कृषि कानून और बिजली बिल खारिज करने का मसौदा प्रस्ताव पेश
केंद्र सरकार के कृषि विरोधी कानूनों और प्रस्तावित बिजली बिल को सिरे से खारिज करते हुए प्रस्ताव का मसौदा सदन में पेश किया।
चंडीगढ़। पंजाब के मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिन्दर सिंह ने किसानों राज्य के किसानों तथा कृषि को बचाने के लिये बड़ा कदम उठाते हुये आज विधानसभा में केंद्र सरकार के कृषि विरोधी कानूनों और प्रस्तावित बिजली (संशोधन) बिल को सिरे से खारिज करते हुए प्रस्ताव का मसौदा सदन में पेश किया।
सदन की कार्यवाही शुरू होते ही उन्होंने सभी राजनीतिक दलों से प्रदेश के हितों की खातिर दलगत भावनाओं से ऊपर उठने की अपील की और कहा कि इस प्रस्ताव के जरिये सर्वसम्मति से कृषि कानूनों और प्रस्तावित बिजली संशोधन बिल को रद्द करने और केन्द्र सरकार से न सिर्फ इन कानूनों को रद्द करने बल्कि अनाज के न्यूनतम समर्थन मूल्य पर खऱीद को किसानों का कानूनी अधिकार बनाने और भारतीय खाद्य निगम ऐसी अन्य संस्थाओं के द्वारा नए अध्यादेश जारी करने की मांग की ।
मुख्यमंत्री ने सदन को संबोधित करते हुये कहा कि कल बिल पेश न किये जाने पर विपक्ष के कुछ सदस्यों ने सियासी लाभ लेने के चक्कर में विधानसभा की ओर ट्रैक्टर मार्च किया और कुछ ने तो विधानसभा के बरामदे में रात तक काटी। ऐसी बातों पर उन्हें दुख होता है । असल में सरकार ने आज पेश किये गये बिलों को लेकर विशेषज्ञों से विचार विमर्श करने के बाद देर रात इन बिलों पर दस्तख़त किए।
उन्होंने कहा कि विशेष सत्र के दौरान ऐसे बिलों की कापियां बाँटने में देरी होती है। ऐसा उस समय पर भी हुआ था, जब उनकी सरकार अपने पिछले कार्यकाल के दौरान साल 2004 में पानी के समझौतों को रद्द करने का एक्ट सदन में लेकर आई थी। कैप्टन सिंह ने कहा कि आज पेश किए जा रहे बिल राज्य की ओर से आगे कानूनी लड़ाई लडऩे का आधार बनेंगे जिस कारण इनको पेश करने से पहले इसकी अच्छी तरह से पड़ताल की ज़रूरत थी। सदन में पास किए गए प्रस्ताव के मुताबिक विधानसभा भारत सरकार द्वारा अब जैसे बनाए गए कृषि कानूनों संबंधी किसानों की चिंताओं के हल को लेकर अपनाए गए कठोर और तर्कहीन व्यवहार के प्रति गहरा खेद प्रकट करती है। प्रस्ताव के मुताबिक इन कृषि कानूनों और प्रस्तावित बिजली संशोधन बिल, 2020 को सर्वसम्मति के साथ ख़ारिज करने को मजबूर है।
केंद्रीय कृषि कानूनों 'किसानी फसल, व्यापार और वाणिज्य एक्ट -2020', किसानों केकीमत के भरोसा और खेती सेवा संबंधी करार एक्ट -2020 और ज़रूरी वस्तु संशोधन एक्ट -2020 के हवाले के साथ आज सदन में पेश किए गए प्रस्ताव में कहा गया कि मुख्यमंत्री ने गत 14 सितम्बर को प्रधानमंत्री को लिखे पत्र में सदन की चिंता और भावनाओं से अवगत करवाया गया और इसके बावजूद केंद्र सरकार ने 24 सितम्बर और 26 सितम्बर को सम्बन्धित कृषि अध्यादेशों को कानूनों में तब्दील करके नोटीफायी कर दिया।
प्रस्ताव के मुताबिक ''प्रस्तावित बिजली संशोधन बिल -2020 समेत यह तीनों ही कृषि कानून स्पष्ट तौर पर जहाँ किसानों, भूमिहीन कामगारों के हितों को चोट पहुँचाता है, वहीं पंजाब के साथ-साथ प्राथमिक हरित क्रांति के पंजाब, हरियाणा और पश्चिमी उत्तर प्रदेश के क्षेत्रों में काफी समय से स्थापित कृषि मंडीकरण प्रणाली के भी विरुद्ध हैं।'' प्रस्ताव के द्वारा कहा गया कि यह कानून प्रत्यक्ष तौर पर भारत सरकार ने कृषि के साथ सम्बन्धित नहीं बल्कि व्यापारिक कानून बनाए हैं। प्रस्ताव में कहा गया कि यह कानून संविधान जिसके अनुसार कृषि राज्य का विषय है, के भी खि़लाफ़ हैं। विधानसभा अध्यक्ष द्वारा पढ़े गए प्रस्ताव के मुताबिक यह कानून संविधान में दर्ज राज्य के कार्यों और अधिकारों पर सीधा हमला हैं।