दारूल उलूम देवबंद मजहबी तालीम ही देता है: मौलाना अरशद मदनी

मुस्लिम औरतें अपने जिस्म को ढककर रखें। वह अपनी आंखें और चेहरा को खोलने की अनुमति दी गई है।;

Update: 2021-09-14 12:50 GMT

सहारनपुर। देवबंदी विचारधारा के इस्लामिक शिक्षा के केंद्र दारूल उलूम देवबंद के सदर मुदर्रिस शिक्षा प्रमुख मौलाना अरशद मदनी ने कहा कि हमारे यहां केवल इस्लामिक शिक्षा ही दी जाती है।

मौलाना अरशद मदनी ने आज यहां कहा कि 30 मई 1866 को स्थापित इस संस्था में न तो वकालत की शिक्षा दी जाती है और न ही डाक्टरी की। मौलाना अरशद मदनी ने कहा कि भारत में एक लाख के करीब मस्जिदें हैं और वहां पांच वक्त नमाज अदा की जाती है। नमाज अदा कराने के लिए इमाम होते हैं। उन सबकी नियुक्ति दारूल उलूम से शिक्षा प्राप्त छात्रों में से ही होती है। इसके अलावा दारूल उलूम से शिक्षित छात्र दीनी मदरसों में पढ़ाने का काम करते हैं।

मौलाना अरशद मदनी जो जमीयत उलमाए हिंद के राष्ट्रीय अध्यक्ष भी हैं ने कहा कि मुस्लिम लड़कियों की पढ़ाई युवकों के साथ नहीं होनी चाहिए। मुस्लिम औरतें अपने जिस्म को ढककर रखें। वह अपनी आंखें और चेहरा को खोलने की अनुमति दी गई है। उन्होंने दोहराते हुए कहा कि उनका अफगानिस्तान के तालिबान से किसी तरह का कोई रिश्ता नहीं है। वहां के लोगों ने विदेशी हुकूमत से निजात पाने के लिए जो जंग लड़ी है वह हर कोई राष्ट्र अपनी स्वतंत्रता के लड़ता है।

उन्होंने इस बात की सराहना की कि मोहन भागवत के नेतृत्व में संघ की विचारधारा में बड़ा बदलाव आया है। संघ प्रमुख मोहन भागवत बार-बार जोर देकर यह कह रहे हैं कि भारत के मुसलमान और हिंदुओं के पूर्वज एक ही थे। इस मायने में भारत के मुसलमानों को हिंदुओं से अलग करके नहीं देखा जाना चाहिए। मदनी ने कहा कि वह श्री भागवत के इस बयान का समर्थन करते हैं और उनके साथ खड़े हैं।


वार्ता

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