कोरोना वैक्सीन की पहेली
कोरोना वैक्सीन को लेकर जुटे वैज्ञानिकों का कहना है कि यह वैक्सीन कोरोना से बचाव तो कर सकती है
नई दिल्ली। कोरोना वैक्सीन को लेकर जुटे वैज्ञानिकों का कहना है कि यह वैक्सीन कोरोना से बचाव तो कर सकती हैलेकिन करीब एक साल के बाद वैक्सीन से बनी एंटीबॉडी घटने लगेंगी लिहाजा इसके लिए बूस्टर डोज लेनी होगी। ऐसे में यह जानना जरूरी है कि वैक्सीन के बाद अब ये बूस्टर डोज क्या है और यह कैसे काम करती है। गत 24 मई को एम्स के परीक्षण केंद्र पर पांच लोगों को बूस्टर खुराक दी गई है। बूस्टर खुराक उन लोगों को दी जा रही है जिन्हें वैक्सीन की दोनों खुराक लिये छह महीने का समय पूरा हो चुका है। दरअसल आईसीएमआर के साथ मिलकर हैदराबाद स्थित भारत बायोटेक कंपनी ने कोवैक्सिन को तैयार किया है जिसे कोरोना के जिंदा विषाणुओं को असक्रिय करने के बाद बनाया गया है। तीन जनवरी को यह वैक्सीन आपातकालीन इस्तेमाल की अनुमति लेने के बाद राष्ट्रीय टीकाकरण कार्यक्रम का हिस्सा बनी थी।
कोरोना वायरस दुनियाभर में एक खतरनाक महामारी का रूप ले चुका है। चीन के वुहान शहर से शुरू हुआ ये वायरस अब तक दुनिया के 199 देशों में फैल चुका है। भारत भी इसकी चपेट में आ चुका है और देश में लगातार केस बढ़ रहे हैं। इसे रोकने के लिए सरकार ने 21 दिन का लॉकडाउन कर दिया है। जरूरी और आपात सेवाओं को छोड़कर सब कुछ बंद है।
अभी तक कोरोना बीमारी का कोई इलाज न मिलने के कारण इससे बचाव का सबसे कारगर और प्रभावी उपाय वैक्सीन है। हालांकि अभी भी यह शोध का विषय है कि वैक्सीन के बाद आखिर कितने दिनों तक खुद को सुरक्षित रखा जा सकता है। कोरोना के खिलाफ भारत में कोविशील्ड और कोवैक्सीन जबकि विदेशों में फाइजर, स्पूतनिक आदि वैक्सीनें बन चुकी हैं और सभी के अलग-अलग दावे भी हैं लेकिन अब विशेषज्ञों की ओर से सामने आ रही जानकारी कह रही है कि सिर्फ वैक्सीन की दो डोज लगवाकर ही आप खुद को लंबे समय तक सुरक्षित नहीं रख सकते।
दरअसल कोरोना वैक्सीन की दो डोज लेने के बाद शरीर में पर्याप्त एंटीबॉडी बन जाती हैं। इसका प्रभाव होता है कि जब भी शरीर कोरोना वायरस की चपेट में आता है तो ये एंटीबॉडी वायरस से मुकाबला करती हैं और व्यक्ति को हानि नहीं पहुंचने देतीं। हालांकि अब सामने आ रहे रिसर्च बता रहे हैं कि लंबे समय तक शरीर में रोग प्रतिरोधक क्षमता पैदा करने के लिए वैक्सीन का बूस्टर शॉट भी लगवाना होगा।
कोरोना वैक्सीन को लेकर जुटे वैज्ञानिकों का कहना है कि यह वैक्सीन कोरोना से बचाव तो कर सकती है लेकिन करीब एक साल के बाद वैक्सीन से बनी एंटीबॉडी घटने लगेंगी लिहाजा इसके लिए बूस्टर डोज लेनी होगी। ऐसे में यह जानना जरूरी है कि वैक्सीन के बाद अब ये बूस्टर डोज क्या है और यह कैसे काम करती है। एसएन मेडिकल कॉलेज आगरा में माइक्रोबायोलॉजी डिपार्टमेंट हेड प्रो. आरती अग्रवाल बताती हैं कि वैक्सीन की दो डोज लगवाने के बाद अब बूस्टर को लेकर काम चल रहा है। भारत बायोटेक की ओर से हाल ही में दिल्ली एम्स में बूस्टर का ट्रायल भी किया जा रहा है। यह छह महीने पहले वैक्सीन लगवा चुके लोगों को दिया जा सकता है। लिहाजा अभी परिणाम आने बाकी हैं।
डॉ. आरती अग्रवाल बताती हैं कि बूस्टर मुख्य रूप से वैक्सीन की तय एक या दो डोज के बाद एक अंतराल पर दी जाने वाली अगली डोज होती है जो हमारे शरीर में मौजूद मेमोरी सेल्स को एक्टिवेट करती है और एंटीबॉडी को फिर से वायरस के खिलाफ लड़ने की क्षमता प्रदान करती है। यह वैक्सीन को अपग्रेड करता है। इसीलिए वैक्सीन की दोनों डोज लगने के बाद साल या दो साल के अंतराल पर बूस्टर डोज दी जाती है। डॉ. अग्रवाल कहती हैं कि वैक्सीन की डोज में मौजूद दवा की तरह ही यह बूस्टर डोज होती है लेकिन यह ज्यादा कारगर होती है। वैज्ञानिक भी यह बात मानते हैं, यहां तक कि अभी तक की चिकित्सा पद्धति में भी यही है कि एक साथ भारी खुराक लेने के बजाय अगर छोटी-छोटी खुराक एक अंतराल पर ली जाएं तो ये ज्यादा फायदेमंद हैं। फिलहाल कोविशील्ड को लेकर भी यही देखा गया है और उसकी दूसरी डोज का अंतराल बढ़ाया गया है।
इसे ऐसे भी समझा जा सकता है कि यह बिल्कुल ऐसे है जैसे खाने को एक दिन में खा लिया जाए तो तबियत बिगड़ सकती है लेकिन धीरे-धीरे कुछ समय के अंतराल पर खाया जाए तो वह शरीर को लाभ पहुंचाता है। बूस्टर भी इसी तरह काम करता है। डॉ. अग्रवाल कहती हैं कि हमारे यहां पर बच्चों को भी बूस्टर डोज लगते हैं। जन्म से लगने वाले टीकों में डेढ़ साल पर बूस्टर के अलावा पांच साल, 10 साल और 16 साल पर बूस्टर डोज लगते हैं। उसी तरह अब कोरोना वायरस की वैक्सीन के बाद भी बूस्टर डोज लगवाई जाएगी। हालांकि इसकी समय सीमा कम हो सकती है। संभव है कि यह साल भर बाद ही लगवा ली जाए या पांच साल के अंदर लगे। अभी वैक्सीन को लेकर काम चल रहा है और यह स्पष्ट नहीं हुआ है कि वैक्सीन लगने के कितने दिन बाद इसकी जरूरत पड़ेगी। हालांकि फिलहाल एक साल का समय उपयुक्त माना गया है।
कोरोना वायरस को लेकर सबसे बड़ी समस्या इसके रूप बदलने को लेकर है। चीन से निकलने के बाद दूसरे देशों में इसके नये रूप देखे गये हैं जो काफी गंभीर हैं। बूस्टर को लेकर एक यह भी बात कही जा रही है कि यह रूप बदलते कोरोना को रोकने में सफल हो सकता है। कोरोना का वायरस म्यूटेट होता है। इसके अलग-अलग वैरिएंट सामने आ रहे हैं। ऐसे में बूस्टर शॉट उसी को आधार मानकर तय किया जाता है और वैज्ञानिकों द्वारा अपग्रेड किया जाता है। लिहाजा यह वैरिएंट में भी असरदार रहता है।
सीरम इंस्टीट्यूट ऑफ इंडिया (एसआईआई) ने जून में कोविशील्ड टीके की नौ से 10 करोड़ खुराकों के उत्पादन एवं आपूर्ति करने के बारे में सरकार को सूचित किया है। राज्यों की ओर से कोविड-19 टीके की कमी की शिकायत के बीच आधिकारिक सूत्रों ने यह जानकारी दी है। हाल ही में गृह मंत्री अमित शाह को भेजे गए एक पत्र में एसआईआई ने कहा कि महामारी के कारण खड़ी हुई चुनौतियों के बावजूद उसके कर्मचारी 24 घंटे काम कर रहे हैं। एसआईआई में सरकारी एवं नियामक मामलों के निदेशक प्रकाश कुमार सिंह ने पत्र में कहा, हमें यह बताते हुए प्रसन्नता है कि हम जून के महीने में कोविशील्ड टीके की नौ से 10 करोड़ खुराकों का उत्पादन एवं आपूर्ति करने में सक्षम होंगे जोकि मई में हमारी उत्पादन क्षमता 6.5 करोड़ खुराकों की तुलना में अधिक है। उन्होंने कहा, हम भरोसा दिलाते हैं कि भारत सरकार के समर्थन और मार्गदर्शन में हम आने वाले महीनों में भी टीका उत्पादन की क्षमता को बढ़ाने के लिए अपने संसाधनों का सर्वोत्तम उपयोग करने का प्रयास कर रहे हैं। बता दें कि मई की शुरुआत में सीरम ने कहा था कि कंपनी को मई, जून और जुलाई के लिए कोविशील्ड टीके की 11 करोड़ खुराक की आपूर्ति के लिए 1,732.50 करोड़ रुपए की पूरी राशि अग्रिम दे दी गयी है। अब कच्चा माल मिलने की बाधा भी खत्म हो गयी है।
कोरोना महामारी की दूसरी लहर के बाद आई एक फंगस की महामारी ने सबको भयभीत कर दिया है। कई राज्यों में कोरोना के मरीजों में सबसे पहले सामने आई म्यूकरमाइकोसिस यानि ब्लैक फंगस को महामारी भी घोषित कर दिया गया है। वहीं अब कोरोना के कई वैरिएंट की तरह इसके भी अलग-अलग प्रकार सामने आ रहे हैं। ब्लैक, व्हाइट और येलो फंगस के बाद अब मध्य प्रदेश के जबलपुर में क्रीम फंगस का एक मामला सामने आया है, जिससे लोगों में फंगस के रंगों को लेकर भी एक डर पैदा हो गया है। हालांकि हेल्थ एक्सपर्ट का कहना है कि सामने आ रहे फंगस के प्रकारों से भयभीत होने की कोई जरूरत नहीं है। ये फंगस की अलग-अलग प्रजातियां हैं। सिर्फ एक फंगस है जो काफी खतरनाक है। सरोजनी नायडू मेडिकल कॉलेज आगरा में माइक्रोबायोलॉजी डिपार्टमेंट की हेड प्रोफेसर और लैब नोडल ऑफिसर डा आरती अग्रवाल बताती हैं कि देशभर में फंगस को रंगों के हिसाब से पहचान रहे हैं या डॉक्टर उसी हिसाब से बता रहे हैं। हालांकि मेडिकल में इनके लिए ऐसे कोई रंग निर्धारित नहीं हैं। सभी फंगस अलग-अलग प्रजातियां हैं और अलग-अलग प्रभाव दिखाती हैं। (हिफी)