भारत छोड़ो आंदोलन में वीरेंद्र नारायण ने किया था जेल के भीतर नाटक

उनकी जन्मशतवार्षिकी के अवसर पर आयोजित संगोष्ठी में वक्ताओं ने यह बात कही थी।;

Update: 2024-09-01 03:27 GMT

नई दिल्ली। लोकनायक जयप्रकाश नारायण के सहयोगी एवं आधुनिक हिंदी रंगमंच के निर्माता वीरेंद्र नारायण ने 1942 में भारत छोड़ो आंदोलन में जेल के भीतर नाटक किया था।

आज़ादी के बाद जब वह रंगकर्मी के रूप में मशहूर हुए तो बिग बी अमिताभ बच्चन की माँ तेजी बच्चन ने उनके द्वारा निर्देशित नाटक “मैकबेथ” में काम किया और देवानंद की फिल्म “तीन देवियां” एवं “प्रोफेसर” फिल्म की अभिनेत्री कल्पना ने भी उनके नाटक में काम किया था। साहित्य अकादमी ने शुक्रवार को यहां वीरेंद्र नारायण की जन्मशती पर संगोष्ठी की थी। उनकी जन्मशतवार्षिकी के अवसर पर आयोजित संगोष्ठी में वक्ताओं ने यह बात कही थी।

संगोष्ठी के उद्घाटन सत्र की अध्यक्षता प्रतिष्ठित रंग आलोचक एवं राष्ट्रीय नाट्य विद्यालय (एनएसडी) के पूर्व निदेशक देवेंद्र राज अंकुर ने की। मुख्य अतिथि हिंदी के प्रतिष्ठित आलोचक ज्योतिष जोशी एवं विशिष्ट अतिथि प्रख्यात रंगकर्मी एवं एनएसडी रंगमंडल के प्रमुख राजेश सिंह थे। इसके अलावा वीरेंद्र नारायण के पुत्र विजय नारायण ने भी सभा को सम्बोधित किया। संगोष्ठी में स्वागत भाषण साहित्य अकादमी के सचिव के. श्रीनिवास राव ने दिया। प्रसिद्ध रंग समीक्षक रविन्द्र त्रिपाठी और प्रकाश झा ने भी विचार व्यक्त किये। बिहार के भगलपुर में 16 नवम्बर 1923 को जन्मे वीरेंद्र नारायण हबीब तनवीर और इब्राहम अल्का जी के हमउम्र थे और सांग एंड ड्रामा डिवीजन के निदेशक थे। उनके नाटकों को देखने के लिए प्रथम राष्ट्रपति राजेन्द्र प्रसाद तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू मोरारजी देसाई और लाल कृष्ण आडवाणी जैसे राजनीतिज्ञ भी आये थे।

वक्ताओं ने बताया कि लंदन के म्यूज़िक एवं ड्रामाटिक आर्ट संस्थान से 1956 में नाटक का डिप्लोमा करने वाले पहले भारतीय वीरेंद्र नारायण ने विद्यापति सुब्रमण्यम भारती और तेलगु के महान कवि कृष्ण देव राय जैसे राष्ट्रीय नायकों पर लाइट एंड साउंड प्रोग्राम कर इस विधा की शुरुवात की एवम कुम्भ में रामचरित मानस पर भी लाइट एंड साउंड कार्यक्रम किये। नारायण के पुत्र विजय नारायण ने बताया कि किस तरह उनके पिता जय प्रकाश नारायण (जेपी) के सम्पर्क में आकर 1942 के आंदोलन में कूदे और बंगला के सुप्रसिद्ध लेखक सतीनाथ भादुड़ी तथा हिंदी के प्रख्यात लेखक फणीश्वर नाथ रेणु के साथ भगलपुर जेल में बंदी बनाये गए और जेल में ही नाटक किया। जेल से निकलने के बाद जेपी के अखबार जनता में काम किया। फिर 1950 नई धारा पत्रिका में काम किया और 1955 में वे लंदन चले गए नाटक का प्रशिक्षण लेने। उनके गहरे मित्रों में मशहूर संगीत कार अनिल विश्वास और प्रख्यात सितारवादक विलायत खान भी थे।वीरेंद्र नारायण खुद अच्छा सितार बजाते थे।

अपने अध्यक्षीय वक्तव्य में देवेंद्र राज अंकुर ने उनकी पुस्तक ‘रंगकर्म’ की चर्चा करते हुए कहा कि यह पुस्तक अपने आप में बहुत महत्त्वपूर्ण है क्योंकि उस समय तक रंगकर्म के लिए बैकस्टेज की इतनी समग्र जानकारी देने के लिए कोई पुस्तक उपलब्ध नहीं थी। उन्होंने उनके नाट्य चिंतन पक्ष के कुछ पहलुओं की तरफ़ इशारा करते हुए कहा कि उन्होंने बहुत पहले यह कह दिया था कि नाटक के लिए केवल संवाद ही ज़रूरी नहीं है बल्कि उसमें काव्यात्मकता भी होना आवश्यक है। उन्होंने जयशंकर गुप्त के नाटक ‘स्कंदगुप्त’ पर उनके विशद अध्ययन का उल्लेख करते हुए कहा कि किसी ने भी एक नाटक पर इतना महत्त्वपूर्ण कार्य आज तक नहीं किया है।

अतिथियों का स्वागत करते हुए साहित्य अकादेमी के सचिव के.श्रीनिवासराव ने कहा कि साहित्य अकादेमी का हमेशा यह प्रयास रहता है कि वह उन सभी महत्त्वपूर्ण साहित्यकारों की प्रतिभा और ज्ञान का सम्मान करे जो देश के दूरदराज़ इलाकों में भी साहित्य के विकास के लिए कार्यरत रहे हैं। वीरेन्द्र नारायण भी एक ऐसे ही प्रतिभाशाली साहित्यकार थे जिन्होंने 20 से ज़्यादा नाटक लिखे और नाट्य आलोचना तथा पत्रकारिता के क्षेत्र में भी महत्त्वपूर्ण कार्य किया।

दिल्ली हिंदी अकादमी के पूर्व सचिव ज्योतिष जोशी ने कहा कि वीरेन्द्र नारायण की रंगमंचीय समझ वैश्विक थी। उनके द्वारा लिखे गए नाटक आज भी समकालीन हैं। उन्होंने वीरेन्द्र जी के उस कथन को भी रेखांकित किया जिसमें वे उस पारंपरिक सोच पर कटाक्ष करते हुए कहते हैं कि रंगमंच को नाटक के लिए ख़ुद तैयार होना चाहिए न कि नाटक रंगमंच के अनुसार लिखा जाना चाहिए।

विशिष्ट अतिथि राजेश सिंह ने उनके नाटकों के व्यावहारिक पक्ष पर बात करते हुए कहा कि वह पहले नाट्यकार थे जिन्होंने नाटकों को ग्रामीण सरोकारों से जोड़ने की बात कही। उन्होंने कहा कि उन्होंने 1960 में सूरदास जैसे नेत्रहीन पात्र पर नाटक लिखा यह बड़ी बात थी।उन्होंने एक सितार और किताबों की सोहबत में अपना जीवन गुजार दिया।अब उनपर विचार विमर्श शुरू हुआ है और एनएसडी के छात्र उनक़ा नाटक करेंगे । प्रकाश झा ने मधुबनी में अपने रंगकर्मीय जीवन के अनुभवों को साझा करते हुए बताया कि उनके द्वारा लिखित पुस्तक रंगकर्म से उन्होंने बहुत कुछ सीखा और आज तक सीख रहे हैं। उन्होंने बताया कि एनएसडी रंगकर्म पुस्तक को फिर से प्रकाशित करेगी क्योंकि वह अनुपलब्ध है जबकि छात्रों के लिए जरूरी पुस्तक है।

सत्र के अध्यक्ष रवींद्र त्रिपाठी ने कहा कि कोई भी रंगकर्म भारतीय नहीं होता बल्कि अपने स्वरूप में वैश्विक होता है। रंगकर्म के इसी विस्तृत दायरे के कारण वीरेन्द्र जी सब कुछ बेच कर लंदन रंगकर्म की पढ़ाई करने गए थे। उन्होंने अपने नाटकों और अनुवाद के समय भी यह ध्यान रखा कि कैसे वैश्विकता को स्थानीय पहचान दी जा सकती है। कार्यक्रम में वीरेन्द्र नारायण के परिवार के कई सदस्य, साथ ही रंगकर्मी एवं नाट्यलेखक भी उपस्थित थे। कार्यक्रम का संचालन साहित्य अकादेमी के उपसचिव देवेंद्र कुमार देवेश ने किया।Full View

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