UNESCO ने भी जानी , मेड़बंदी की कहानी
हाल ही में 17 दिसम्बर को “ वाटर डाइजेस्ट अवार्ड 2020” में बेस्ट वाटर एनजीओ फॉर रिवाइवल ऑफ रूरल वाटर रिर्सोसेज के तहत जखनी गांव को पुरस्कृत किया गया।;
झांसी। उत्तर प्रदेश के सूखाग्रस्त क्षेत्र बुंदेलखंड में बांदा जिले के पानी के अभाव में बदहाल हुए जखनी गांव को पानीदार बनाकर सामुदायिक समृद्धि की कहानी लिखने वाली जलसंरक्षण की विधि " मेड़बंदी " के महत्व को यूनेस्को ने भी जाना है।
जलयोद्धा उमाशंकर पांडे ने गुरूवार को यूनीवार्ता से फोन पर बातचीत में कहा कि एशिया में पानी के क्षेत्र में बेहद महत्वपूर्ण माने जाने वाले वाटर डाइजेस्ट अवार्ड में जखनी के पारंपरिक जल संरक्षण की तकनीक मेड़बंदी के महत्व को पहचानकर मान्यता दिया जाना बेहद गर्व की बात है। हाल ही में 17 दिसम्बर को " वाटर डाइजेस्ट अवार्ड 2020" में बेस्ट वाटर एनजीओ फॉर रिवाइवल ऑफ रूरल वाटर रिर्सोसेज के तहत जखनी गांव को पुरस्कृत किया गया। हमने मेड़बंदी तकनीक से अपने गांव को न केवल जलग्राम में बदला बल्कि आर्थिक संपन्नता की एक नयी कहानी लिखी।
वाटर डाइजेस्ट अवार्ड-2020 कार्यक्रम में विशिष्ट अतिथि यूनेस्को के निदेशक और भारत सहित भूटान, मालद्वीव और श्रीलंका के प्रतिनिधि एरिक फॉल्ट ने भी बिना सरकारी मदद के सामुदायिक जलसंरक्षण की सदियों पुरानी तकनीक की आधुनिक युग में भी प्रासंगिकता को जाना और समझा। वाटर डाइजेस्ट पिछले 14 वर्षों से एशिया महाद्वीप में विभिन्न तकनीकों की मदद से जल संरक्षण, बारिश के पानी को रोकने और संरक्षित करने का काम करने वाले संगठनों और सामाजिक कार्यकर्ताओं को सम्मानित करता है। इस बार इस पुरस्कार के लिए 50 लोगों का चयन किया गया जिसमें जखनी का नाम भी शामिल है।
सर्वोदयी कार्यकर्ता श्री पांडे ने कहा कि वाटर डाइजेस्ट अवार्ड हमारे पुरखों की वर्षा जल संरक्षण की विधि "मेड़बंदी" को मिला है जो आज भी सबसे प्रासंगिक विधि है , इसमें न तो किसी मशीनी या नवीन प्रशिक्षण की जरूरत है और न ही बहुत पैसा खर्च करने की। इसके लिए बहुत से लोगों के एक साथ प्रयास करने की जरूरत भी नहीं है यह काम व्यक्तिगत स्तर पर ही शुरू किया जा सकता है और फायदे बहुत अधिक हैं। फायदे को देखते हुए यदि सभी किसान इसे अपनायें तो परिणाम आशातीत होंगे जैसा जखनी में हुआ।
मानव का जीवन जल पर ही निर्भर है। हमारा एक ही नारा है " हर खेत में मेड़ और मेड़ पर पेड़" । किसान अपनी मेहनत से यदि खेत पर मेड़ बनाये और मेड़ पर फलदार,छायादार औषधीय या छोटे पेड लगाये तो बारिश से मिलने वाले जल का संचय खेत में ही होगा। जल संरक्षण का यही नियम है कि जहां वह गिरे वहीं उसे संचय किया जाए, मेड़बंदी विधि का आधार ही यही है।
जखनी गांव में किसानों ने मिलकर मेड़बंदी का काम किया और 25 साल से बिना किसी सरकारी मदद के यह काम किया जा रहा है उसी का नतीजा रहा कि आज इस गांव में सिद्धि , प्रसिद्धि और समृद्धि सब आ गयी है। देश मे पानी किसानी के सामुदायिक प्रयास के लिए जखनी मॉडल सबसे चर्चित है। राज्य सरकार ने इसे स्वीकार किया, राज्य के लघु सिंचाई विभाग की रिपोर्ट के अनुसार पांच वर्षों में बांदा जिले का भूजल स्तर चार फुट ऊपर आ गया है। नीति आयोग ने जखनी गांव को पहला मॉडल जलग्राम माना, इतना ही इस विधि के आधार पर देश भर में विभिन्न जिलों में 1050 जलग्राम बनाये गये। इस विधि की प्रासंगिकता और महत्व को देखते हुए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने आठ जून 2019 को देशभर के प्रधानों को लिखे पत्र में मेडबंदी कर खेत में ही वर्षा जल को रोकने की सलाह दी और मन की बात में जखनी के पानीदार बनने की कहानी को स्थान दिया।
देशभर में बड़ी संख्या में नहर, तालाब ,कुंए और निजी ट्यूबवेल के सिंचाई के साधन तो हैं लेकिन इनके बावजूद कई करोड़ हेक्टेयर भूमि पर खेती वर्षा जल पर निर्भर है । लाखों गोवों में वर्तमान में जल संसाधन उपलब्ध नहीं हैं लेकिन वर्षा तो हर गांव में होती है और वर्षा के भरोसे खेती होती है खासकर बुंदेलखंड के इलाके में । चाहें सिंचाई की कोई भी विधि लें ड्रिप, टपक, फुहारा या ऐसी ही कोई और विधि ले लेकिन सिंचाई के हर विधि के लिए पानी तो जरूरी है। पानी के दो ही स्रोत हैं या तो भूमिगत जल या फिर वर्षाजल । भूमिगत जल भी तभी बनेगा जब वर्षाजल रिस कर जमीन के भीतर जाएं अंतत: जल का सबसे बडा स्रोत वर्षाजल ही है ।
वर्षाजल को खेतों में सहेजने की सबसे सफल विधि मेडबंदी ही है। यदि इसका प्रयोगकर पानी, खेत में सहेजेंगे तो खेत में नमी बनी रहेगी और यह फसल के लिए संजीवनी का काम करेगी। यही काम मैं अपने सहयोगियों के साथ मिल अपने गांव जखनी में पिछले 25 साल से कर रहा हूं और नतीजा आज सबके सामने है। मेरे प्रयोग को राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर अब पहचान मिली है। यह विधि चाहें आज जखनी के नाम से जानी जाती हो लेकिन यह हमारे पुरखों की विधि है जिसे हमने समुदाय किसानों के साथ जागृत किया है । पूरे देश मे वर्षा जल को सहेजने की मुहिम मेड़बंदी की मदद से हम चला रहे हैं और उम्मीद करते हैं कि वर्षा जलसंरक्षण की इस सबसे सस्ती और अधिकतम परिणाम देने वाली विधि को बड़े पैमाने पर स्वीकार किया जायेगा।