प्रदर्शन करना किसानों का मौलिक अधिकार- सुप्रीम कोर्ट

सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि वह फिलहाल कृषि कानूनों की वैधता तय नहीं करेगी। आज हम जो पहली और एकमात्र बात तय करेंगे

Update: 2020-12-17 10:51 GMT

नई दिल्ली। उच्चतम न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश की अध्यक्षता वाली पीठ ने कहा कि अपनी मांगों के लिये प्रदर्शन करना किसानों का मौलिक अधिकार है और वह फिलहाल कानूनों की वैधता तय नहीं करेगा। किसान आंदोलन पर उच्चतम न्यायालय में गुरूवार को सुनवाई पूरी हो गई।    

सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि वह फिलहाल कृषि कानूनों की वैधता तय नहीं करेगी। आज हम जो पहली और एकमात्र बात तय करेंगे, वह किसानों के विरोध प्रदर्शन और नागरिकों के मौलिक अधिकारों को लेकर है। कानूनों की वैधता को लेकर लगाया गया सवालियां निशान इंतजार कर सकता है। परंतु अपनी मांगों को लेकर प्रदर्शन करना किसानों का मौलिक अधिकार है।

सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि प्रदर्शन के लिये किसान पूरे शहर को बंधक नहीं बना सकते। हम कानून पर रोक की बात नहीं कह रहे हैं। सिर्फ बातचीत का माहौल बनाने की कोशिश की जा रही है। सभी पक्षों को नोटिस जारी किया जायेगा और जरूरत पडने पर वैकेशन बैंच के सामने मामला रखें।

सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई के दौरान मुख्य न्यायाधीश ने कहा कि दिल्ली को ब्लाॅक करने से यहां के लोग भूखें रह सकते हैं। किसानों का मकसद बात करके ही पूरा हो सकता है। सिर्फ विरोध प्रदर्शन पर बैठने से कोई फायदा नहीं होगा। कोर्ट ने आगे की सुनवाई पर कुछ स्पष्ठता नहीं दी।

भारत के मुख्य न्यायाधीश ने कहा कि सुनवाई के सम्बंध में सभी प्रदर्शनकारी किसान संगठनों को अभी नोटिस जाना है। सुझाव दिया कि इस मामलें को शीतकालीन अवकाश के लिये अदालत की अवकाश पीठ के समक्ष रखा जाये। इससे पहले सुप्रीम कोर्ट के अटार्नी जनरल के.के वेणुगोपाल ने कहा कि प्रदर्शन कर रहे किसानों में से कोई भी मास्क नहीं पहनता है। किसान बड़ी संख्या में एक साथ बैठते हैं, जो कोविड-19 के लिये एक चिंता का सबब है। किसान जब गांव जायेंगे, तो वह वहां पर कोरोना फैलायेंगे। किसान दूसरों के मौलिक अधिकारों का उल्लघन नहीं कर सकते। उधर देश की राजधानी दिल्ली की सीमाओं पर डटे किसानों का आंदालेन गुरूवार को 22वें दिन भी जारी है।

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