सीवी आनंद बोस बनेंगे रेनबो ब्रिज

एक ही दल की सरकारें होने पर कोई दिक्कत ही नहीं होती लेकिन जब दोनों जगह अलग-अलग पार्टी या गठबंधन की सरकारें होती हैं,

Update: 2022-11-22 04:41 GMT

नई दिल्ली। राजभवन की भूमिका सरकार के साथ सौहार्दपूर्ण और समन्वय बनाने की होनी चाहिए। केन्द्र और राज्य में एक ही दल की सरकारें होने पर कोई दिक्कत ही नहीं होती लेकिन जब दोनों जगह अलग-अलग पार्टी या गठबंधन की सरकारें होती हैं, तब राजभवन और सरकार का टकराव देखने को मिलता है। पश्चिम बंगाल में तृणमूल कांग्रेस की सरकार और राज्यपाल जगदीप धनखड़ में टकराव जमकर हुआ। अब धनखड़ उपराष्ट्रपति पद को सुशोभित कर रहे हैं तो पश्चिम बंगाल में सीवी आनंद बोस को राज्यपाल बनाया गया है। शुरुआती दौर में जो खबरें आ रही हैं, उनमें कहा गया है कि भाजपाई इस बात से खुश नहीं हैं और वे नये राज्यपाल से भी पूर्व राज्यपाल जगदीप धनखड़ जैसे व्यवहार की अपेक्षा कर रहे हैं लेकिन नवनियुक्त राज्यपाल आनंद बोस कहते हैं कि राज्यपाल की भूमिका राजभवन और राज्य सरकार के बीच सही समाधान और हर प्रकार की समस्या के समाधान के लिए राज्य और केन्द्र के बीच रेनबो ब्रिज की होनी चाहिए। नवनियुक्त राज्यपाल अपने इस संकल्प पर कितना अडिग रहते है, यह तो आने वाला समय ही बताएगा लेकिन उनका यह संकल्प राजभवन और विधान भवन के बीच संबंधों के लिए एक आदर्श नजीर जरूर बन सकता है।  

पश्चिम बंगाल के नवनियुक्त राज्यपाल सीवी आनंद बोस का मानना है कि राज्यपाल की भूमिका राजभवन और टीएमसी सरकार के बीच सही समाधान और सभी संघर्षों के समाधान के लिए राज्य और केंद्र के बीच रेनबो ब्रिज के रूप में कार्य करने की है। बोस को पश्चिमी बंगाल का राज्यपाल नियुक्त किया गया है। उन्होंने कहा कि राजभवन और राज्य सरकार के बीच मतभेदों को एक संघर्ष के रूप में नहीं देखा जाना चाहिए, बल्कि विचारों के अंतर के रूप में देखा जाना चाहिए, क्योंकि दोनों पूरक संस्थान हैं। उन्होंने एक साक्षात्कार में कहा कि, मैं संघर्षों के समाधान को प्राथमिकता देता हूं, क्योंकि हर समस्या का समाधान होता है और हमें सही समाधान पर पहुंचना चाहिए। हमें खेल में सभी भागीदारों को एक साथ रखने में सक्षम होना चाहिए। इसलिए मैं कहूंगा कि संविधान क्या अपेक्षा करता है- राज्यपाल को रास्ता जानना है, रास्ता दिखाना है और रास्ते पर चलना है। नए राज्यपाल की यह टिप्पणियां महत्वपूर्ण हैं क्योंकि जगदीप धनखड़ के राज्य सरकार के साथ कड़वे रिश्ते रहे हैं जिससे राजभवन और सरकार के बीच संचार पूरी तरह से टूट गया। धनखड़ राज्य सरकार के साथ लगातार उलझते रहे थे। सत्तारूढ़ तृणमूल कांग्रेस ने उन पर राजभवन को राज्य बीजेपी कार्यालय का एक्सटेंशन बनाने का आरोप लगाया था। इस पर धनखड़ ने प्रतिक्रिया देते हुए कहा था कि वे केवल संविधान को बनाए रखने और राज्यपाल को दी गई शक्तियों के अनुसार कार्य करने का अपना कर्तव्य निभा रहे हैं।

पश्चिम बंगाल में नए राज्यपाल की नियुक्ति के बाद राज्य बीजेपी इकाई ने ला गणेशन, जो कि बंगाल का अतिरिक्त प्रभार संभाल रहे थे, के उपलब्ध न रहने पर नाखुशी व्यक्त की। अब सबकी निगाहें इस बात पर टिकी हैं कि नए राज्यपाल के लिए क्या चुनौतियां होंगी, खासतौर पर राज्य सरकार के साथ संबंधों के मामले में। बीजेपी की राज्य इकाई ने अब उप-राष्ट्रपति जगदीप धनखड़ की ओर इशारा किया है, जो अक्सर ममता बनर्जी से भिड़ते रहते थे और बीजेपी के साथ मित्रवत दिखाई देते थे। उनका उदाहरण देकर कहा जा रहा है कि राज्यपालों को कैसे कार्य करना चाहिए। बीजेपी के विधायक मनोज तिग्गा ने कहा, राज्यपाल राज्य का सर्वोच्च संवैधानिक पद है। हम यह नहीं कह सकते कि वे क्या करेंगे, लेकिन राज्यपाल क्या भूमिका निभा सकते हैं, यह जगदीप धनखड़ जी ने दिखाया है। ठीक उसी तरह जैसे टीएन शेषन ने दिखाया कि चुनाव आयोग की क्या भूमिका होती है। मुझे यकीन है कि जगदीप धनखड़ ने जो रास्ता दिखाया है, उसका पालन किया जाएगा।

तिग्गा ने यह कहते हुए कि वे नहीं चाहते कि राज्य प्रगति न करे, कहा कि वे चाहते हैं कि राज्यपाल और राज्य के बीच संबंध सौहार्दपूर्ण और सुखद हों। उन्होंने कहा, हम चाहते हैं कि राज्य प्रगति करे। हम चाहते हैं कि राज्य सरकार केंद्र के साथ अच्छे संबंध बनाए और राज्य की प्रगति के लिए केंद्र के साथ सहयोग करे।

राज्य विधानसभा में विपक्ष के नेता शुभेंदु अधिकारी ने कहा कि उन्हें बहुत उम्मीद है कि नये राज्यपाल धनखड़ के नक्शेकदम पर चलेंगे। उन्होंने पत्रकारों से कहा कि, उनकी नियुक्ति के बाद, हमें उनके बारे में जो पता चला है। उनसे हमें बहुत उम्मीद है कि वे वही करेंगे जो पश्चिम बंगाल के पूर्व राज्यपाल जगदीप धनखड़ संविधान को बनाए रखने और बंगाल के हालात को बदलने के लिए करते थे। जगदीप धनखड़ के जाने के बाद बंगाल के राज्यपाल का अतिरिक्त प्रभार ला गणेशन के पास था। सुवेन्दु अधिकारी ला गणेशन से परेशान थे, यह खबरें मिली थीं।

तृणमूल कांग्रेस ने भी कहा है कि उसे राज्यपाल के साथ अच्छे संबंध की उम्मीद है। विधानसभा में राज्य सरकार के उप मुख्य सचेतक तापस रॉय ने कहा, मुझे लगता है कि इस बार नए राज्यपाल के बंगाल की सरकार के साथ सौहार्दपूर्ण संबंध रहेंगे। मुझे लगता है कि वे संविधान के ढांचे के भीतर काम करेंगे। हम भी राज्यपाल को सम्मान देंगे। अतीत में राज्यपाल के साथ हमारे बहुत अच्छे संबंध रहे हैं और हम इसे जारी रखना चाहते हैं।

जगदीप धनखड़ के उपराष्ट्रपति नामित होने के पांच महीने बाद बंगाल को स्थायी राज्यपाल मिल गया है। राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मु ने डा सीवी आनंद बोस को बंगाल का नया राज्यपाल नियुक्त किया। जुलाई में जगदीप धनखड़ के उपराष्ट्रपति पद के लिए नामित होने के बाद मणिपुर के राज्यपाल एल गणेशन बंगाल के कार्यवाहक राज्यपाल के रूप में अतिरिक्त जिम्मेदारी देख रहे थे। दो जनवरी 1951 को केरल के कोट्टयम में जन्मे बोस 1977 बैच के केरल कैडर के रिटायर्ड आइएएस अधिकारी रहे हैं। वर्तमान में वह मेघालय सरकार के सलाहकार के रूप में सेवा दे रहे थे। बोस को प्रशासनिक क्षेत्र में लंबा अनुभव है और वह कई महत्वपूर्ण पदों पर काम कर चुके हैं।वे भारत सरकार के सचिव पद पर सेवा दे चुके हैं। राज्यपाल नियुक्त होने के बाद बोस ने अपने पहले साक्षात्कार में कहा है कि बंगाल से उनका आत्मीय संबंध रहा है। उन्होंने कहा कि राजनीतिक तौर पर बंगाल बहुत जागरूक व सक्रिय राज्य है। उन्होंने आश्वस्त किया कि बंगाल के विकास के लिए वे राज्य सरकार के साथ मिलकर काम करेंगे और संविधान के दायरे में रहकर सभी सहयोग करेंगे। इधर, नए राज्यपाल की नियुक्ति पर तृणमूल कांग्रेस के वरिष्ठ सांसद सौगत राय ने कहा कि हमें नहीं मालूम कि केंद्रीय गृह मंत्री ने इस नियुक्ति से पहले राज्य की सीएम के साथ चर्चा की है। उन्होंने आरोप लगाया कि केंद्र सरकार एकतरफा नियुक्ति कर रही है। हालांकि राय ने उम्मीद जताई कि नए राज्यपाल संविधान के दायरे में रहकर काम करेंगे। यही बेहतर व्यवस्था होगी। (हिफी)

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