भागवत के भावार्थ को नहीं समझे ओवैसी
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के प्रमुख मोहन भागवत ने दिल्ली में एक किताब का विमोचन करते हुए जब कहा कि हिन्दू मूल रूप से देश भक्त होगा
नई दिल्ली। अभी हाल में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के प्रमुख मोहन भागवत ने कहा कि हिन्दू धर्म के मूल में राष्ट्रीय प्रेम है। हिन्दू मूल रूप से हिंसक नहीं होता। इसी को एआईएमआईएम के नेता असदुद्दीन ओवैसी ने गलत समझा और राष्ट्रपिता महात्मा गांधी की हत्या करने वाले नाथूराम गोडसे का उदाहरण देकर भागवत की बात को झूठा साबित करने का प्रयास किया है। हिन्दू धर्म मूल रूप से उदार है जिसमें कहा गया है कि जीवमात्र की सेवा ही परमात्मा की सेवा है। हिन्दू दृष्टि समतावादी और समन्वयवादी है। पर्यावरण की रक्षा को उच्च प्राथमिकता दी गयी है। इसीलिए नदियों को माता कहकर पूजा की जाती है। वृक्षों की भी उपासना होती है। इस धर्म में परपीड़ा को सबसे बड़ा पाप और परोपकार को सबसे बड़ा पुण्य समझा जाता है।
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के प्रमुख मोहन भागवत ने कहा है कि एकता में अनेकता, अनेकता में एकता यही भारत की मूल सोच है। उन्होंने कहा कि पूजा पद्धति, कर्मकांड कोई हों मगर सभी को मिलकर रहना है। मोहन भागवत ने कहा कि अंतर का मतलब अलगाववाद नहीं है।
मोहन भागवत ने दिल्ली में मेकिंग ऑफ अ हिंदू पेट्रिएट- बैकग्राउंड ऑफ गांधीजीज हिंद स्वराज नाम की एक किताब का विमोचन करते हुए यह बात कही। उन्होंने कहा कि अलग होने का मतलब यह नहीं है कि हम एक समाज, एक धरती के बेटे बनकर नहीं रह सकते। किताब के लोकार्पण पर संघ प्रमुख ने कहा कि किताब के नाम और मेरे द्वारा उसका विमोचन करने से अटकलें लग सकती हैं कि यह गांधी जी को अपने हिसाब से परिभाषित करने की कोशिश है। गांधी जी के बारे में यह एक प्रामाणिक शोध ग्रंथ है लेकिन इसके विमोचन कार्यक्रम में संघ के स्वयंसेवक हों, इसको लेकर लोग चर्चा कर सकते हैं। हालांकि ऐसा नहीं होना चाहिए। किताब के बारे में मोहन भागवत ने कहा कि यह एक प्रामाणिक शोधग्रंथ है। परिश्रमपूर्वक खोजबीन करके लिखी गई है। गांधी जी ने एक बार कहा था कि मेरी देशभक्ति मेरे धर्म से निकलती है। एक बात साफ है कि हिंदू है तो उसके मूल में पेट्रोएट (देशभक्त) होना ही पड़ेगा। यहां पर कोई भी देशद्रोही नहीं है।
उन्होंने कहा कि स्वराज्य तब तक आप नहीं समझ सकते जबतक आप स्वधर्म को नहीं समझते हैं। मोहन भागवत ने कहा कि गांधी जी कहते थे कि मेरा धर्म पंथ धर्म नहीं बल्कि मेरा धर्म तो सर्व धर्म का धर्म है। गांधी जी कहा करते थे मेरी देशभक्ति मेरे धर्म से निकलती है। मैं अपने धर्म को समझकर अच्छा देशभक्त बनूंगा और लोगों को भी ऐसा करने को कहूंगा। गांधी जी ने कहा था कि स्वराज को समझने के लिए स्वधर्म को समझना होगा। इसी को लोगों ने गलत समझा है।
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के प्रमुख मोहन भागवत ने दिल्ली में एक किताब का विमोचन करते हुए जब कहा कि हिन्दू मूल रूप से देश भक्त होगा जिसके बाद विपक्ष के नेताओं ने भागवत को आड़े हाथ लेना शुरू कर दिया है। किताब के विमोचन के दौरान भागवत ने कहा था कि अगर कोई हिन्दू है तो वह देशभक्त ही होगा, क्योंकि यही हमारे धर्म के मूल में है और यही हिन्दुओं की प्रकृति भी है। भागवत ने आगे कहा था, चाहे जो भी परिस्थिति हो लेकिन कोई हिन्दू कभी भी देशद्रोही नहीं हो सकता है। भागवत द्वारा धार्मिक आधार पर देशभक्ति की बात पर ओवैसी ने पलटवार किया है। ओवैसी ने लिखा, क्या भागवत जवाब देंगे कि वे बापू के हत्यारे गोडसे के बारे में क्या बोलेंगे? नेली कत्लेआम (असम) के लिए जिम्मेदार आदमी के बारे में क्या कहेंगे? साल 1984 के सिख विरोधी दंगों और 2002 के गुजरात दंगों के बारे में क्या बोलेंगे?
असदुद्दीन ओवैसी ने इसे राजनीतिक रूप देते हुए कहा कि ये मानना तर्कसंगत है कि अधिकांश भारतीय देशभक्त हैं भले ही उनका धर्म कुछ भी हो। लेकिन ये केवल आरएसएस की जाहिल विचारधारा में ही है कि केवल एक धर्म के अनुयायियों को देशभक्ति के प्रमाण पत्र जारी किए जाते हैं जबकि अन्य को अपना जीवन यह साबित करने में बिताना पड़ता है कि उन्हें भी यहां रहने का अधिकार है और वे अपने आप को भारतीय कह सकते हैं।
इसलिए असदुद्दीन ओवैसी को पहले हिन्दू धर्म के बारे में समझना होगा। सनातन धर्म पृथ्वी के सबसे प्राचीन धर्मों में से एक है। हालाँकि इसके इतिहास के बारे में अनेक विद्वानों के अनेक मत हैं। आधुनिक इतिहासकार हड़प्पा, मेहरगढ़ आदि पुरातात्विक अन्वेषणों के आधार पर इस धर्म का इतिहास कुछ हजार वर्ष पुराना मानते हैं, जहाँ भारत (और आधुनिक पाकिस्तानी क्षेत्र) की सिन्धु घाटी सभ्यता में हिन्दू धर्म के कई चिह्न मिलते हैं। इनमें एक अज्ञात मातृदेवी की मूर्तियाँ, भगवान शिव पशुपति जैसे देवता की मुद्राएँ, शिवलिंग, पीपल की पूजा, इत्यादि प्रमुख हैं। इतिहासकारों के एक दृष्टिकोण के अनुसार इस सभ्यता के अन्त के दौरान मध्य एशिया से एक अन्य जाति का आगमन हुआ, जो स्वयं को आर्य कहते थे और संस्कृत नाम की एक हिन्द यूरोपीय भाषा बोलते थे। एक अन्य दृष्टिकोण के अनुसार सिन्धु घाटी सभ्यता के लोग स्वयं ही आर्य थे और उनका मूलस्थान भारत ही था।
आर्यों की सभ्यता को वैदिक सभ्यता कहते हैं। पहले दृष्टिकोण के अनुसार लगभग 1700 ईसा पूर्व में आर्य अफगानिस्तान, कश्मीर, पंजाब और हरियाणा में बस गए। तभी से वो लोग (उनके विद्वान ऋषि) अपने देवताओं को प्रसन्न करने के लिए वैदिक संस्कृत में मन्त्र रचने लगे। पहले चार वेद रचे गए, जिनमें ऋग्वेद प्रथम था। उसके बाद उपनिषद जैसे ग्रन्थ आए। हिन्दू मान्यता के अनुसार वेद, उपनिषद आदि ग्रन्थ अनादि, नित्य हैं, ईश्वर की कृपा से अलग-अलग मन्त्रदृष्टा ऋषियों को अलग-अलग ग्रन्थों का ज्ञान प्राप्त हुआ जिन्होंने फिर उन्हें लिपिबद्ध किया।
बौद्ध और धर्मों के अलग हो जाने के बाद वैदिक धर्म में काफी परिवर्तन आया। नये देवता और नये दर्शन उभरे। इस तरह आधुनिक हिन्दू धर्म का जन्म हुआ। दूसरे दृष्टिकोण के अनुसार हिन्दू धर्म का मूल कदाचित सिन्धु सरस्वती परम्परा (जिसका स्रोत मेहरगढ़ की 6500 ईपू संस्कृति में मिलता है) से भी पहले की भारतीय परम्परा में है। हालांकि भारत विरोधी विद्वान कई प्रयासों के बावजूद यहां तक कि भ्रामक प्रमाणो के आधार पर भी अपने विचार को सिद्ध नहीं कर पाए। (हिफी)