जिले की दो सीटों पर कांग्रेस,झामुमो, BJP के बीच जबर्दस्त भिड़ंत के आसार

भाजपा के शीर्ष नेताओं ने उन्हें मना कर डैमेज कंट्रोल करने का भरसक प्रयास किया है।

Update: 2024-11-19 12:40 GMT

जामताड़ा। झारखंड में जामताड़ा जिले की दोनों जामताड़ा और नाला सीट पर इंडिया गठबंधन और राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (राजग) के बीच जबर्दस्त भिड़ंत के आसार हैं।

झारखंड के जामताड़ा जिले में दो विधानसभा क्षेत्र हैं। दोनों सामान्य सीट हैं। फिलहाल जिले के दोनों सीटों पर इंडिया गठबंधन का कब्जा है। जामताड़ा सीट पर अपने विवादित बयानों को लेकर हमेशा सुर्खियों में रहने वाले राज्य के कैबिनेट मंत्री इरफान अंसारी कांग्रेस के टिकट पर तीसरी बार मैदान में हैं और इंडिया गठबंधन के साझा उम्मीदवार के रूप में तीसरी बार अपने भाग्य की आजमाइश कर रहे हैं। इसी साल जून में सम्पन्न लोकसभा चुनाव में इंडिया गठबंधन के साझा उम्मीदवार झामुमो के नलिन सोरेन को भाजपा से 30 हजार से अधिक वोट दिलाकर कांग्रेस के इरफान अंसारी अपनी जीत सुनिश्चित मान रहे हैं। वहीं भारतीय जनता पार्टी ( भाजपा) ने आदिवासी एवं अल्पसंख्यक बहुल इस क्षेत्र में झामुमो प्रमुख शिबू सोरेन की बड़ी पुत्र वधू सीता मुर्मू सोरेन को मैदान में उतार कर कांग्रेस के इस मजबूत गढ़ को ध्वस्त करने को लेकर ऐड़ी चोटी एक कर दिया है। इसके लिए भाजपा ने इस क्षेत्र में अपने सभी स्टार प्रचारकों को मैदान में उतार दिया जिससे कांग्रेस के इरफान अंसारी को अग्नि परीक्षा के दौर से गुजरना पड़ रहा है।

इस बीच हाल में इरफान अंसारी द्वारा भाजपा प्रत्याशी सीता मुर्मू सोरेन को लेकर विवादित टिप्पणी किये जाने का मुद्दा बना कर भाजपा उसका लाभ उठाने की कोशिश में है। इसमें भाजपा कितना सफल होती है यह देखना दिलचस्प होगा। हालांकि टिकट नहीं मिलने से पिछला चुनाव लड़ चुके वीरेंद्र मंडल ने शुरुआती दौर में बागी तेवर दिखाया, लेकिन भाजपा के शीर्ष नेताओं ने उन्हें मना कर डैमेज कंट्रोल करने का भरसक प्रयास किया है। राजनीतिक विश्लेषकों की मानें तो 1970 के पूर्व सामान्य सीट रहने के बावजूद इस सीट पर संताल समाज से आने वाले शत्रुघ्न बेसरा झारखंड पार्टी और निर्दलीय प्रत्याशी के रूप में जीत दर्ज कर चुके हैं। शत्रुघ्न बेसरा 1967 में संयुक्त बिहार में संविद सरकार में राजस्व मंत्री की जिम्मेदारी संभाल चुके थे।

वहीं, वर्ष 2005 में विष्णु भैया भाजपा और 2009 में झामुमो के टिकट पर जीत हासिल कर चुके हैं जबकि 1980 में सीपीआई के टिकट पर अरुण बोस ने इस सीट पर जीत दर्ज किया था। लेकिन 1984 में पटना हाईकोर्ट ने उनके चुनाव को रद्द कर दिया। हाईकोर्ट के फैसले के आलोक में कांग्रेस प्रत्याशी इरफान अंसारी के पिता फुरकान अंसारी विधायक निर्वाचित घोषित किये गये। फुरकान अंसारी इस सीट पर 1985,1990,1995 और 2000 में लगातार चार बार यानि लगभग 21 वर्षों तक विधानसभा में इस क्षेत्र का प्रतिनिधित्व करते रहे। इस बीच वे 2000 से पहले झारखंड अलग राज्य गठन के पूर्व तक पूर्व मुख्यमंत्री राबड़ी देवी की सरकार में कुछ महीने तक कांग्रेस कोटे से पथ निर्माण विभाग के मंत्री की भी जिम्मेदारी संभाल चुके हैं।

जिले में नाला विधानसभा क्षेत्र राज्य में हाई प्रोफाइल सीट बन गया है। इस सीट पर विधानसभा के अध्यक्ष और झामुमो के प्रत्याशी रवीन्द्र नाथ महतो की प्रतिष्ठा दांव पर लगी है। जहां उनकी अग्नि परीक्षा हो रही है। इस बार भी उन्हें भाजपा से कड़ी चुनौती मिल रही है।

2024 के जून में सम्पन्न लोकसभा चुनाव में इस क्षेत्र में भाजपा ने झामुमो से लगभग 21 हजार अधिक वोट हासिल किया था। इस आधार पर भाजपा के टिकट पर पहली बार मैदान में उतरे माधव चंद्र महतो समर्थकों का हौसला बुलंद दिख रहा है। इस बार भी इस क्षेत्र में झामुमो बनाम भाजपा के बीच सीधी टक्कर के आसार दिख रहे हैं। इस बार भाजपा ने पूर्व मंत्री और कई बार इस क्षेत्र से चुनाव लड़ चुके सत्यानंद झा बाटुल को दरकिनार कर वर्ष 2019 में आजसू के टिकट पर चुनाव लड़ चुके माधव चंद्र महतो पर दांव लगाया है। पिछले चुनाव में आजसू से अपने भाग्य की आजमाइश करने वाले माधव चंद्र महतो को लगभग 16 हजार मतों से ही संतोष करना पड़ा था, जबकि झामुमो के टिकट निर्वाचित रवीन्द्र नाथ महतो को लगभग 61 हजार और भाजपा के सत्यानंद झा बाटुल को लगभग 57 हजार वोट मिले थे। सत्यानंद झा ने लगभग 4 हजार वोट से अपनी सीट गंवा दिया था ।

इस बार भाजपा प्रत्याशियों के नाम की घोषणा के बाद टिकट नहीं मिलने से नाराज सत्यानंद झा बाटुल ने अपने समर्थकों के साथ पहले पार्टी से इस्तीफा दे दिया। लेकिन बाद में भाजपा के वरिष्ठ नेता असम के मुख्यमंत्री और झारखंड के सह प्रभारी हेमंता विश्व शरमा के मान मनौव्वल के बाद सत्यानंद झा ने अपना इस्तीफा वापस ले और पार्टी को समर्थन देने के लिए राजी हो गए। हालांकि जानकारी के अनुसार चुनाव प्रचार के दौरान सत्यानंद झा बाटुल या उनके समर्थकों को प्रचार अभियान में सक्रिय नहीं होने को लेकर तरह-तरह की चर्चा शुरू है। इससे भाजपा की सुनिश्चित जीत को लेकर अगर-मगर का सिलसिला जारी है। हालांकि इस बार आजसू राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन राजग में शामिल है। राजनीतिक विश्लेषकों की मानें तो भाजपा यदि पिछले चुनाव में आजसू को मिले वोटों को अपने पक्ष में करने और लोकसभा चुनाव में मिली बढ़त को बरकरार रखने में सफल होती है तो फिर झामुमो प्रत्याशी रवीन्द्र नाथ महतो को भाजपा के कुशल रणनीति और चुनौतियां का सामना करना पड़ सकता है।

हालांकि हाल के दिनों में झामुमो के स्टार प्रचारक मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन और पार्टी की सुपर स्टार प्रचारक मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन की पत्नी कल्पना सोरेन ने पार्टी प्रत्याशी के पक्ष में कई चुनाव सभाओं को संबोधित कर झामुमो समर्थक वोटरों को गोलबंद करने का प्रयास कर चुके है। इस वजह से इस क्षेत्र में झामुमो और भाजपा के बीच कांटे की टक्कर होने के आसार दिख रहे हैं। हाल के दिनो में स्थानीय मुद्दों को उछाल कर सुर्खियां बटोर रहे जयराम महतो की पार्टी झारखंड क्रांतिकारी लोकतांत्रिक मोर्चा ने भी इस क्षेत्र से अपने प्रत्याशी को मैदान में उतारा है।

झामुमो प्रत्याशी रवीन्द्र नाथ महतो की जाति के ही जेकेएलएम उम्मीदवार अपनी जाति का कितना वोट अपने पक्ष में समेट कर तीसरा कोण बनाने में कितना सफल होते हैं यह तो चुनाव परिणाम के बाद ही पता चलेगा। ऐसे आजादी के बाद 1962 से नाला विधानसभा क्षेत्र सीपीआई का मजबूत किला समझा जाता रहा है। झारखंड के प्रथम प्रोटेम स्पीकर रह चुके विशेश्वर खां वर्ष 1990 को छोड़कर 1962 से 2000 तक लगातार इस क्षेत्र प्रतिनिधित्व करते रहे। लेकिन एक बार भी उन्हें मंत्री बनने का सौभाग्य प्राप्त नहीं हुआ।Full View

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