अयोध्या- श्रद्धालु अब नहीं कर पाएंगे 14 कोसी परिक्रमा

अयोध्या में कोरोना वायरस के चलते इस बार प्रसिद्ध चौदह कोसी परिक्रमा में केवल स्थानीय लोग ही भाग ले पायेंगे।

Update: 2020-11-07 12:04 GMT

अयोध्या। उत्तर प्रदेश के अयोध्या में कोरोना वायरस के चलते इस बार प्रसिद्ध चौदह कोसी परिक्रमा में केवल स्थानीय लोग ही भाग ले पायेंगे।

मंडलायुक्त एम.पी. अग्रवाल की अध्यक्षता में शनिवार को हुई बैठक में इस आशय का निर्णय लिया गया। उन्होंने बताया कि इस बार कोविड प्रोटोकॉल का पालन करते हुए स्थानीय लोग ही चौदह कोसी परिक्रमा कर सकते हैं।

उन्होंने बताया कि इसके लिये सीमावर्ती जिलों गोंडा, बस्ती, अम्बेडकरनगर, सुलतानपुर, अमेठी, बाराबंकी आदि जिलों में बैरियर व्यवस्था को मजबूत किया जायेगा जिससे बाहरी लोगों की भागीदारी न हो सके। उन्होंने बताया कि बैठक में ट्रैफिक प्लान को भी सुचारू रूप से बनाये रखा जायेगा, जिससे चौदह कोसी परिक्रमा बेहतर ढंग से सम्पन्न कराया जा सके।

मान्यताओं के अनुसार बड़ा परिक्रमा अर्थात् चौदह कोसी परिक्रमा का सीधा सम्बन्ध मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान श्रीराम के चौदह वर्ष के वनवास से है। किवदंतियों के अनुसार भगवान श्रीराम के चौदह वर्ष के वनवास से अपने को जोड़ते हुए अयोध्यावासियों ने प्रत्येक वर्ष के लिये एक कोस परिक्रमा की होगी। इस प्रकार चौदह वर्ष के लिये चौदह कोस परिक्रमा पूरा किया होगा, तभी से यह परम्परा बन गयी है और उस परम्परा का निर्वाह करते हुए आज भी कार्तिक की अमावस्या अर्थात दीपावली के नौवें दिन लाखों श्रद्धालु यहां आकर करीब 42 किलोमीटर अर्थात् चौदह कोस की परिक्रमा एक निर्धारित मार्ग पर अयोध्या और फैजाबाद नगर तक चौतरफा पैदल नंगे पांव चलकर अपनी-अपनी परिक्रमा पूरा करते हैं। इस बार कोविड-19 को देखते हुए प्रशासन सीमित लोगों को परिक्रमा करायेगा।

कार्तिक महीने की शुक्ल पक्ष की अष्टमी के दिन शुरू होने वाले इस परिक्रमा में ज्यादातर श्रद्धालु ग्रामीण अंचलों से आते हैं। वे एक दो दिन पूर्व ही यहां आकर अपने परिजनों व साथियों के साथ विभिन्न मंदिरों में आकर शरण लेते हैं और परिक्रमा के दिन निश्चित समय पर सरयू स्नान कर अपनी परिक्रमा शुरू कर देते हैं। जो उसी स्थान पर पुन: पहुंचने पर समाप्त होती है।

परिक्रमा में ज्यादातर लोग लगातार चलकर अपनी परिक्रमा पूरा करना चाहते हैं क्योंकि रुक जाने पर मांसपेशियों में खिंचाव आ जाने से थकान का अनुभव जल्दी होने लगता है, यद्यपि श्रद्धालुओं में न रुकने की चाह रहती है, फिर भी लंबी दूरी की वजह से रुकना तो पड़ता ही है। विश्राम के लिये रुकने वालों में ज्यादातर वृद्ध या अधेड़ उम्र के लोग रहते हैं। इनके विश्राम के लिये जिला प्रशासन के अलावा तमाम स्वयंसेवी संस्थायें आगे चलकर जगह-जगह विश्रामालय नि:शुल्क प्राथमिक चिकित्सा केन्द्र व जलपान गृहों का इंतजाम करती है। श्रद्धालु औसतन अपनी-अपनी परिक्रमा छह-सात घंटे में पूरी कर लेते हैं। इस बार कोविड-19 को देखते हुए जिला प्रशासन चौदह कोसी व पंचकोसी की परिक्रमा की व्यवस्था कैसे बनायेगी यह तो आने वाला समय बतायेगा लेकिन जिला प्रशासन की बैठकें निरंतर चल रही हैं।

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