अब बेटे ने रच दिया सुप्रीम कोर्ट में इतिहास
अदालत में जस्टिस डा. धनंजय यशवंत चन्द्रचूड़ (डीवाई चंद्रचूड़) को 9 नवम्बर को मुख्य न्यायाधीश (सीजेआई) की शपथ दिलाई गयी।
लखनऊ। देश की सबसे बड़ी अदालत में जस्टिस डा. धनंजय यशवंत चन्द्रचूड़ (डीवाई चंद्रचूड़) को 9 नवम्बर को मुख्य न्यायाधीश (सीजेआई) की शपथ दिलाई गयी। इसी न्याय मंदिर में उनके पिता जस्टिस वाईवी चन्द्रचूड़ भी मुख्य न्यायाधीश रह चुके हैं। जस्टिस वाईवी चन्द्रचूड़ 22 फरवरी 1978 से जुलाई, 1985 तक देश के मुख्य न्यायाधीश रहे जबकि जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ का कार्यकाल 2024 तक रहेगा। बहुत कम बेटों को यह सौभाग्य मिल पाता है और मौजूदा सीजेई उन्हीं सौभाग्यशालियों में एक हैं। पिछले महीने अर्थात् 11 अक्टूबर 2022 को निवर्तमान सीजेआई यूयू ललित ने सुप्रीम कोर्ट के जजों की बैठक में अपने उत्तराधिकारी के रूप में जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ के नाम की सिफारिश की थी। उसी दिन तय हो गया था कि जस्टिस डीवाई चन्द्रचूड़ देश के मुख्य न्यायाधीश बनेंगे। उन्होंने कई महत्वपूर्ण फैसले किये हैं। इनमें अयोध्या में राम मंदिर विवाद का मामला भी शामिल है। बहुत लोगों को यह जानकर हैरानी होगी कि जस्टिस डीवाई चन्द्रचूड़ ने दो बार अपने पिता वीवाई चन्द्रचूड़ के फैसलों को भी बदल दिया था। देश के मुख्य न्यायाधीश की शपथ लेने के बाद जस्टिस डीवाई चन्द्रचूड़ ने कहा कि वे भविष्य में क्या करेंगे, यह शब्दों में नहीं बता सकते बल्कि कार्यों से बताएंगे। देश के लोगों को न्याय देने का उन्होंने भरोसा जताया है।
सुप्रीम कोर्ट के वरिष्ठतम न्यायाधीश न्यायमूर्ति धनंजय वाई चंद्रचूड़ ने प्रधान न्यायाधीश (सीजेआई) पद की शपथ लेने के बाद कहा, शब्दों से नहीं, काम करके दिखाएंगे। आम आदमी के लिए काम करेंगे। बड़ा मौका है, बड़ी जिम्मेदारी है। आम आदमी की सेवा करना मेरी प्राथमिकता है। आगे आप देखते जाइए, हम चाहे तकनीकी रिफॉर्म हो, रजिस्ट्री रिफॉर्म हो, ज्यूडिशियल रिफॉर्म हो, उसमें नागरिक को प्राथमिकता देंगे। देश के नए मुख्य न्यायाधीश जस्टिस डी वाई चंद्रचूड़ ने शुरुआत सुप्रीम कोर्ट परिसर में लगी महात्मा गांधी की प्रतिमा पर माल्यार्पण से की। जस्टिस चंद्रचूड़ के पिता भी देश के सीजेआई रहे हैं। उनके पिता का बतौर सीजेआई करीब सात साल और चार महीने का कार्यकाल रहा था, जो कि सुप्रीम कोर्ट के इतिहास में किसी सीजेआई का अब तक सबसे लंबा कार्यकाल है। वह 22 फरवरी 1978 से 11 जुलाई 1985 तक प्रधान न्यायाधीश रहे थे।
जस्टिस चंद्रचूड़ 10 नवंबर 2024 तक दो साल के लिए सीजेआई के पद पर रहेंगे। जस्टिस चंद्रचूड़ की सबसे विशिष्ट खासियत है कि वो धैर्य से सुनवाई करते हैं। कुछ दिन पहले जस्टिस चंद्रचूड़ ने लगातार दस घंटे तक सुनवाई की थी। सुनवाई पूरी करते हुए उन्होंने कहा भी था कि काम ही पूजा है। कानून और न्याय प्रणाली की अलग समझ की वजह से जस्टिस चंद्रचूड़ ने दो बार अपने पिता पूर्व चीफ जस्टिस यशवंत विष्णु चंद्रचूड़ के फैसलों को भी पलटा है। जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ के नाम अनगिनत ऐतिहासिक फैसले हैं। हाल ही में, जस्टिस चंद्रचूड़ ने एक ऐतिहासिक फैसले में, जिसने महिलाओं के प्रजनन अधिकारों को बड़े पैमाने पर बढ़ावा दिया, पर फैसला लिया था। जस्टिस चंद्रचूड़ सुप्रीम कोर्ट में आने से पहले इलाहाबाद हाईकोर्ट के चीफ जस्टिस थे। 2016 में उन्हें प्रमोट कर सुप्रीम कोर्ट का जज बनाया गया था। उससे पहले जस्टिस चंद्रचूड़ 2000 से 2013 तक बॉम्बे हाई कोर्ट में जज रह चुके हैं। निजता के अधिकार को संविधान के तहत मौलिक अधिकार घोषित करने वाला सुप्रीम कोर्ट का 9 जजों की संविधान पीठ का फैसला ऐतिहासिक था क्योंकि जस्टिल डी वाई चंद्रचूड़ ने आपातकाल के दौरान दिए गए प्रसिद्ध जबलपुर मामले में अपने पिता वाईवी चंद्रचूड़ के फैसले को पलट दिया था।
28 अप्रैल, 1976 को, जस्टिस वाई वी चंद्रचूड़, जो पांच- जजों के संविधान पीठ का हिस्सा थे, ने 4-1 बहुमत से फैसला सुनाया था कि आपातकाल के दौरान सभी मौलिक अधिकार निलंबित हो जाते हैं और व्यक्तियों को सुरक्षा के लिए संवैधानिक अदालतों से संपर्क करने का अधिकार नहीं है। इसके 41 साल बाद, उनके बेटे जस्टिस डी वाई चंद्रचूड़ ने फैसले को खारिज करते हुए कहा कि एडीएम जबलपुर में बहुमत बनाने वाले सभी चार जजों द्वारा दिए गए फैसले गंभीर रूप से त्रुटिपूर्ण हैं। एडीएम जबलपुर के फैसले द्वारा पैदा की गई अधिकांश समस्याओं को 44 वें संविधान संशोधन द्वारा ठीक कर दिया गया था। जस्टिस डी वाई चंद्रचूड़ ने मामले में जस्टिस एच आर खन्ना द्वारा दिए गए अल्पसंख्यक फैसले को सही ठहराते हुए कहा था कि जस्टिस खन्ना द्वारा लिये गए विचार को स्वीकार किया जाना चाहिए और इसके विचारों की ताकत और इसके दृढ़ विश्वास के साहस के लिए सम्मान में स्वीकार किया जाना चाहिए। जस्टिस खन्ना का स्पष्ट रूप से यह मानना था कि संविधान के तहत जीवन के अधिकार और व्यक्तिगत स्वतंत्रता की मान्यता इसके अलावा उस अधिकार के अस्तित्व को नकारती नहीं है और न ही यह एक गलत धारणा हो सकती है कि संविधान को अपनाने में भारत के लोगों ने मानव व्यक्तित्व के सबसे कीमती पहलू, जीवन और स्वतंत्रता को उस राज्य को सौंप दिया, जिसकी दया पर ये अधिकार निर्भर होंगे।
इसी प्रकार व्यभिचार कानून मामले में भी जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ और उनके पिता, भारत के पूर्व सीजेआई वाईवी चंद्रचूड़ शामिल थे। 1985 में, तत्कालीन सीजेआई वाईवी चंद्रचूड़ ने जस्टिस आरएस पाठक और एएन सेन के साथ धारा 497 की वैधता को बरकरार रखा। लगभग 33 साल बाद उनके बेटे जस्टिस डी वाई चंद्रचूड़ ने मामले में कहा कि हमें अपने फैसलों को आज के समय के हिसाब से प्रासंगिक बनाना चाहिए। कामकाजी महिलाओं के उदाहरण देखने को मिलते हैं, जो घर की देखभाल करती हैं, उनके पतियों द्वारा मारपीट की जाती है, जो कमाते नहीं हैं। वह तलाक चाहती है लेकिन यह मामला सालों से कोर्ट में लंबित है। अगर वह किसी दूसरे पुरुष में प्यार, स्नेह और सांत्वना ढूंढती है, तो क्या वह इससे वंचित रह सकती है। अक्सर, व्यभिचार तब होता है जब शादी पहले ही टूट चुकी होती है और युगल अलग रह रहे होते हैं। किसी अन्य व्यक्ति के साथ यौन संबंध रखता है, तो क्या उसे धारा 497 के तहत दंडित किया जाना चाहिए? व्यभिचार में कानून पितृसत्ता का एक संहिताबद्ध नियम है। यौन स्वायत्तता के सम्मान पर जोर दिया जाना चाहिए। विवाह स्वायत्तता की सीमा को संरक्षित नहीं करता है। धारा 497 विवाह में महिला की अधीनस्थ प्रकृति को अपराध करता है। जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ का यह फैसला भी ऐतिहासिक माना जाता है। (हिफी)बेटे ने रचा इतिहास