एक ऐसा मंदिर- जहाँ देवी की नहीं, पालना की होती है पूजा

आस्था की नगरी में एक ऐसा मंदिर है जहां देवी की नहीं बल्कि मां अलोप शंकरी देवी मंदिर में पालना की पूजा श्रद्धालु करते हैं

Update: 2024-10-05 13:12 GMT

प्रयागराज। धर्म और आस्था की नगरी तीर्थराज प्रयाग में एक ऐसा मंदिर है जहां देवी की नहीं बल्कि मां अलोप शंकरी देवी मंदिर में पालना की पूजा श्रद्धालु करते हैं।

शारदीय नवरात्र चल रहा है। यहां भोर से ही मंदिर के अंदर बने पालने का दर्शन करने के लिए श्रद्धालुओं की लंबी कतार लगती है। श्रद्धालु झूलते पालना का दर्शन करते हैं। 52 द्वादश शक्तिपीठों में एक है। यहां देश के कोने-कोने से विशेष कर दक्षिण भारत से बड़ी संख्या में श्रद्धालु दर्शन पूजन के लिए पहुंचते हैं। नवरात्र में माता रानी का श्रृंगार तो नहीं हाेता लेकिन उनके सभी स्वरूपों का पाठ किया जाता है।

श्री अलोप शंकरी शक्तिपीठ मंदिर और पंचायती अखाड़ा के महंत यमुनापुरी ने बताया कि यह 52 शक्तिपीठों में से एक है। मान्यता है कि जब देवी सती अपने पिता दक्ष के बिना बुलाए यज्ञ में पहुंच गई तो वहां उनका और उनके पति महादेव का अपमान हुआ। इससे नाराज होकर देवी सती यज्ञ की अग्नि में कूद गईं और प्राण त्याग दिए।

महादेव क्रोधित हो गए और देवी सती की मृत शरीर के साथ आकाश में यात्रा की। उन्हें इस पीड़ा से राहत देने के लिए भगवान विष्णु ने सुदर्शन चक्र चलाकर सती के शरीर के टुकड़े कर दिए, जो भारत में विभिन्न स्थानों पर गिरे और देवी के शरीर के अंगों से स्पर्श होने के बाद तीर्थ यात्रा के लिए पवित्र स्थान हो गए और शक्ति पीठ बने। मां भगवती के दाहिने हाथ की छोटी उंगली प्रयागराज में इसी स्थान गिरी थी। देवी पुराण और पद्मपुराण में मां अलोप शंकरी देवी का वर्णन मिलता है। यह पौराणिक शक्ति पीठ है।

उन्होंने बताया कि देवी के शरीर के अंग जहां-जहां गिरे वहां शक्तिपीठ स्थापित हुई। प्रयागराज में देवी सती के दाहिने हाथ की अंगुली गिरी थी और इसी स्थान पर मां अलोप शंकरी मंदिर शक्तिपीठ बन गई थी। अंगुली जिस कुंड में गिरी थी उसमें गिरते ही वह अलोप हो गई। इसलिए इसे अलोपी देवी मंदिर भी कहा जाता है। मंदिर में कुंड के ऊपर लकड़ी का पालना लटकता रहता है और वह लाल वस्त्र से ढ़का रहता है। दक्षिण भारत में इसे अष्टादश मांधेश्वरी के रूप में मानते हैं। बड़ी संख्या में यहां पर वे आकर पूजा पाठ करते हैं।

महंत ने बताया कि अलोप शंकरी का मतलब है जिसका कभी लोप नहीं हो भगवती यहां अपनी ऊर्जा शक्ति से विराजमान रहती हैं। नवरात्रि में यहां मां के सभी स्वरूपों का पाठ किया जाता है। यह पालना माता और पुत्र के बीच का संबंध बताता है। पालना के नीचे एक बेदी है और उसके नीचे एक कुंड है जिसमें गंगाजल भरा रहता है।

वार्ता

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