कांग्रेस का हाथ छोड़ने वाले कैप्टन भी शाह की शरण में
पंजाब के राजनीतिक समीकरण बदल रहे हैं। अकाली दलों का वर्चस्व खत्म हो चुका है और कांग्रेस भी बिखर गयी है
नई दिल्ली।पंजाब के राजनीतिक समीकरण बदल रहे हैं। अकाली दलों का वर्चस्व खत्म हो चुका है और कांग्रेस भी बिखर गयी हैपंजाब के राजनीतिक समीकरण बदल रहे हैं। अकाली दलों का वर्चस्व खत्म हो चुका है और कांग्रेस भी बिखर गयी है। केन्द्र से लेकर कई राज्यों में सरकार चलाने वाली भाजपा पंजाब में अकालियों के पीछे-पीछे चल रही थी लेकिन किसान आंदोलन के समय प्रकाश सिंह बादल के नेतृत्व वाला शिरोमणि अकाली दल (एस एडी) स्वयं ही अलग हो गया। लगभग इसी समय कांग्रेस में कैप्टन अमरिंदर सिंह और नवजोत सिंह सिद्धू का शीतयुद्ध सड़क पर आ गया। कांग्रेस में हाई कमान नाम की चीज रह ही नहीं गयी है, भले ही सोनिया गांधी और राहुल-प्रियंका को लोग हाई कमान कह देते हैं लेकिन इनके कई फैसले अदूरदर्शी साबित हुए हैं। मध्य प्रदेश में इसी के चलते कमलनाथ की सरकार गिरगयी और अभी हाल ही गोवा में 13 विधायकों की जगह सिर्फ 3 बचे हैं। इसी तथाकथित हाईकमान के चलते नवजोत सिद्धू को प्रदेश कांग्रेस की बागडोर सौंप दी गयी थी और पंजाब में कांग्रेस को भाजपा से मुकाबला करने लायक बनाने वाले कैप्टन अमरिंदर सिंह ने अपने पद से ही इस्तीफा नहीं दिया बल्कि कांग्रेस पार्टी ही छोड़ दी। उसी समय से कैप्टन अमरिंदर सिंह भाजपा की पसंद बन गये थे। चर्चा यही थी कि कैप्टन भाजपा में शामिल हो जाएंगे और फिलहाल वही भाजपा के चेहरा होंगे लेकिन राजनीति में सभी की अपनी महत्वाकांक्षा होती है। कैप्टन अमरिंदर भी 2022 के विधान सभा चुनाव में अपनी ताकत दिखाना चाहते थे लेकिन मतदाताओं का आकलन अलग तरह का होता है। पंजाब में मतदाताओं ने अरविन्द केजरीवाल की आम आदमी पार्टी (आप) को सरकार बनाने का मौका दिया है। कैप्टन अमरिंदर सिंह को भी समझ में आ गया कि अकेला चना भाड़ नहीं फोड़ सकता इसीलिए वह अब भाजपा से पूरी तरह जुड़ने मंे ही बेहतर भविष्य देख रहे हैं। उन्होंने अपनी पार्टी बनायी थी, उसका विलय भाजपा में हो जाएगा। इस प्रकार 2024 के लोक सभा चुनाव में पंजाब के नये राजनीतिक समीकरणों का नतीजा सामने आएगा।
पंजाब के पूर्व मुख्यमंत्री और पंजाब लोक कांग्रेस के प्रमुख कैप्टन अमरिंदर सिंह 19 सितंबर को बीजेपी में शामिल होने जा रहे हैं। वह अपने बेटे रण इंदर सिंह, बेटी जय इंदर कौर और नाती निर्वाण सिंह के साथ बीजेपी का हाथ थामने जा रहे हैं। उनकी पार्टी का आधिकारिक रूप से विलय बीजेपी में 19 सितंबर को हो जाएगा। ऐसे में पंजाब की राजनीति में कुछ दिलचस्प बदलाव आने की बात कही जा रही है।
कैप्टन अमरिंदर सिंह ने पंजाब चुनाव से पहले कांग्रेस से इस्तीफा दे दिया था। कांग्रेस नेतृत्व से विवाद की बात कहकर उन्होंने मुख्यमंत्री पद और पार्टी की सदस्यता छोड़ दी थी। उस दौरान पंजाब की राजनीति का केंद्र नवजोत सिंह सिद्धू थे। सिद्धू और अमरिंदर के बीच बयानबाजी सामने आई थीं। हालांकि कांग्रेस छोड़ने के कई दिनों बाद उन्होंने अपनी पार्टी का ऐलान किया था और बाद में बीजेपी को समर्थन देने की बात कही थी। वह गृह मंत्री अमित शाह से भी मिल चुके थे। कांग्रेस छोड़ कैप्टन अमरिंदर सिंह विधानसभा चुनाव में भी मैदान में उतरे थे। उनकी पार्टी से कई उम्मीदवार चुनाव लड़े थे। लेकिन कैप्टन इस चुनाव में कोई कमाल नहीं दिखा पाए थे। उन्हें खुद भी पटियाला सीट पर हार का सामना करना पड़ा था। उन्हें आम आदमी पार्टी के अजित पाल सिंह कोहली ने बड़े अंतर से हराया था। कैप्टन को 28007 वोट मिले थे। वहीं कोहली को 47,704 वोट मिले थे। हाल ही में पंजाब के पूर्व मुख्यमंत्री अमरिंदर सिंह ने राज्य स्तर के बजाय राष्ट्रीय स्तर पर समुदायों का अल्पसंख्यक दर्जा निर्धारित करने की आवश्यकता पर बल दिया था। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को लिखे पत्र में सिंह ने कहा था कि उन्हें पता चला है कि उच्चतम न्यायालय पंजाब में सिख अल्पसंख्यक संस्थानों के मामले को प्राथमिकता के आधार पर लेगा। बीजेपी की सहयोगी पार्टी पंजाब लोक कांग्रेस के प्रमुख ने कहा था, याचिकाकर्ता का मुख्य तर्क यह है कि पंजाब में सिख अल्पसंख्यक नहीं हैं, इसलिए इन संस्थानों को अल्पसंख्यक का दर्जा नहीं दिया जा सकता है।
सवाल है कि क्या दिल्ली के बाद आम आदमी पार्टी की पंजाब सरकार पर 'ऑपरेशन लोटस' का खतरा मंडरा रहा है। इसको लेकर विधायकों ने पंजाब पुलिस के डीजीपी के पास शिकायत दर्ज कराई है। विधायकों ने पैसों के प्रलोभन और सीबीआई, ईडी के जरिए दबाव बनाने के आरोप लगाए हैं। शिकायत के बाद मामले में प्रीवेंशन ऑफ करप्शन एक्ट के तहत एफआईआर भी दर्ज की गई है, जिसकी जांच पंजाब विजिलेंस ब्यूरो को सौंपी गई है। हालांकि इस खतरे के खुलासे के बाद आम आदमी पार्टी हरकत में आ गई है और दिल्ली तक में हड़कंप मच गया है। पंजाब के आम आदमी पार्टी के सभी विधायकों को दिल्ली बुलाया गया, जहां पार्टी प्रमुख और दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल के साथ बैठक हुई। इस बैठक में दिल्ली विधानसभा की तर्ज पर 'ऑपरेशन लोटस' का खुलासा करने के लिए पंजाब विधानसभा का स्पेशल सत्र भी बुलाया जा सकता है। इससे पहले दिल्ली में भी कई विधायकों पर कथित रूप से इस तरह दबाव बनाए गए थे, जिसके बाद स्पेशल सत्र बुलाकर दिल्ली सरकार ने इसका खुलासा किया था। कथित रूप से डिप्टी सीएम मनीष सिसोदिया तक को पैसे के प्रलोभन दिए गए थे।
अब पंजाब में भी इसी तरह का संभावित खतरा सामने आया है। हालांकि फिलहाल विधायकों की शिकायत के बाद मामले की जांच की जा रही है।
पंजाब पुलिस के प्रवक्ता ने पुष्टि की है कि मामले की जांच की जिम्मेदारी विजिलेंस विभाग को ट्रांसफर की गई है। हालांकि अभी ये साफ नहीं है कि क्या इस एफआईआर में किसी पंजाब या केंद्र के बीजेपी नेता या कार्यकर्ता का नाम शामिल किया गया है।
हालांकि पंजाब बीजेपी के राष्ट्रीय महासचिव बीएल संतोष ने कहा कि उनकी पार्टी पंजाब में एक जिम्मेदार विपक्ष की भूमिका निभाएगी और राज्य के हितों के साथ कोई समझौता नहीं होने देगी। उन्होंने कहा, 'बीजेपी राज्य में एक परिपक्व विपक्ष की जिम्मेदार भूमिका निभाएगी और जहां राज्य और राष्ट्र के हितों की बात है, वहां कोई समझौता नहीं होने दिया जाएगा। संतोष ने एक बैठक की अध्यक्षता की। इस दौरान आगामी नगरपालिका चुनावों और संगरूर संसदीय सीट पर उपचुनाव के लिए रणनीतियों पर चर्चा की गई। इस बैठक के दौरान संतोष ने बीजेपी नेताओं और कार्यकर्ताओं से कहा कि वे राज्य से बाहर निकलें और जनता को आम आदमी पार्टी (आप) के 'झूठे प्रचार और खोखले वादों' से अवगत कराएं। उन्होंने कहा कि आम आदमी पार्टी ने राज्य में विधानसभा चुनाव जीतने के लिए पंजाब की जनता को झूठे वादे कर 'धोखा' देने का काम किया। इस प्रकार पंजाब मंे उदासीन रहने वाली भाजपा सक्रिय हो गयी है। पंजाब बीजेपी के प्रमुख अश्विनी शर्मा ने कहा, 'भाजपा एक ऐसी पार्टी है, जो देश के लिए अथक प्रयास करती है, और इसका एजेंडा हर नागरिक के लिए शांति और समृद्धि है। आम आदमी पार्टी (आप) को किसी भी शरारत से बचना चाहिए और सुशासन पर ध्यान देना चाहिए। (हिफी)