UP में ब्राह्मण मतदाताओं को रिझाने का दौर जारी
ब्राह्मणों को इकट्ठा कर इन दिनों राज्य की राजनीति को फिर नयी दिशा में मोड़ने का प्रयास कर रही हैं।
नयी दिल्ली। बहुजन समाज पार्टी (बसपा) की अध्यक्ष मायावती प्रबुद्ध सम्मेलन के नाम पर उत्तर प्रदेश के ब्राह्मणों को इकट्ठा कर इन दिनों राज्य की राजनीति को फिर नयी दिशा में मोड़ने का प्रयास कर रही हैं।
मायावती ने मंगलवार को लखनऊ में आयोजित प्रबुद्ध सम्मेलन में कहा कि राज्य की भारतीय जनता पार्टी(भाजपा) सरकार में ब्राह्मण दुखी हैं जबकि पिछले चुनाव में ब्राह्मणों ने भाजपा को एकतरफा वोट दिया था। वह दावा कर रही हैं कि आगामी राज्य विधानसभा चुनाव में दलित ब्राह्मण फिर एक बार साथ आएंगे।
मायावती के साथ-साथ समाजवादी पार्टी और कांग्रेस का भी खास ध्यान इस बार ब्राह्मण वोटों पर है। भाजपा तो ब्राह्मणों को अपना कोर वोटर मानती ही रही है। इस बार दलितों के वोटों के साथ-साथ ब्राह्मण मतों पर भी राजनीतिक दलों का जोर है। पिछले विधानसभा चुनाव में कुल 56 ब्राह्मण विधायक बने थे।
उत्तर प्रदेश में इन दिनों नारा चल रहा है, 2017 में राम लहर और 2022 में परशुराम लहर। कांग्रेस महासचिव प्रियंका गांधी इन दिनों उत्तर प्रदेश में ब्राह्मणों को पार्टी से फिर जोड़ने के लिए पूरी कोशिश कर रही है। बसपा ने उत्तर प्रदेश के 18 मंडलों में ब्राह्मण सम्मेलन करने का एलान किया है और इसकी शुरुआत उसने अयोध्या से 23 जुलाई से कर दी है। इन सम्मेलनों की ज़िम्मेदारी पार्टी महासचिव सतीशचन्द्र मिश्र को सौंपी गयी है।
उत्तर प्रदेश की योगी सरकार में एक उप मुख्यमंत्री दिनेश शर्मा के अलावा आठ ब्राह्मण मंत्री हैं। इनमें ब्रजेश पाठक और श्रीकांत शर्मा जैसे ब्राह्मण नेता शामिल हैं।
साल 2017 के उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनावों के बाद हुए सीएसडीएस के सर्वे के मुताबिक 2017 में 80 फीसदी ब्राह्मणों ने भाजपा को वोट दिया, इससे पहले 2014 के आम चुनाव में 72 फीसद और 2019 में 82 प्रतिशत ब्राह्मणों के वोट भाजपा को मिले जबकि 2007 में जब बसपा ने ब्राह्मण मतदाताओं के भरपूर सहयोग से सरकार बनाई थी। भाजपा को तब 40 फीसद ब्राह्मणों के वोट मिले थे। वर्ष 2012 में श्री मुलायम सिंह यादव के राज्य की राजनीति में शिखर पर हाेने के वक्त भी 38 फीसद ब्राह्मणों ने भाजपा को वोट दिया। वर्ष 1992 में बाबरी मस्जिद गिराए जाने से पहले ज्यादातर ब्राह्मण कांग्रेस के साथ रहते थे।
वर्ष 2007 में ब्राह्मणों के बसपा के साथ जुड़ने पर राजनीतिक प्रेक्षकों ने कहा था, बहन जी (मायावती) की यह नयी 'सोशल इंजीनियरिंग' है जिसके दूरगामी परिणाम होंगे लेकिन अगले विधानसभा चुनावाें में सुश्री मायावती का ब्राह्मण-दलित मेलजोल का फार्मूला कामयाब नहीं हुआ।
साल 2007 में जब बसपा ने सरकार बनाई, तब उसे 206 सीटों पर विजय मिली थी। उसके 51 उम्मीदवारों में से 20 ब्राह्मण उम्मीदवार विधानसभा पहुंचे थे। तब उसे 30 फीसदी वोट मिले थे। 2012 में 51 में से सिर्फ सात और 2017 में 52 में से से सिर्फ चार ब्राह्मण विधायक बने, और पार्टी सत्ता से बहुत दूर रही। अब बसपा ऐसी अकेली पार्टी है जिसके लोकसभा और राज्यसभा दोनों में पार्टी के नेता ब्राह्मण हैं। लोकसभा में दानिश अली को हटा कर अम्बेडकर नगर सीट से सांसद रितेश पांडे को नेता बनाया गया है, जबकि श्री सतीश मिश्रा राज्यसभा में नेता हैं।
भाजपा ने साल 2017 के चुनावों में हिन्दी बेल्ट के 199 उम्मीदवारों में से जिन 37 ब्राह्मणों और 30 राजपूतों को टिकट दिया उनमें से 33 ब्राह्मणों और 27 राजपूतों ने जीत हासिल की। कांग्रेस ने 2009 में 21 सीटें जीती थी, जिनमें 18 पूर्वी उत्तर प्रदेश से थीं जिसके सात जिलों में ब्राह्मण प्रभावी हैं और शायद इसीलिए प्रियंका गांधी को पूर्वी उत्तरप्रदेश का प्रभारी महासचिव बनाया गया।
कांग्रेस ने 2007 में रीता बहुगुणा को ब्राह्मण चेहरे के नाते उत्तर प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष बनाया लेकिन वह 2016 के अक्टूबर में कांग्रेस छोड़कर भाजपा में शामिल हो गईं। साल 2017 के चुनावों से पहले कांग्रेस ने दिल्ली की तीन बार मुख्यमंत्री रहीं शीला दीक्षित को भी ब्राह्मण चेहरा होने की वजह से मुख्यमंत्री पद का उम्मीदवार बनाने की कोशिश की,लेकिन फिर चुनावों के बीच में ही कांग्रेस को राहुल और अखिलेश का साथ पसंद आ गया और अखिलेश चेहरा बन गए।
कांग्रेस के सबसे ताकतवर मुख्यमंत्रियों में से एक यूपी में कमलापति त्रिपाठी 1971 से 73 तक रहे, फिर उनके खिलाफ बगावत करके हेमवती नंदन बहुगुणा 1973 से 75 तक सीएम रहे और जब संजय गांधी से नाराजगी के कारण उन्हें हटना पड़ा तो इमरजेंसी के वक्त तीसरे ब्राह्मण नारायण दत्त तिवारी बने। तीसरी और अखिरी बार तिवारी को जून 1988 से दिसम्बर 1989 तक मुख्यमंत्री बनाया गया।तिवारी को तो कांग्रेस ने फिर 2002 से 2007 तक उत्तराखंड का मुख्यमंत्री बनाया।
राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि उत्तर प्रदेश में करीब 13 फीसदी ब्राह्मण मतदाता होने के कारण सभी राजनीतिक दलाें की कोशिश इन्हें अपने साथ जोड़ने की रहती है और ये जिस पार्टी के साथ जुड़े उसकी सत्ता बनवायी और चाहा तो लंबे समय तक सत्ता में बनाये रखा।
वार्ता