एलएसी: जमीन से आकाश तक मुस्तैदी

रक्षा मंत्री ने सीमा के निकट सड़क और पुल निर्माण कार्यों की प्रगति की समीक्षा की और तय समय में पूरा करने का निर्देश दिया

Update: 2020-07-08 12:58 GMT

लखनऊ। यह अच्छी बात है कि लद्दाख में जहां चीनी सैनिकों ने अनावश्यक विवाद खड़ा किया था, वहां से वे पीछे हट गये हैं लेकिन चीन पर विश्वास करना भूल साबित होगी। इसीलिए भारत के रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने सीमा के निकट सड़क और पुल निर्माण कार्यों की प्रगति की समीक्षा की और उन्हें तय समय में पूरा करने का निर्देश भी दिया। यह काम बीआरओ कर रहा है। इसके साथ ही दुनिया का बेहतरीन लड़ाकू हेलिकाप्टर अपाचे आकाश से पहरेदारी करता है। चीन पर हर तरफ से दबाव पड़ा है। अमेरिका ने तो साफ-साफ कह दिया युद्ध होने पर अमेरिकी सैनिक भारत के साथ खड़े होंगे। इसी प्रकार आर्थिक प्रतिबंधों ने भी ड्रैगन को कदम पीछे हटाने पर मजबूर किया है।

भारत की ताकत और रणनीति ने लाइन ऑफ एक्चुअल कंट्रोल (एलएसी) पर चीन को अपने कदम पीछे खींचने पर मजबूर कर दिया है। लेह से 35 किलोमीटर दूर नीमू तक मोदी गये थे। एलएसी के पास सामरिक पुल और सड़कों को बनाने का काम युद्ध स्तर पर चल रहा है। सीमा सड़क संगठन यानी बीआरओ तेजी से सामरिक सड़कों और पुल को बना रहा है। यहां पर 3 साल से 40 पुलों पर काम चल रहा है, जिसमें से 20 पुल बनकर तैयार हैं। 2022 तक 66 सामरिक सड़कें बनाने का भी लक्ष्य है। पुराने पुलों की जगह नए मजबूत पुल बनाए जा रहे है, जिससे सेना के भारी भरकम ट्रक और टैंक आसानी से गुजर सकें। इसके साथ ही दुनिया की सबसे ऊंची पक्की रोड खरदुंग ला भी बन गयी। यह हाईवे सियाचिन और दौलत बेग ओल्डी को जोड़ती है। भारत और चीन के बीच टकराव की सबसे बड़ी वजह भारत की ओर से तेजी से सामरिक सड़कों और पुलों का निर्माण करना है। चीन घबराया हुआ है कि भारतीय सेना इतनी तेजी से सामरिक सड़कें और पुल क्यों बना रही है। सड़क-पुल निर्माण के काम में बीआरओ अहम भूमिका निभा रहा है।

खरदुंग रोड का तेजी से निर्माण किया जा रहा है। सामरिक रूप से यह सड़क काफी अहम है और इसे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की महत्वाकांक्षी परियोजना में से एक माना जाता है। इस नई सड़क के बन जाने से सियाचिन तक भारतीय सैनिकों की आवाजाही बिना पाकिस्तान के नजर में आए हो सकेगी।

नीमू-खरदुंग ला के पुल को बीआरओ ने रिकॉर्ड तीन महीने में पूरा किया है। यहां पर पुराना लोहे का पुल था, जिसे हटाकर नया पुल बनाया गया है, ताकि सेना के भारी वाहनों को सियाचिन या दौलत बेग ओल्डी तक पहुंचने में कोई दिक्कत न हो। इसी प्रकार भारत ने अपने कदम पीछे नहीं खींचे हैं। रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने 7 जुलाई को बॉर्डर पर जारी सड़क निर्माण और अन्य निर्माण को लेकर रिव्यू बैठक की थी।

बॉर्डर रोड ऑर्गनाइजेशन (बीआरओ) के जिम्मे बॉर्डर पर सभी निर्माण करने का जिम्मा रहता है। रक्षा मंत्री ने बीआरओ के वरिष्ठ अधिकारियों से सभी प्रोजक्ट का रिव्यू लिया, इसके अलावा निर्माण कार्य में तेजी लाने की बात कही। लेफ्टिनेंट जनरल हरपाल सिंह ने पूरी जानकारी दी। चीन बॉर्डर के पास ही कई दर्जन पुलों का निर्माण चल रहा है। एलएसी के पास सामरिक पुल और सड़कों को बनाने का काम युद्ध स्तर पर आगे बढ़ रहा है। नेशनल हाइवे मंत्रालय ने बॉर्डर पर जारी सड़क निर्माण को पूरा करने के लिए अतिरिक्त बजट भी दिया है। इसके अलावा वक्त के अंदर काम पूरा करने को कहा गया है। लॉकडाउन की वजह से काम पर काफी प्रभाव पड़ा था, लेकिन जब अनलॉक शुरू हो चुका है और चीन से तनाव भी बढ़ा है। ऐसे में सरकार की ओर से अतिरिक्त मजदूरों को लेह, लद्दाख भेजा गया है। अब हजारों की संख्या में मजदूर सड़क-पुल और सेना से जुड़े अन्य निर्माण कार्य कर रहे हैं।

चीन को डर है कि इससे उसके वन बेल्ट प्रोजेक्ट पर अड़ंगा लग सकता है। क्योंकि तब भारतीय सेना आसानी से यहां पर आ जाएगी।

लाइन ऑफ एक्चुअल कंट्रोल (एलएसी) पर चीन ने कदम तो पीछे खींच लिए हैं, लेकिन चीन की फितरत को देखते हुए भारत की सेना पूरी तरह चाक-चैंबंद और चैकन्ना है। चैकसी का ये आलम है कि वायुसेना के लड़ाकू विमान रात में भी आसमानी सरहद पर गश्त लगा रहे हैं। सुखोई, मिग जैसे युद्धक विमान लगातार आसमानी सीमा की निगरानी कर रहे हैं। वायुसेना के लड़ाकू विमान सुखोई और मिग-29 समेत कई लड़ाकू विमान दुश्मन पर नजर रखने के लिए लगातार उड़ान भर रहे हैं। इसी तरह से वायुसेना के हेलीकॉप्टर अपाचे, चिनूक और मी-17 भी मिशन में लगे हुए हैं। फॉरवर्ड एयरवेस पर वायुसेना के लड़ाकू विमानों और हेलिकॉप्टर को तैयार किया जा रहा है। लगभग 15 डिग्री तापमान और तेज बर्फीली हवाओं के बीच वायुसैनिक सरहद की निगरानी के इस मिशन में जुटे हुए हैं। यहां पर तैनात सैनिक दोहरी चुनौती से निपट रहे हैं। एक तरफ बर्फीले मौसम की दुश्वारियां और दूसरी तरफ दुश्मन पर कड़ी नजर रखने की चुनौती। रात के मिशन पर जाने से पहले ग्राउंड स्टाफ अपाचे हेलिकॉप्टर को तैयार कर रहे हैं। अपाचे हेलिकॉप्टर रिफ्यूल किया जा रहा है साथ ही मिसाइल, मशीनगन, रडार और सभी मशीनों को चेक किया जा रहा है। धीरे-धीरे इंजन स्टार्ट होता है और रोटर घूमना शुरू हो जाता है। इसके साथ ही जैसे ही ग्राउंड स्टाफ हरी झंडी देता है, रात के अंधेरे में अपाचे हेलीकॉप्टर अपनी उड़ान शुरू कर देता है।

अपाचे हेलीकॉप्टर दुनिया का बेहतरीन लड़ाकू हेलीकॉप्टर माना जाता है और खासतौर से यह माउंटेन वार फेयर के लिए बहुत बेहतरीन है।।अमेरिकी सेना इसका इस्तेमाल अफगानिस्तान के ऊंचे पहाड़ों में तालिबान के खिलाफ कर रही है। इस वक्त लद्दाख में चीन से लगने वाली 1200 किलोमीटर लंबी एलएसी पर भारत के हजारों जवान तैनात हैं। ऐसे में रात के वक्त किसी भी इमरजेंसी से निपटने के लिए चिनूक हेलिकॉप्टर फॉरवर्ड एयरबेस से उड़ान भरता है और अगर जवानों को राशन-हथियार की कोई भी जरूरत होती है तो न सिर्फ दिन बल्कि रात में भी उसे पूरा करता है। रात का ऑपरेशन आसान नहीं होता है। खासतौर से 12000 से लेकर 18000 फिट की ऊंचाई पर ऑपरेशन के दौरान कई चुनौतियां होती हैं। एक बार उड़ान भरने पर ये हेलीकॉप्टर करीब 40 मिनट तक फॉरवर्ड इलाकों में निगरानी का काम करते हैं। उसके बाद वापस एयरबेस पर लौट आते हैं। मौजूदा हालात में सरहद पर सुखोई लड़ाकू विमान चीन की हर हरकत का माकूल जवाब देने के लिए तैयार हैं। वायुसेना के मुताबिक रात के ऑपरेशन में दुश्मन को चैंकाने का एक बहुत बड़ा कारण होता है, इसीलिए नाइट ऑपरेशन की बहुत अहमियत होती है। इस प्रकार लद्दाख मंे चीन की सीमा पर एक तरफ जमीन पर सड़कें और पुल बनाए जा रहे हैं तो दूसरी तरफ आकाश से चील की तरह निगाह रखी जा रही है।

 (अशोक त्रिपाठी-हिन्दुस्तान समाचार फीचर सेवा)

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