पुलिस वाला एक रौबीला हाकिम हुआ करता था। उस दौर में एक आईआईटीयन ने 'खाकी में इंसान' बनकर जो ख्याति पाई, आज भी वह अमिट है। आज उत्तराखंड में डीजीपी कानून एवं व्यवस्था के पद पर काम करते हुए सोशल पुलिसिंग के एजेंडे को परवान चढ़ाते हुए देवभूमि को अपराधमुक्त करने की मुहिम में जुटे आईपीएस अशोक कुमार किसी भी परिचय के मोहताज नहीं है, वह जितने काबिल अफसर है, उतने ही अच्छे एक लेखक भी है और उससे कहीं ज्यादा व एक शिक्षक के रूप में युवाओं के लिए एक प्रेरक बने नजर आते हैं। 



                              'खोजी न्यूज' ने उनके व्यक्तित्व को संक्षिप्त आलेख के माध्यम से उनके ही अपने शब्दों के अनुरूप एक तस्वीर देने का प्रयास किया है।

मूल रूप से हरियाणा के ऐतिहासिक जनपद पानीपत एक छोटे से गांव कुराना से निकलकर अशोक कुमार के लिए आईआईटीयन बनना ही एक बिग ड्रीम के समान था, लेकिन तकनीक के क्षेत्र में मास्टर बन जाने के बाद भी अशोक कुमार के मन को संतुष्टि नहीं थी। बचपन से ही उनकी दिलचस्पी लोगों की सेवा करने की रही। आईआईटीयन का रूतबा हासिल करने के बाद उनका मन इसी ओर खिंचने लगा तो उन्होंने भारतीय पुलिस सेवा (आईपीएस) में शामिल होने का फैसला किया। अशोक कुमार ने अपनी प्राथमिक शिक्षा गाँव के एक स्कूल से प्राप्त की और फिर मैकेनिकल इंजीनियरिंग में बी.टेक करने के बाद भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान-दिल्ली से थर्मल इंजीनियरिंग में एम. टेक किया। उन्हें वर्ष 1986-87 में आईआईटी-दिल्ली में वर्ष के सर्वश्रेष्ठ लेखक के पुरस्कार से सम्मानित किया गया। वह हिंदी, अंग्रेजी, बंगला और रूसी साहित्य के शौकीन पाठक हैं। बैडमिंटन, टेनिस, राइडिंग और खेल के आयोजन कराने का भी उनको शौक है।

आईपीएस अशोक कुमार 1989 में भारतीय पुलिस सेवा का अंग बने और उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड राज्यों में विभिन्न पदों पर रहते हुए चुनौतीपूर्ण कार्यभार संभाला। वह पुलिस महानिरीक्षक, गढ़वाल और कुमाऊं के पद पर भी तैनात रहे। इसके बाद अशोक कुमार केन्द्र में सेवा पर चले गये। उन्होंने दिल्ली में केंद्रीय रिजर्व पुलिस फोर्स में अपनी सर्विस दी। एक आईआईटीयन बनने के बाद अचानक ही करियर को दूसरा पड़ाव देकर सिविल सर्विस की ओर जाने के सवाल पर आईपीएस अशोक कुमार कहते हैं, ''किसी व्यक्ति के लिए स्कूल स्तर पर करियर संबंधी निर्णय लेना कठिन होता है, क्योंकि यह सामान्य तौर पर आत्मनिरीक्षण करने के लिए थोड़ा थकाऊ होता है। जब तक कोई व्यक्ति स्पष्ट नहीं है और भविष्य के लक्ष्यों में ध्यान केंद्रित नहीं करता है, प्रारंभिक स्तर पर उसके लिए निर्णय मुख्य रूप से दूसरों द्वारा निर्देशित होते हैं। यह केवल तभी काम करता है जब किसी भी नौकरी की बारीकियों का अहसास करता है, यही अहसास जीवन के हर क्षेत्र में प्रभावी, कुशल और उत्कृष्ट होना सिखाता है और इससे ही एक सफल आईपीएस बनने में मदद मिली।'' अशोक कुमार ने पुुलिस सर्विस में आने के बाद एक आईपीएस की जिम्मेदारियों को कुशलता से निभाया और इस नौकरी में यह नजदीकी से महसूस किया कि उनकी ताकत गरीबों, जरूरतमंदों और समाज के शोषित वर्ग की मदद करने में निहित है। यही वजह है कि आज पुलिस सर्विस में एक लम्बी सर्विस लाइफ हो जाने के बाद विभिन्न स्तरों पर अपनी क्षमताओं को सर्विस पर हावी नहीं होने दिया और कई बड़ी बाधाओं के बीच भी वह इस उच्च नौकरशाही में आम आदमी का जीवन अपने अंदर कायम रखने में सफल रहे हैं।



इस आईआईटीयन ने एक तकनीकी विशेषज्ञ से आईपीएस बनने के अपने अनुभवों, करियर की चुनौतियों, बाधाओं को लेकर 'खाकी में मानव' ("ह्यूमन इन खाकी") पुस्तक लिखी। उनकी यह पुस्तक उनकी अपनी जीवनी नहीं है और यह शोध कार्य भी नहीं है और ना ही यह पुस्तक किसी का प्रचार प्रसार करने का काम करती है, बल्कि इस पुस्तक के सहारे सिर्फ एक पुलिसकर्मी के जीवन विभिन्न पहलुओं को एक साथ जोड़ने का सुन्दर और सुव्यवस्थित प्रयास किया गया है। बुकवल्र्ड, देहरादून द्वारा प्रकाशित 163 पृष्ठों की इस किताब का विमोचन भारत की प्रथम महिला आईपीएस डाॅ. किरण बेदी ने किया। अशोक कुमार की यह पुस्तक भारतीय पुलिस के कामकाज को प्रदर्शित करने के साथ समाज की बदलती मूल्य प्रणाली को उजागर करती है। इसमें आईपीएस अशोक कुमार द्वारा सावधानीपूर्वक बुनी गई कहानियां अलग-अलग और चुनौतीपूर्ण परिणामों का वर्णन करती हैं। आईआईटीयन अशोक कुमार की 'खाकी में मानव' न केवल जनता के लिए, बल्कि पुलिस अधिकारियों के लिए भी एक आंख खोलने वाला एक प्रयास रहा है। एक सरल और आकर्षक शैली में लिखी गई मनोरंजक कथा, एक प्रतिष्ठित करियर से वास्तविक जीवन की स्थितियों को सामने लाती है, जो बीस साल से अधिक समय तक भारतीय पुलिस बल में एक आईआईटीयन के रूप में खाकी के अंदर इंसान बने पुलिस वाले की है।



आईपीएस अशोक कुमार ने पुलिस सर्विस में अपने पहले ही दिन से अंग्रेजी काल की व्यवस्था से अलग पुलिसिंग को पेश करने का काम किया है। अशोक कुमार कहते हैं, ''आज सोशल पुलिसिंग ने जोर पकड़ा है, लेकिन जब तक सार्वजनिक सेवा में कार्यरत अफसर और निचले स्तर पर कर्मचारी सेवा के प्रति एक मानवीय दृष्टिकोण नहीं अपनायेगा, तब तक सोशल पुलिसिंग या सिविल सर्विस को सही मायनों में सार्थक नहीं बनाया जा सकता है। पुलिस के स्तर पर इसके लिए ज्यादा काम करने की आवश्यकता है। वह अपनी सर्विस में लगातार ही लोगों के अनुकूल एक ऐसी पुलिसिंग की संस्कृति को बनाने की कोशिश में जुटे नजर आये, जोकि सही मायनों में मित्र पुलिस की तस्वीर को उकेरने में सफल हो। आईपीएस अशोक कुमार ने जहां आईआईटीयन बनकर शिक्षा में उत्कृष्ट प्रदर्शन के सहारे अपनी योग्यता को साबित करने का काम किया, वहीं उनके द्वारा एक आईपीएस के रूप में खाकी के मानवीय सरोकार को जीवित रखते हुए सीखने और सिखाने के रास्ते भी खोलने का काम किया।

आज अशोक कुमार सिविल सर्विस की तैयारी में जुटे देश के युवाओं को इस परीक्षा को ब्रेक  करने के टिप्स और अनुभव बांट रहे हैं। वह कई संस्थानों के साथ मिलकर युवाओं के लिए लेक्चर दे चुके हैं। क्लास भी कर चुके हैं। आज उत्तराखंड में कानून और व्यवस्था की कमान संभाल रहे आईपीएस अशोक कुमार एक अफसर, शिक्षक और लेखक के रूप में समाज का हर तरह से मार्गदर्शन कर रहे हैं।

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