पिनारई विजयन ने पुलिस को बना दिया जज
केरल में वाम मोर्चा सरकार के मुख्यमंत्री पिनारई विजयन ने अपनी पुलिस को कुछ इसी तरह के अधिकार दे दिये हैं।
तिरुवनन्तपुरम। पुलिस के हाथ बांधना भी ठीक नहीं है और उसे इतने अधिकार देना भी उचित नहीं होगा कि कानून का पालन करवाने की जगह न्यायाधीश की भूमिका निभाने लगे। केरल में वाम मोर्चा सरकार के मुख्यमंत्री पिनारई विजयन ने अपनी पुलिस को कुछ इसी तरह के अधिकार दे दिये हैं। इस पर राजनीतिक दलों ने बवाल मचाया। अभी जनता की भागीदारी इस बहस में नहीं हुई है लेकिन मुख्यमंत्री पिनारई इस कदम को उचित बताते हैं। उनका कहना है कि जब आईटी एक्ट की धारा 66ए (संचार सेवा के माध्यम से आपत्तिजनक संदेश भेजने की सजा) एक संज्ञेय और गैर जमानती अपराध था तो इस नये कानून में क्या परेशानी है। वह कहते हैं कि धारा 118(ए) के तहत ऐसे अपराध जमानती और संज्ञेय हैं। पुलिस को बिना अदालत की अनुमति के, बिना वारंट गिरफ्तारी के जांच शुरू करने का अधिकार देता है। इस संशोधन को लेकर विपक्षी दल कांग्रेस और भाजपा पूरी तरह से खिलाफ हैं। इन दोनों दलों का कहना है कि इससे पिछले पांच वर्षों से सत्ता रूढ़ एलडीएफ का अस्थिर चेहरा दिख रहा है।
कोच्चि तमाम आलोचनाओं के बीच केरल के मुख्यमंत्री पिनारई विजयन ने केरल पुलिस अधिनियम संशोधन का बचाव किया है। ये संशोधन किसी भी मामले की धमकी, गाली गलौज, अपमानजनक और भद्दी भाषा कहने, छापने और प्रसारित करने पर सजा देने का प्रावधान करता है। इसमें कहा गया है कि ये कानून महिलाओं और ट्रांसजेंडर्स पर हो रहे साइबर हमलों के चलते लाया गया है। केरल के मुख्यमंत्री ने 22 नवम्बर को एक बयान में कहा कि ऐसा माना जाता है कि जहां एक शख्स की नाक शुरू होती है वहीं दूसरे व्यक्ति की स्वतंत्रता खत्म हो जाती है जिसका सम्मान होना चाहिए। उन्होंने कहा कि किसी को भी अपनी मुट्ठी को उठाने की आजादी है लेकिन ये वहीं खत्म हो जाती है जैसे ही दूसरे की नाक शुरू हो जाती है। हालांकि, इस विचार के बार-बार उल्लंघन होने के उदाहरण हैं। समाज में किसी भी व्यक्ति का सम्मान जरूरी है। इसकी संवैधानिक मान्यता भी है। सरकार की जिम्मेदारी बनती है कि वह इसे सुनिश्चित करे. हालांकि, कुछ ऑनलाइन मीडिया ऐसे संवैधानिक प्रावधानों के प्रति चिंतित हैं और ऐसे बर्ताव कर रहे हैं कि जो भी होता है वह अराजकता का माहौल पैदा करेगा। विजयन ने कहा कि यह हमारी सामाजिक व्यवस्था को बदल देगा और इसकी इजाजत नहीं दी जा सकती है।
इस बीच, केरल पुलिस ने कहा है कि वह संशोधित पुलिस अधिनियम पर कार्रवाई करने से पहले एक मानक संचालन प्रक्रिया तैयार करेगी। राज्य मंत्रिमंडल द्वारा 21 अक्टूबर को केरल पुलिस अधिनियम संशोधन अध्यादेश में धारा 118-ए जोड़कर केरल के राज्यपाल आरिफ मोहम्मद खान के पास 21 नवंबर को हस्ताक्षर के लिए भेजा गया था। इसने अब सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम की दोषपूर्ण धारा 66 ए की जगह ली है, जिसके अंतर्गत ऑनलाइन की गई अपमानजनक टिप्पणी एक दंडनीय अपराध मानी जाती है।
इस बदलाव से किसी भी व्यक्ति को धमकाने, अपमान करने या बदनाम करने के लिए संचार के किसी भी माध्यम से सामग्री का उत्पादन, प्रकाशन या प्रचार-प्रसार करने वालों को या तो तीन साल तक की कैद या 10,000 रुपये तक का जुर्माना देना होगा। यह ध्यान रखना होगा कि भले ही मुख्यमंत्री इसे सोशल मीडिया के व्यापक दुरुपयोग के खिलाफ एक अधिनियम के रूप में दावा करते हैं, लेकिन यह संचार के किसी भी माध्यम पर लागू होता है।
नई धारा 118ए के मुताबिक जो किसी भी प्रकार के संचार, किसी भी मामले या विषय को धमकी देने, अपमानित करने या किसी व्यक्ति या वर्ग के लोगों को अपमानित करने, अपमानित करने के लिए या उसे गलत तरीके से जानने के माध्यम से बनाता है, अभिव्यक्त करता है, प्रकाशित करता है या प्रसारित करता है, यह गलत है और यह मान, प्रतिष्ठा या चोट का कारण बनता है, ऐसे व्यक्तियों को तीन साल तक की सजा दी जा सकती है या उन्हें 10,000 रुपये का जुर्माना भरना पड़ सकता है या दोनों हो सकता है।
केरल के राज्यपाल आरिफ मोहम्मद खान ने महिलाओं और बच्चों के खिलाफ साइबर हमलों को रोकने के लिए राज्य की सीपीएम नीत सरकार द्वारा लाए गए केरल पुलिस अधिनियम संशोधन अध्यादेश को मंजूरी दे दी है। वहीं, विपक्ष ने इस अध्यादेश से अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के बाधित होने का आरोप लगाया है। राजभवन के सूत्र ने इस बात की पुष्टि की कि राज्यपाल ने केरल में व्यापक विवाद को जन्म देने वाले इस अध्यादेश पर हस्ताक्षर कर दिए हैं। सूत्रों ने बताया कि राज्यपाल कोविड-19 से मुक्त होकर हाल ही में राजभवन लौटे हैं। विपक्षी दलों ने आरोप लगाया था कि यह संशोधन पुलिस को और शक्ति देगा और प्रेस की आजादी में कटौती करेगा। हालांकि, मुख्यमंत्री पिनराई विजयन ने यह कहते हुए इस आरोप का खंडन किया है कि यह निर्णय व्यक्तियों की छवि बिगाड़ने के लिए सोशल मीडिया के दुरुपयोग जैसे कारकों के आधार पर लिया गया है। पिछले महीने राज्य मंत्रिमंडल ने धारा 118 ए को शामिल करने की सिफारिश करके पुलिस अधिनियम को और सशक्त बनाने का फैसला किया था।
इस संशोधन के अनुसार, जो कोई भी सोशल मीडिया के माध्यम से किसी पर धौंस दिखाने, अपमानित करने या बदनाम करने के इरादे से कोई सामग्री डालता है अथवा प्रकाशित अथवा प्रसारित करता है, उसे पांच साल तक कैद या 10000 रुपये तक के जुर्माने या फिर दोनों सजा हो सकती है।
राज्यपाल आरिफ मोहम्मद खान ने महिलाओं और बच्चों के विरूद्ध साइबर हमलों को रोकने के लिए राज्य की माकपा नीत सरकार द्वारा लाये गये केरल पुलिस अधिनियम संशोधन अध्यादेश को जब मंजूरी दे दी, वैसे विपक्ष ने इस अध्यादेश से अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के बाधित होने का आरोप लगाया है। विपक्षी दलों ने आरोप लगाया था कि यह संशोधन पुलिस को और शक्ति देगा एवं प्रेस की आजादी में कटौती करेगा। हालांकि, मुख्यमंत्री पिनराई विजयन ने यह कहते हुए इस आरोप का खंडन किया कि यह निर्णय व्यक्तियों की छवि बिगाड़ने के लिए सोशल मीडिया के दुरुपयोग जैसे कारकों के आधार पर लिया गया है। पिछले महीने राज्य मंत्रिमंडल ने धारा 118 ए को शामिल करने की सिफारिश करके पुलिस अधिनियम को और सशक्त बनाने का फैसला किया था। इस संशोधन के अनुसार, जो कोई भी सोशल मीडिया के माध्यम से किसी पर धौंस दिखाने, अपमानित करने या बदनाम करने के इरादे से कोई सामग्री डालता है अथवा प्रकाशित या प्रसारित करता है उसे पांच साल तक कैद या 10000 रुपये तक के जुर्माने या फिर दोनों सजा हो सकती है।
बता दें कि पिछले महीने राज्य मंत्रिमंडल ने धारा 118-ए को शामिल करने की सिफारिश करके पुलिस अधिनियम को और सशक्त बनाने का फैसला किया था। इस संशोधन के अनुसार, जो कोई भी सोशल मीडिया के माध्यम से किसी पर धौंस दिखाने, अपमानित करने या बदनाम करने के इरादे से कोई सामग्री डालता है अथवा प्रकाशित/प्रसारित करता है उसे पांच साल तक कैद या 10000 रुपये तक के जुर्माने या फिर दोनों सजा हो सकती है। (हिफी)