आरिफ की कर्तव्य निष्ठा को सलाम
लगभग 500 कोरोना मरीजों को एम्बुलेंस से पहुंचाया अस्पताल, रुपये-पैसे देकर भी करते थे मदद, मुस्लिम होते हुए हिन्दुओं का भी कराया अंतिम संस्कार।
नई दिल्ली। जिस तरह किसी के माथे पर नहीं लिखा होता है कि वो धर्मात्मा है, उसी तरह कर्तव्य निष्ठा भी किसी जाति धर्म की गुलाम नहीं होती है। कोरोना की महामारी ने तमाम लोगों के विश्वास को डगमगा दिया है। रिश्तों में दरार पैदा कर दी है। कोरोना पाजिटिव घोषित होते ही उसके सामने अजीबोगरीब हालात पैदा हो जाते हैं। उसे अपने बीमार होने की उतनी चिंता नहीं रहती है, जितनी अपने परिवार के सदस्यों के बारे में उसे फिक्र सताने लगती है। घर में यदि पत्नी और बच्चों के साथ कोई अन्य रहता है तो उन लोगों की नजर में सवाल तैरता हुआ साफ साफ दिखाई पड़ेगा । आखिर कोई कितना सोशल डिस्टेंसिंग रख पाएगा। मुश्किल से दस फीसद ही ऐसे लोग होंगे जिनके मकानों में सेपरेट रूम और वाशरूम होंगे। कोरोना संक्रमण से बचने को लेकर कुछ लोग ही गंभीर हैं लेकिन जब निकटतम लोग इसकी चपेट में आ जाते हैं तो वे लोग भी गंभीर नजर आने लगते हैं जो बिना मास्क लगाए सड़क पर चलते थे और बिना हाथ धोए दुकान के सामने जलेबी और समोसा खाते दिखाई पड़ जाते हैं।
एक दिन गोमती नगर रेलवे स्टेशन के पास ऐसे ही कुछ लोगों को एक बुजुर्ग समझा रहे थे कि बेटा, समोसा जलेबी लेकर घर जाओ। वहां अच्छे तरह से हाथ धोकर खाना। उन्होंने उन लोगों से मास्क पहनने का भी अनुरोध किया। बुजुर्ग की सलाह उन लोगों को अच्छी नहीं लगी। उन लोगों में से किसी ने यह भी कह दिया कि जाइए, आप अपना काम कीजिए। बुजुर्ग सज्जन मुस्कुराते हुए आगे बढ़ गये। मैं भी उस समय टहल रहा था। तेज कदम बढाते हुए उनके पास पहुंच गया। परिचय किया तो पता चला कि सेवा निवृत शिक्षक हैं। मैंने उन युवाओं की प्रतिक्रिया का जिक्र किया तो कहने लगे, समझाना मेरा फर्ज है। दस में दो लोग भी मेरी बात मान लेंगे तो मेरा प्रयास सार्थक है। ऐसे लोग निश्चित रूप से वंदनीय हैं। कोरोना के संक्रमण से बचाने और संक्रमित लोगों की मदद करने वाले किसी देवदूत से कम नहीं हैं। ऐसे लोग जाति सम्प्रदाय से परे होते हैं। दिल्ली के एक एम्बुलेंस चालक के बारे में जो अभी हाल ही जानकारी मिली है, उसे सलाम करने को मन करता है।
दरअसल, देश-दुनिया में ऐसे लोगों की संख्या काफी कम है, जो कोरोना महामारी के इस बुरे वक्त मे लोगों की मदद कर रहे हैं। ऐसे ही एक व्यक्ति थे आरिफ खान। वह दिल्ली के सीलमपुर के रहने वाले थे, लेकिन पिछले 6 महीने से घर सोने तक नहीं गए थे। दरअसल आरिफ दिल्ली में एंबुलेंस चालक थे। वह 6 महीने पार्किंग क्षेत्र में ही रहे। उन्होंने इन छह महीनों में करीब 500 कोरोना मरीजों को अपनी एंबुलेंस से अस्पताल पहुंचाया था। इनमें से कुछ की मौत के बाद उन्हें अंतिम संस्कार के लिए भी लेकर गए थे। वह उनकी मदद के लिए 24 घंटे उपलब्ध रहते थे लेकिन अब जन्नतनशीन हो गये हैं। गत 10 अक्टूबर को सुबह उनकी मौत खुद कोरोना वायरस महामारी के कारण दिल्ली के हिंदू राव अस्पताल में हो गई।
आरिफ खान दिल्ली में फ्री एंबुलेंस सेवा मुहैया कराने वाले शहीद भगत सिंह सेवा दल में काम करते थे। बताया गया कि अगर किसी कोरोना मरीज की मौत होती थी और उसके परिवार वालों को अंतिम संस्कार के लिए रुपये की मदद की जरूरत होती थी तो आरिफ खान आर्थिक रूप से भी उनकी मदद करते थे लेकिन जब उनकी मौत हुई तो उनके अंतिम संस्कार में उनके परिवार के लोग भी पास नहीं थे। उनके परिवार ने आरिफ का शव काफी दूर से कुछ मिनट के लिए ही देखा। जानकारी के मुताबिक, 3 अक्टूबर को आरिफ की तबीयत खराब हुई थी। उन्होंने अपना कोविड टेस्ट कराया, जो कि पॉजिटिव आया। इसके बाद उन्हें जिस दिन अस्पताल में भर्ती कराया गया, उसी दिन उनकी मौत हो गई।
आरिफ के 22 साल के बेटे आदिल ने बताया कि उन लोगों ने मार्च से लेकर अब तक बस कभी-कभी ही उन्हें देखा था। वह जब भी घर पर कपड़े या कुछ अन्य सामान लेने आते थे, बस तभी कुछ समय के लिए वे लोग आरिफ को देख पाते थे। परिवार को हमेशा उनकी चिंता होती थी लेकिन वह अपने कर्तव्य को सर्वोपरि मानते थे। आरिफ घर में एकलौते कमाने वाले थे। उनकी सैलरी 16000 रुपये थी। उनका घर का मासिक किराया 9000 रुपये है। आदिल के अनुसार एक बार उसने और उसके भाई ने नौकरी की, लेकिन वह ज्यादा समय तक नहीं रही। आरिफ के दोस्त जितेंद्र कुमार ने कहा कि अब परिवार के लिए दुख का पहाड़ टूट गया है। उन्होंने कहा, यह एक चुनौती भरा समय था लेकिन खान इसमें भी लोगों की बढ़कर मदद करता था। वह लोगों का अंतिम संस्कार तक कराता था। वह मुस्लिम था, लेकिन हिंदुओं का भी अंतिम संस्कार कराता था। वह अपने काम के प्रति जिम्मेदार था।
भले ही आज ऐसे लोग मुट्ठी भर हैं लेकिन लोगों को उनसे प्रेरणा मिल रही है। एक मीडिया रिपोर्ट के अनुसार महाराष्ट्र, कर्नाटक और तमिनलाडु में 28 अगस्त तक 1 लाख से अधिक स्वास्थ्य कर्मियों का कोविड परीक्षण किया गया। कर्नाटक में 12,260, तमिलनाडु में 11,169 और महाराष्ट्र में 24,000 से ज्यादा स्वास्थ्य कर्मी संक्रमित पाए गए। इन स्वास्थ्य कर्मियों में नर्स, डाक्टर और आशा कार्यकर्ता शामिल हैं। वहीं मौतों की बात करें तो महाराष्ट्र में 292, कर्नाटक में 46 और तमिलनाडु में 49 स्वास्थ्यकर्मियों की मौत हो गई है। इनके कर्तव्य को भी नमन करना चाहिए।
स्वास्थ्य कर्मियों में बढ़ रहे संक्रमण के मामले केंद्र के लिए भी चिंता का सबब बनते जा रहे हैं। गत दिनों कैबिनेट सचिव की समीक्षा में स्पष्ट निर्देश दिए गए कि सभी अस्पतालों में आवश्यक दवाओं, मास्कों और पीपीई किटों की उपलब्धता और उनके उपयोग की निगरानी हो। एक ओर जहां स्वास्थ्य कर्मियों की मौतों का आंकड़ा कुछ और हालात बयान कर रहा है वहीं सरकार को अब तक सिर्फ 143 क्लेम पेपर्स मिले हैं जिसके जरिए कोरोना वारियर बीमा योजना के तहत उन्हें धनराशि दी जा सके। रिपोर्ट के अनुसार आधिकारिक सूत्रों ने जानकारी दी कि मौतों की असल संख्या और क्लेम्स में बड़ा अंतर हो सकता है क्योंकि इसमें कई ऐसे लोगों की मौत हुई होगी जो इस बीमा के नियम और शर्तों के दायरे में नहीं आते।
इसके साथ ही अप्लीकेशन्स आने में भी टाइम लग सकता है क्योंकि मृतक के परिजनों को स्वयं के सामान्य होने में समय लगता है। इसलिए आरिफ जैसे लोगों के परिजनों की मदद के लिए सरकार ही नहीं जनता भी आगे आए। (अशोक त्रिपाठी-हिन्दुस्तान समाचार फीचर सेवा)