बिहार में दलित वोटों की बिसात

हिंदुस्तान आवाम मोर्चा के अध्यक्ष जीतन राम मांझी ने महागठबंधन से नाता तोड़ लिया और जेडीयू के साथ हाथ मिला सकते हैं

Update: 2020-08-22 12:34 GMT

पटना। बिहार विधानसभा चुनाव में दलित मतों को लेकर सियासी बिसात बिछाई जाने लगी है। जेडीयू और आरजेडी दोनों ही खुद को दलित हितैषी बताने में कोई कोर कसर नहीं छोड़ रही हैं। हिंदुस्तान आवाम मोर्चा के अध्यक्ष जीतन राम मांझी ने महागठबंधन से नाता तोड़ लिया और जेडीयू के साथ हाथ मिला सकते हैं। ऐसे में मांझी फैक्टर को डिफ्यूज करने के लिए आरजेडी ने अपने दलित नेताओं की पूरी फौज ही मैदान में उतार दी है। इस तरह से दोनों पार्टियों के बीच दलित मतों को लेकर शह-मात का खेल शुरू है। श्याम रजक जद(यू) छोड़कर राजद में शामिल हो गये हैं।

बिहार की राजनीति में मांझी दलित चेहरा माने जाते हैं। ऐसे में महागठबंधन से मांझी के अलग होने को विपक्ष के लिए एक झटका माना जा रहा है। इसीलिए आरजेडी ने श्याम रजक, उदय नारायण चौधरी, रमई राम समेत अन्य तीन दलित दिग्गज नेताओं के जरिए प्रेस कॉन्फ्रेंस कराकर जेडीयू को यह संकेत दे दिया है कि मांझी के जाने से उनकी राजनीति पर कोई असर नहीं पड़ा है। श्याम रजक, उदय नारायण चौधरी और रमई राम बिहार में दलित राजनीति का चेहरा माने जाते हैं। एक दौर में इन्हीं तीन चेहरों के सहारे नीतीश कुमार सूबे में दलित मतों को साधने का काम किया करते थे। ये तीनों नेता अब जेडीयू का साथ छोड़ चुके हैं और आरजेडी की तरफ से सियासी पिच पर बैटिंग कर रहे हैं। इनमें रमई राम रविदास समुदाय से आते हैं। इस समुदाय की बिहार में खासी आबादी है। वहीं, उदय नारायण चौधरी पासी (ताड़ी बेचने वाले) समुदाय से हैं जबकि श्याम रजक धोबी समुदाय से आते हैं। इस तरह से आरजेडी ने बिहार में दलित समुदाय के इन तीन जातियों के नेताओं को उतारकर जेडीयू को दलित विरोधी बताने की कोशिश की है।

उदय नारायण चौधरी कहते हैं डबल इंजन की सरकार में दलित-पिछड़ों पर सबसे ज्यादा अत्याचार हुआ है। इस सरकार में दलित और आदिवासी छात्रों की छात्रवृत्ति बंद कर दी गई। इस समाज के सरकारी नौकरियों में बैकलॉग के पद को नहीं भरा गया। बिहार में ट्रैप केस में दलित और आदिवासी को पकड़ा गया है और 167 दलित आदिवासियों को अधिकारियों और पदाधिकारियो को ट्रैप में पकड़ा गया। बिहार में शराबबंदी कानून के तहत 70 हजार दलितों पर केस दर्ज हुआ। रमई राम ने कहा, नीतीश सरकार ने दलितों का दलित और महादलित के रूप में बंटवारा किया जो किसी सरकार ने नहीं किया। नीतीश सरकार में दलितों को जमीन नहीं दी। मैं नीतीश कुमार को चैलेंज करता हूं। दलितों को दी गई जमीन पर उनका कब्जा नहीं है, अगर सरकार कब्जा दिखा देती है तो मुझे फांसी दे दिया जाए।

उधर, हाल ही में जेडीयू छोड़ आरजेडी में शामिल हुए पूर्व मंत्री श्याम रजक कहते हैं नीतीश सरकार में दलितों पर अत्याचार का आंकड़ा बढ़ गया है। 2005 में यह 7 फीसदी था अब वह बढ़कर 17 फीसदी हो गया है। बिहार दलितों के अत्याचार मामले में तीसरे स्थान पर है। मैं जो आंकड़ा दे रहा हूं वह भारत सरकार का आंकड़ा है। ऐसे ही आरक्षण में प्रोन्नति का मामला 11 साल से लंबित है। नई शिक्षा नीति के तहत दलित और वंचित शिक्षक नहीं बन पाएंगे क्योंकि शिक्षण संस्थान निजी हाथों में जा रहे हैं। बिहार पब्लिक सर्विस कमीशन के पुलिस चयन आयोग में कोई भी सदस्य अनुसूचित जाति जनजाति का नहीं है। आरजेडी विधायक शिवचंद्र राम ने कहा, बिहार सरकार ने गरीब और एससी-एसटी वर्ग के लोगों पर कुठाराघात किया है। बिहार में अनुसूचित जाति-जनजाति के लोगों को मंदिर नहीं जाने दिया जा रहा है। केंद्र और राज्य दोनों सरकार मिलकर आरक्षण को खत्म करने की कोशिश कर रही है। आरक्षण से जुड़े हुए जो भी बिंदु हैं उसे संविधान के 9वीं सूची में शामिल किया। महादलित आयोग का गठन किया गया, लेकिन उसके सदस्य और अध्यक्ष कौन हैं?

आरजेडी के आरोपों के जवाब में जेडीयू ने भी दलित नेताओं को आगे किया। नीतीश सरकार के मंत्री अशोक चौधरी ने कहा- उदय नारायण चौधरी को नीतीश कुमार ने 2 बार विधानसभा में अध्यक्ष बनाया, जीतन राम मांझी को अपनी कुर्सी दे दी और श्याम रजक को लंबे समय तक मंत्री बनाये रखा। आज ऐसे लोग सीएम नीतीश कुमार पर आरोप लगा रहे हैं, जिनकी अपनी राजनीति की इच्छा पूरी नहीं हुई तो दल बदल किया। उन्होंने नीतीश सरकार में दलित समुदाय के लिए कराए गए कार्यों का आंकड़ा पेश किया। हालांकि, अशोक चौधरी भी कांग्रेस छोड़कर जेडीयू में आए हैं।

बिहार विधानसभा चुनाव से पहले राजनीतिक समीकरण सेट किए जाने लगे हैं। ऐसे में हिंदुस्तान आवाम मोर्चा के अध्यक्ष जीतन राम मांझी ने महागठबंधन से नाता तोड़ लिया है और अब वो जेडीयू के साथ मिलकर चुनावी मैदान में उतरने का फैसला कर सकते हैं। बिहार की राजनीति में मांझी दलित चेहरा माने जाते हैं और नीतीश के साथ आते हैं तो राजनीतिक तौर पर एनडीए को इसका सियासी फायदा मिल सकेगा?

जीतन राम मांझी एक दौर में नीतीश कुमार के ही पार्टी जेडीयू का दलित चेहरा हुआ करते थे। 2014 के लोकसभा चुनाव में नीतीश कुमार ने मोदी की उम्मीदवारी के विरोध में एनडीए से अलग होकर लोकसभा चुनाव अकेले लड़ा था और जेडीयू सिर्फ दो सीटों पर सिमट गई थी। नीतीश ने हार की नैतिक जिम्मेदारी लेते हुए 18 मई को इस्तीफा दिया और फिर 20 मई 2014 को जीतन राम मांझी को नया सीएम बना दिया। मांझी ने अपने आपको महादलित के नेता के तौर पर स्थापित करने के लिए कई फैसले लिये। जीतन राम मांझी मुसहर समुदाय से आते हैं, जो बिहार में महादलित माना जाता है। बिहार में मुसहर समुदाय के करीब साढ़े तीन फीसदी वोट हैं। नीतीश कुमार इस समुदाय के वोटरों को साधना चाहते थे। वहीं, मांझी खुद की ताकत बढ़ाने में जुट गए तो नीतीश को यह बात नगवार गुजरने लगी। कहा जाता है कि मांझी को बीजेपी ने अपने फेर में ले लिया था। नीतीश को जल्दी ही अहसास हो गया कि उनसे फिर एक गलती हो गई है और आठ महीने बाद भी जीतन राम मांझी से मुख्यमंत्री का भार वापस ले ले लिया गया और उन्हें जेडीयू से भी निकाल दिया गया। इसके बाद खुद नीतीश ने कुर्सी संभाली। मुख्यमंत्री की कुर्सी जाने के बाद जीतन मांझी ने खुद को बड़े नेता के तौर पर स्थापित करने की कोशिश की है। इस प्रकार सत्तापक्ष और विपक्ष दोनों तरफ से दलित कार्ड खेला जा रहा है।  खोजी न्यूज़, नितीश कुमार, बिहार सरकार, बिहार mukhymantri

(अशोक त्रिपाठी-हिन्दुस्तान समाचार फीचर सेवा)

Tags:    

Similar News