होगा व्यवस्था में सुधार-डीएम की कवायद पर अमल शुरू

जिलाधिकारी द्वारा शुरू की गई व्यवस्था में सुधार की कवायद पर अमल होना शुरू हो गया है

Update: 2021-08-31 07:01 GMT

मुजफ्फरनगर। जिलाधिकारी द्वारा शुरू की गई व्यवस्था में सुधार की कवायद पर अमल होना शुरू हो गया है। अस्पताल पहुंचे एमओआईसी ने मौके पर अपनी उपस्थिति दर्शाने के फोटोग्राफ डीएम कार्यालय को भेजें। इसके अलावा अस्पतालों के अन्य डाक्टरों व स्वास्थ्यकर्मियों की उपस्थिति के फोटोग्राफ भी डीएम वार रूम को मुहैया कराये गये है।




जिलाधिकारी चंद्र प्रकाश की ओर से जिले की पटरी से उतरी व्यवस्थाओं में सुधार की कवायद शुरू की गई है। जिलाधिकारी की ओर से वार रूम में बुलाकर मुख्य चिकित्सा अधिकारी महावीर सिंह फौजदार की उपस्थिति में जिले के सभी सरकारी अस्पतालों के एमओआईसी को अपनी उपस्थिति दर्शाने के लिए अस्पताल में पहुंचने के बाद अपने फोटोग्राफ डीएम कार्यालय को उपलब्ध कराने के निर्देश दिए गए थे। जिसके तहत मंगलवार को अपने अपने अस्पतालों में पहुंचे एमओआईसी ने अपनी उपस्थिति दर्शाने को अस्पताल से अपने फोटोग्राफ मोबाइल से खींचकर डीएम वार रूम को भेजें। डीएम वार रूम को फोटोग्राफ भेजने वालों में एमओआईसी ग़ालिबपुर, एनओआईसी मेघाखेड़ी, एमओआईसी चरथावल, एमओआईसी पुरकाजी, एमओआईसी बघरा, एमओआईसी शाहपुर, एमओआईसी मोरना एवं एमओआईसी जानसठ के अलावा एमओआईसी बुढाना मुख्य रूप से शामिल रहे। इन अस्पतालों के एमओआईसी ने अन्य डॉक्टरों की उपस्थिति के फोटोस भी डीएम वार रूम को उपलब्ध कराए हैं। गौरतलब है कि कस्बाई एवं ग्रामीण क्षेत्रों में सरकार की ओर से स्वास्थ्य विभाग के माध्यम से क्षेत्रीय लोगों की स्वास्थ्य एवं चिकित्सीय सुविधाओं के लिए सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र एवं प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्रों के अलावा अन्य छोटे अस्पतालों की स्थापना की गई है। मगर आम तौर पर आरोप लगते रहते हैं कि कस्बाई एवं ग्रामीण क्षेत्रों में खुले अस्पतालों में चिकित्सक और अन्य स्वास्थ्य कर्मी नहीं जाते और किसी एक दिन पहुंचकर पिछली सभी उपस्थिति रजिस्टर में दर्ज कर देते हैं। जिसके चलते लोगों को समय से सरकारी अस्पतालों में चिकित्सा सुविधाएं नहीं मिल पाती है। बीमार होने की स्थिति में इन इलाके के लोगों को या तो झोलाछाप चिकित्सकों की सहायता लेनी पड़ती है अथवा निजी चिकित्सकों के यहां जाकर अपना इलाज कराना पड़ता है। निजी चिकित्सकों की फीस और दवाइयों के इतने खर्चे होते हैं कि गांव का गरीब व्यक्ति इन्हें वहन नहीं कर पाता है।

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