विषाणु विज्ञानी जमील का त्यागपत्र

वायरस ने कहर बरपा कर रखा है तो वायरालाजिस्टों पर चर्चा होना स्वाभाविक है हालांकि इस प्रकार की चर्चाएं आम जनता के बीच नहीं होती हैं।

Update: 2021-05-19 14:15 GMT

नई दिल्ली। वायरस ने कहर बरपा कर रखा है तो वायरोलॉजिस्ट पर चर्चा होना स्वाभाविक है हालांकि इस प्रकार की चर्चाएं आम जनता के बीच नहीं होती हैं। चीन के वुहान प्रांत में वायरस पर खोज के दौरान ही, बताते हैं, एक चमगादड़ के काटने से विषाणु विज्ञानी को कोरोना की बीमारी हुई थी। इसके बाद ही पूरी दुनिया में इस महामारी ने तबाही मचा दी। इस समय इसकी दूसरी लहर चल रही है जब दुनिया भर में कई वैक्सीन ईजाद हो गये। कुछ दवाइयां और इंजेक्शन भी हैं लेकिन चिकित्सा जगत में इसके कई पक्ष अबूझ पहेली बने हुए हैं। यह महामारी एक वायरस से फैली है, इसलिए हमारे देश के वरिष्ठ वायरोलॉजिस्ट डॉ. शाहिद जमील के कोरोना पर गठित वैज्ञानिक सलाहकार समूह का अध्यक्ष पद छोड़ने के बाद केंद्र सरकार की आलोचना हो रही है। प्रमुख विपक्षी दल कांग्रेस पार्टी ने कहा है कि केंद्र के इसी रवैये के कारण आज देश कोरोना की दूसरी लहर झेल रहा है।

वरिष्ठ विषाणु विज्ञानी शाहिद जमील ने इंडियन सार्स-कोव-2 जीनोमिक्स कंसोर्टिया के वैज्ञानिक सलाहकार समूह (इंसाकाग) के अध्यक्ष पद से हट गए हैं। केंद्र सरकार ने इस समूह का गठन कोरोना वायरस के जीनोमिक वेरियेंट्स का पता लगाने के लिए किया है।

जमील ने इंसाकॉग का अध्यक्ष पद छोड़ दिया है या फिर सरकार ने ही उन्हें हटाया है, इसकी स्पष्ट जानकारी तो नहीं मिल पा रही है और न ही इसके कारण का ही पता चल पाया है। हालांकि, वो भारत में कोरोना की दूसरी लहर को लेकर सरकार की काफी आलोचना कर रहे थे। उन्होंने देश-विदेश के अखबारों में लेख लिखकर भी सरकार पर सही वक्त पर उचित कदम नहीं उठाने का आरोप लगाया। जमील अशोक यूनिवर्सिटी में त्रिवेदी स्कूल ऑफ बायोसाइंसेज के डायरेक्टर हैं। केंद्र सरकार ने पिछले वर्ष इन्साकॉग का गठन करके उसे 10 प्रयोगशालाएं सौंप दी ताकि कोरोना के वेरियेंट्स पर विस्तृत और सटीक अध्ययन किया जा सके। बहरहाल, जमील के वैज्ञानिक सलाहकार समूह के अध्यक्ष पद से हटने पर विवाद पैदा हो गया है। कांग्रेस के वरिष्ठ नेता जयराम रमेश ने जमील को देश का सर्वोत्तम विषाणु वैज्ञानिक का तमगा देते हुए उनके इस्तीफे को दुखद बताया है। उन्होंने ट्वीट किया, देश के सर्वोत्तम विषाणु वैज्ञानिक डॉ. शाहिद जमील का इस्तीफा वाकई दुखद है। मोदी सरकार में वैसे प्रोफेसनल्स की कोई जगह नहीं है जो बिना डर या पक्षपात के बेबाक राय रखते हैं। कांग्रेस की ही राष्ट्रीय प्रवक्ता डॉ. शमा मोहम्मद लिखती हैं, वायरोलॉजिस्ट शाहिद जमील ने भारत की जीनोम सिक्वेसिंग पर चल रहे कार्य की को-ऑर्डिनेटिंग के लिए गठित वैज्ञानिक सलाहकार समूह के अध्यक्ष पद से इस्तीफा दे दिया है। उन्होंने लिखा कि वैज्ञानिकों को साक्ष्य आधारित नीति निर्माण की राह में कड़े विरोध का सामना करना पड़ रहा है। विज्ञान के प्रति इस सरकार की उपेक्षा के कारण ही हम आज इस संकट में हैं। एक ट्विटर हैंडल ने गुप्त सूत्रों के हवाले से दावा किया है कि शाहिद जमील ने इस्तीफा नहीं दिया है बल्कि सरकार ने उनकी छुट्टी कर दी है। इन्होंने लिखा, 23 दिसंबर, 2020 को शाहिद जमील कहते हैं कि भारत के लिए संकट शायद टल गया है और 16 मई 2021 को कहते हैं कि भारत सरकार उनकी बात नहीं सुन रही थी। उल्लेखनीय है कि कुछ दिन पहले डा जमील ने कहा था कि वैज्ञानिकों को साक्ष्य आधारित नीति निर्णय के प्रति अड़ियल रवैये का सामना करना पड़ रहा है।

गत 14 मई को आईएनएससीओजी की बैठक हुई थी। इसमें मौजूद अधिकारियों में से दो ने बताया कि उसी बैठक में जमील ने इस्तीफे की घोषणा कर दी थी। इस बारे में फोन कॉल और संदेशों का जमील की ओर से कोई जवाब नहीं दिया गया था। एक अधिकारी ने बताया कि जमील ने इस्तीफा देने के पीछे कोई कारण नहीं बताया है। पिछले पखवारे शाहिद जमील ने 'न्यूयॉर्क टाइम्स' में कोरोना वायरस की दूसरी लहर के बारे में एक लेख लिखा था।

उक्त लेख में उन्होंने लिखा था, भारत में मेरे साथी वैज्ञानिकों के बीच इन उपायों को लेकर खास समर्थन है लेकिन साक्ष्य आधारित नीति निर्माण के प्रति उन्हें अड़ियल रवैये का सामना करना पड़ रहा है। 30 अप्रैल को 800 से अधिक भारतीय वैज्ञानिकों ने प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी से अपील की थी उन्हें आंकड़े उपलब्ध करवाए जाएं ताकि वे आगे अध्ययन कर सकें, अनुमान लगा सकें और इस वायरस के प्रकोप को रोकने के प्रयास कर सकें। उन्होंने कहा, भारत में वैश्विक महामारी काबू से बाहर हो चुकी है, ऐसे में आंकड़ों पर आधारित नीति निर्णय भी खत्म जैसा ही है। इसकी मानवों से संबंधित जो कीमत हमें चुकानी पड़ रही है उससे होने वाली चोट स्थायी निशान छोड़ जाएगी।

दी इंडियन सार्स-सीओवी2 कॉनसोर्टियम ऑन जीनोमिक्स (आईएनएसएसीओजी) दस राष्ट्रीय प्रयोगशालाओं का समूह है जिसकी स्थापना स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय ने बीते वर्ष 25 दिसंबर को की थी। इस समिति का काम है कोरोना वायरस की जीनोम श्रंखला तैयार करना और जीनोम के स्वरूपों तथा महामारी के बीच संबंध तलाशना। हालांकि देश में कोरोना वायरस की दूसरी लहर के बाद समिति की आलोचना की जाने लगी। इस महीने (मई) की शुरुआत में जमील ने रॉयटर्स से कहा था, मुझे चिंता इस बात की है कि नीति निर्माण के लिए वैज्ञानिक पहलू पर विचार नहीं किया जा रहा। मैं भलीभांति जानता हूं कि मेरा अधिकार क्षेत्र कहां तक है। एक वैज्ञानिक होने के नाते हम साक्ष्य दे सकते हैं लेकिन नीति निर्माण का काम सरकार का है। जाहिर है डा जमील को कोरोना के सरकारी आंकड़ों के साथ कुछ अन्य नीतिगत मुद्दों को लेकर परेशानी हो रही थी।

भारत में लगातार कम हो रहे कोरोना के नए मामले तो राहत देने वाले हैं, लेकिन मौत की बढ़ती संख्या चिंता करने वाली है। स्वास्थ्य मंत्रालय द्वारा जारी आंकड़ों की मानें तो कोरोना जब भारत में पीक पर था यानी रोज चार लाख के नए मामले सामने आ रहे थे, उसकी तुलना में मौत के आंकड़े परेशान करने वाले हैं। भारत में 6 मई को सबसे ज्यादा नए केस सामने आए थे। उस दिन 3920 मरीजों की कोरोना के कारण जान चली गई थी। वहीं, 18 मई को जब 2.63 लाख नए पॉजिटिव केस की पुष्टि हुई तो मौतों की संख्या ने सारे रिकॉर्ड तोड़ दिए। केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय द्वारा जारी आंकड़ों के मुताबिक बीते 24 घंटे में 4329 मरीजों की मौत हो गई। स्वास्थ्य मंत्रालय द्वारा जारी आंकड़ों के मुताबिक, भारत में 18 मई को बीते 24 घंटे में 2,63,533 नए मामलों की पुष्टि हुई है। इसके साथ ही देश में कोरोना के कुल मामले 2,52,28,996 हो गए हैं। राहत की बात यह भी है कि देश में इस महामारी को मात देने वाले लोगों की संख्या में भी लगातार इजाफा हो रहा है। बीते 24 घंटे में 4,22,436 मरीज या तो स्वस्थ हो चुके हैं या फिर उन्हें अस्पताल से छुट्टी दे दी गई है। इसके साथ अब तक 2,15,96,512 लोग स्वस्थ हो चुके हैं।

डाॅ. जमील कहते हैं कि वैज्ञानिकों को साक्ष्य आधारित नीति निर्णय के प्रति अड़ियल रवैये का सामना करना पड़ रहा है। जाहिर है कि एक वायरस वैज्ञानिक को यह सोचने की जरूरत नहीं है। हमारे लोकतंत्र में सभी की अलग अलग जिम्मेदारियां हैं। हम उन्हीं को संभालते रहें, तभी सामंजस्य बना रह सकता है।डा जमील कोरोना पर गठित वैज्ञानिक सलाहकार समूह के अध्यक्ष थे। वैज्ञानिक सलाहकार समूह (इंसाकाग) के अध्यक्ष पद पर रहने के नाते उनके दायित्व वायरोलॉजिस्ट से कहीं ज्यादा थे। केंद्र सरकार ने इस समूह का गठन कोरोना वायरस के जीनोमिक वेरियेंट्स का पता लगाने के लिए किया है। ये वेरियंट्स बढने न पाएं, यह दायित्व भी इंसाकाग को निभाना था। हो सकता है कि इस काम में सरकार की नीतियां कुछ बाधा डाल रही हों। इसलिए डा जमील के इस्तीफे की पृष्ठभूमि पर विचार करना चाहिए। (हिफी)

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