झारखण्ड में थम नहीं रही मानव तस्करी

उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश डॉ रवि रंजन की अध्यक्षता वालीखंडपीठ ने कहा कि राज्य सरकार को पूरे मामले की जांच करनी चाहिए

Update: 2020-07-06 13:57 GMT

लखनऊ। मानव तस्करी झारखण्ड के माथे पर ऐसा बदनुमा दाग है जिससे छुटकारा पाना इस राज्य के लिए बहुत दुष्कर लगता है। कोरोना वायरस के चलते लागू किए गये लॉकडाउन के दौरान झारखंड में 116 बच्चों के लापता होने के मामले सामने आए। झारखंड उच्च न्यायालय ने स्वतः संज्ञान लेते हुए राज्य सरकार से इस प्रकरण में जवाब मांगा है।

ज्ञात हो झारखंड उच्च न्यायालय ने इस मामले में जनहित याचिका की सुनवाई करते हुए कहा कि यह गंभीर मामला है। उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश डॉ रवि रंजन की अध्यक्षता वालीखंडपीठ ने कहा कि राज्य सरकार को पूरे मामले की जांच करनी चाहिए। उसने कहा कि इस बात का पता लगाया जाना चाहिए कि किन परिस्थितियों में लॉक डाउन में बच्चे लापता हुए? न्यायालय ने सवाल किया कि इन मामलों को लेकर किन- किन थानों में प्राथमिकी दर्ज की गयी और उस पर क्या कार्रवाई की गयी?

महाधिवक्ता राजीव रंजन ने न्यायालय को बताया कि सरकार इस मामले में संवेदनशील है। बच्चों का गायब होना, जांच का विषय है। सरकार से दिशा- निर्देश लेकर वह मामले में जवाब दायर करेंगे। न्यायालय ने मामले में राज्य सरकार को दो सप्ताह का समय दिया। सुनवाई के दौरान यह भी बताया गया कि लॉकडाउन के दौरान झारखंड के गायब हुए 116 बच्चों में से 89 लड़कियां हैं।

बताया जा रहा है कि कोरोना वायरस के संक्रमण को फैलने से रोकने के लिए देश भर में जारी लॉकडाउन के बीच झारखंड पहुंचे 60 हजार से अधिक प्रवासियों में 25 हजार से अधिक बच्चे हैं। इसके बाद पलायन, बाल तस्करी और बाल विवाह के लिए अभिशप्त झारखंड में यह समस्या और विकराल होने की सम्भावनाएं व्यक्त की जा रही हैं। राज्य में लौटे इन बच्चों में बहुत से ऐसे हैं, जो अपने परिवार के लिए रोजी-रोटी कमाने के लिए परदेस गये थे, तो कुछ मानव तस्करी का शिकार होकर अन्य राज्यों में पहुंच गये थे।

स्मरण रहे ऐसे बच्चों की खोज खबर रखने वाली प्रदेश स्तरीय राज्य संसाधन केंद्र (एसआरसी) ने इन बच्चों के भविष्य को लेकर सरकार को चेताया था। स्टेट रिसोर्स सेंटर द्वारा झारखण्ड के मुख्यमंत्री हेमन्त सोरेन को मानव तस्करी के संबंध में लिखे गए पत्र में मांग की गयी कि जिलों के लिए एडवाइजरी जारी की जाये, जिससे पुनः बच्चों को पलायन न करना पड़े। एसआरसी ने इससे पूर्व बच्चों की वापसी और उनके पुनर्वास को लेकर सरकार को अलर्ट कर चुके राष्ट्रीय बाल अधिकार संरक्षण आयोग (एनसीपीसीआर) का सन्दर्भ भी दिया है। एसआरसी ने मुख्यमंत्री को लिखे पत्र में कहा है कि वर्तमान परिस्थिति और भावी आर्थिक संकट को देखते हुए इस आशंका से इन्कार नहीं किया जा सकता कि पलायन, बाल तस्करी और बाल विवाह के लिए अभिशप्त झारखंड में यह समस्या और भी गहरा जाये। इससे बचने के लिए आवश्यक है कि झारखण्ड सरकार ऐसे बच्चों विशेषत रू 16 से 18 साल की लड़कियों के लिए पुनर्वास तथा कौशल विकास प्रशिक्षण पर ध्यान केंद्रित करे। एक सर्वेक्षण के आंकड़ों के दृष्टिगत एस आर सी ने दावा किया है कि राज्य से प्रति वर्ष बड़े पैमाने पर बच्चियों की तस्करी होती है। मानव तस्कर इन्हें अपना शिकार बनाते हैं और उसके पश्चात उनका जीवन नर्क बन जाता है ऐसी परिस्थितियों से उन्हें बचाने के लिए उनका पुनर्वास कर झारखंड को इस समस्या से बचाया जा सकता है। बताया जाता है कि एक्शन अगेंस्ट ट्रैफिकिंग एंड सेक्सुअल एक्सप्लॉयटेशन (एट्सेक) जैसी गैर सरकारी संस्थाओं की ओर से कराए गए सर्वेक्षण के अनुसार झारखण्ड की तकरीबन 42 हजार किशोरियों और युवतियों का झारखंड से असुरक्षित पलायन हुआ है। एटसेक के तत्वावधान में लगभग चार वर्ष पहले राज्य के आठ जिलों (दुमका, गोड्डा, हजारीबाग, गुमला, लोहरदगा,रांची, पाकुड़ और सिमडेगा) के दो-दो प्रखंडों के 20-20 गांवों का मानव तस्करी को लेकर कराए गए सर्वेक्षण की रिपोर्ट आंखें खोल देने वाली है।

सर्वेक्षण बताता है कि 785 किशोरियां और युवतियों के असुरक्षित पलायन करने की पुष्टि हुई है। इनमें 160 पलायन के बाद कभी नहीं लौटीं। शेष किशोरियों और युवतियों में से 10 फीसद परिवार के संपर्क में कभी नहीं रहीं। 39 फीसद यदा-कदा बातें करती थीं। 24 फीसद महीने में एक बार, जबकि 27 फीसद लगातार संपर्क में थीं। इस प्रकरण का संज्ञान लेते हुए सरकार झारखंड से हुए असुरक्षित पलायन का अध्ययन करवा रही है। नेशनल क्राइम रिकॉर्ड ब्यूरो (एनसीआरबी) द्वारा जारी नवीनतम रिपोर्ट इस समस्या की भयावहता की ओर इंगित करती है। यह रिपोर्ट वर्ष 2018 में जुटाये गये आंकड़ों के आधार पर तैयार की गयी है।

एनसीआरबी की ताजा रिपोर्ट के अनुसार वर्ष 2018 में देश भर में मानव तस्करी को लेकर कुल 2367 केस दर्ज किये गये थे। इनमें सबसे अधिक 373 मामले झारखंड के थे। दर्ज मामलों में 18 वर्ष से कम उम्र के 17 नाबालिग लड़के और 314 नाबालिग लड़कियां मानव तस्करी का शिकार हुई थीं। जबकि, 18 वर्ष से अधिक के 24 युवक और 78 युवतियां मानव तस्करी का शिकार हुईं। इस प्रकार 433 लोग मानव तस्करी के शिकार हुए। पुलिस ने वर्ष 2018 में तस्करी के शिकार 158 लोगों को मुक्त कराया। इनमें 18 वर्ष से कम उम्र के 13 नाबालिग लड़के और 90 लड़कियां थीं। जबकि 18 वर्ष से अधिक उम्र के 11 लड़के और 44 लड़कियां थीं। 58 लोग फोर्स लेबर के लिए मानव तस्करी का शिकार हुए थे। 18 लोग देह व्यापार व शारीरिक शोषण के लिए, 34 लोग घरेलू कामकाज के लिए और 32 लोग बलपूर्वक शादी के लिए मानव तस्करी के शिकार हुए थे। झारखंड में सात लोग भीख मंगवाने के लिए भी मानव तस्करी के शिकार हुए थे।

एनसीआरबी के आंकड़ों के अनुसार पूरे देश में देह व्यापार के लिए नाबालिग को खरीदने से संबंधित कुल आठ मामले दर्ज किये गये। इसमें सबसे अधिक मामले झारखंड में दर्ज किये गये थे। वर्ष 2017 में नाबालिग को देह व्यापार के लिए खरीदने से संबंधित तीन मामले दर्ज किये गये थे। एनसीआरबी की यह रिपोर्ट झारखंड की वास्तविकता की ओर इंगित कर रही है। कोरोना जैसी महामारी के समय भी मानव तस्करी विशेषतः बच्चों की तस्करी झारखण्ड सरकार के लिए चुनौती है। बच्चियों की तस्करी सामाजिक अपराध है। ये बच्चियां पोर्न या देह व्यापार में ढकेली जा सकती है। झारखण्ड उच्च न्यायालय ने प्रकरण का संज्ञान लेकर मामले की गम्भीरता को समझा है, उसे साधुवाद। आशा की जानी चाहिए कि झारखण्ड सरकार पुलिस की चूलें कसेगी ताकि ऐसी घटनाएँ रोकी जा सके। साथ ही मानव तस्करी की शिकार महिलाओं के पुनर्वास व उन्हें सामाजिक सुरक्षा प्रदान करने के लिए कार्य योजना लागू करेगी।

(मानवेन्द्र नाथ पंकज-हिन्दुस्तान समाचार फीचर सेवा)

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