भारत और नेपाल की मित्रता को तोड़ने का प्रयास कर रहा है चीन
भारत और नेपाल की मित्रता कच्चे धागों जैसी नहीं है जो किसी के बहलाने फुसलाने में आकर टूट जाए।
नई दिल्ली । भारत नेपाल के संबंध युग युगांतरों से चले आ रहे हैं। भारत के साथ नेपाल द्वारा तल्खी बरते जाने को गोरखा समुदाय भारत और नेपाल की मित्रता को तोडऩे का प्रयास बताता है। गोरखा समुदाय का कहना है कि नेपाल की जनता को इसके लिए जागरूक होना पड़ेगा। नेपाल को चीन की चाल में फंस कर दोनों देशों के बीच संबंधों में दरार पैदा नहीं करना चाहिए।
भारत नेपाल के संबंध आदि काल से ही मधुर और पारंपरिक रहे हैं। जिसके नाते, रिश्तेदारी के अलावा एक विशेष आपसी लगाव है। दोनों देशों के बीच आस-पड़ोस जैसा माहौल हमेशा से रहा है। नेपाल जैसा हिंदू राष्ट्र चीन के जाल में फंस कर इन संबंधों में दरार पैदा न करे। नेपाल के लोगों को जागरूक रहना चाहिए। नेताओं और राजनीति के स्वार्थ के लिए अपने मधुर संबंध नहीं खत्म करने हैं।
भारत और नेपाल की मित्रता कच्चे धागों जैसी नहीं है जो किसी के बहलाने फुसलाने में आकर टूट जाए। चीन के बहकावे में आकर नेपाल जो कर रहा है वह भारत नेपाल की मित्रता के आगे असफल होगी। भारत नेपाल के प्रगाढ़ संबंध बने रहेंगे। कोई भी इसे बिगाड़ नहीं कर सकता है। दोनों देशों के नागरिकों के बीच संबंध मधुर ही बने रहेंगे। भारत और नेपाल के नागरिक सांस्कृतिक, सामाजिकता रूप से जुड़े हुए हैं। इन संबंधों कोई भी नहीं भंग कर सकता है। नेपाल में इस समय चीन के बहकावे में आकर जो हो रहा है वह उचित नहीं है। भारत और नेपाल के संबंध अटूट हैं, इनमें दरार पैदा करने की रणनीति असफल होगी।
चीन की सोच साम्राज्यवादी है। नेपाल चीन के बहकावे पर भारत के प्रति जो दिखा रहा है। चीन की यह चाल सफल नहीं होगी। भारत नेपाल के बीच रोटी-बेटी का अटूट संबंध है जो कभी नहीं टूट सकता है।
भारत और नेपाल के बीच विवाद यह था कि भारत के लिपुलेख में मानसरोवर लिंक बनाने को लेकर नेपाल ने कड़ी प्रतिक्रिया दी थी। उसका दावा है कि लिपुलेख, कालापानी और लिपिंयाधुरा उसके क्षेत्र में आते हैं। नेपाल ने इसके जवाब में अपना नया नक्शा जारी कर दिया जिसमें ये तीनों क्षेत्र उसके अंतर्गत दिखाए गए। इस नक्शे को जब देश की संसद में पारित कराने के लिए संविधान में संशोधन की बात आई तो सभी राजनीतिक पार्टियां एक साथ नजर आईं और अब यह नक्शा नेपाल की संसद में भी पारित कर दिया गया जिसमें विवादित लिपुलेख, कालापानी और लिपिंयाधुरा को नेपाल का हिस्सा दर्शाया गया है। इस दौरान नेपाल के प्रधानमंत्री केपी शर्मा ओली ने भारत को लेकर सख्त रवैया अपनाए रखा। भारत के रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने जब लिपुलेख से कैलाश मानसरोवर जाने वाले रास्ते का उद्घाटन किया, तभी नेपाल ने इसका विरोध किया था। उसके बाद 18 मई को नेपाल ने नए नक्शा जारी कर दिया। भारत ने साफ कहा था कि 'नेपाल को भारत की संप्रभुता और क्षेत्रीय अखंडता का सम्मान करना चाहिए। नेपाल के नेतृत्व को ऐसा माहौल बनाना चाहिए जिससे बैठकर बात हो सके।' भारत और नेपाल के बीच संबंध तब तनावपूर्ण हो गए थे जब रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने उत्तराखंड में देश के लिए रणनीतिक रूप से महत्वपूर्ण लिपुलेख दर्रे को धारचूला से जोड़ने वाले 80 किमी लंबे मार्ग का उद्घाटन आठ मई को किया था।