ममता-मोदी की जंग में फंसे अफसर
पश्चिम बंगाल और दिल्ली में अब कानून के पन्ने पलटे जा रहे हैं। ब्यूरोक्रेसी को लेकर केन्द्र और राज्य सरकार के पास क्या अधिकार हैं
कोलकाता। पश्चिम बंगाल और दिल्ली में अब कानून के पन्ने पलटे जा रहे हैं। ब्यूरोक्रेसी को लेकर केन्द्र और राज्य सरकार के पास क्या अधिकार हैं, इस पर माथापच्ची की जा रही है। पश्चिम बंगाल के मुख्य सचिव को नरेन्द्र मोदी की सरकार ने केन्द्र में सेवा का फरमान जारी कर दिया है। मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने भी अभूतपूर्व कारनामा कर दिखाया। अब तक मुख्यमंत्री पीएम का इंतजार करते थे लेकिन ममता बनर्जी ने प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी को आधा घंटा तक इंतजार कराया। समुद्री तूफान यास से राज्य को हुई क्षति के बारे में दस्तावेज पीएम को सौंपने थे। बहाना भी अच्छा मिल गया।
ममता बनर्जी कहती हैं कि हिंगलगंज और सागर में समीक्षा के बाद मैं कलाईकुंज में माननीय प्रधानमंत्री से मिली और उन्हें पश्चिम बंगाल में चक्रवात के बाद की स्थिति से अवगत कराया। नुकसान के अवलोकन के लिए आपदा रिपोर्ट सौंपी गयी है। इसके बाद वे दीघा में राहत और बहाली कार्य की समीक्षा के लिए निकल गयीं। पीएम के साथ बमुश्किल 15 मिनट मुलाकात की जबकि पीएम उनका 30 मिनट तक इंतजार करते रहे। गृहमंत्री अमित शाह कहते हैं कि ममता दीदी का आचरण दुर्भाग्यपूर्ण है। चक्रवात यास के कारण बहुत से लोग प्रभावित हुए। दीदी ने जन कल्याण के ऊपर अहम को रखा। इस अहम की उत्पत्ति को भी देखना पड़ेगा। पश्चिम बंगाल में विधानसभा चुनाव के नतीजे घोषित होने के बाद अहं ही तो दिख रहा है। इस अहं की लड़ाई में नौकरशाही पिस रही है।
अखिल भारतीय सेवा (अनुशासन और अपील) नियम, 1969 के नियम 7 में कहा गया है, यदि अधिकारी राज्य में सेवा कर रहे हैं तो कार्यवाही शुरू करने और जुर्माना लगाने का अधिकार राज्य सरकार का होगा। नियम कहता है कि अखिल भारतीय सेवाओं के किसी भी अधिकारी के खिलाफ किसी भी कार्रवाई के लिए राज्य और केंद्र दोनों को सहमत होने की आवश्यकता है। मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने पीएम नरेंद्र मोदी को पांच पन्नों की लंबी चिट्ठी लिखकर दो-टूक कहा है कि वो राज्य के मुख्य सचिव अलपन बंद्योपाध्याय को केंद्रीय प्रतिनियुक्ति पर जाने के लिए रिलीव नहीं करेंगी। 1987 बैच के आईएएस अधिकारी बंद्योपाध्याय सोमवार (31 मई) को सेवानिवृत्त होने वाले थे लेकिन राज्य सरकार ने तीन महीने का सेवा विस्तार दिया है। उधर, केंद्र सरकार ने उन्हें सोमवार (31 मई) को ही रिपोर्ट करने और भारत सरकार में शामिल होने के लिए कहा था। इससे पहले ममता ने उन्हें अपना मुख्य सलाहकार बना दिया।
पश्चिम बंगाल सरकार ने 24 मई को केंद्र की मंजूरी का हवाला देते हुए 25 मई को एक आदेश जारी किया कि सार्वजनिक सेवा के हित में, बंद्योपाध्याय की सेवाओं का विस्तार तीन महीने के लिए किया जाता है लेकिन, 28 मई को केंद्रीय कार्मिक और प्रशिक्षण विभाग (डीओपीटी) ने बंगाल के मुख्य सचिव को लिखा कि कैबिनेट की नियुक्ति समिति ने बंद्योपाध्याय की सेवाओं को तत्काल प्रभाव से भारत सरकार के साथ स्थानांतरित किया है और राज्य सरकार से अनुरोध किया कि अधिकारी को तत्काल प्रभाव से कार्यमुक्त किया जाय। डीओपीटी ने मुख्य सचिव को 31 मई को सुबह 10 बजे तक रिपोर्ट करने का निर्देश भी दिया। केंद्र की यह कार्रवाई तब हुई, जब पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी और मुख्य सचिव अलपन बंद्योपाध्याय पीएम नरेंद्र मोदी की समीक्षा बैठक में आधे घंटे की देरी से पहुंचे थे। यास तूफान से हुए नुकसान की समीक्षा करने के लिए पीएम मोदी ने कोलकाता में बैठक की थी। सामान्यतः केंद्र सरकार प्रतिवर्ष केंद्रीय प्रतिनियुक्ति पर जाने के इच्छुक अखिल भारतीय सेवाओं आईएएस, आईपीएस और भारतीय वन सेवा के अधिकारियों की प्रस्ताव सूची मंगाता है, जिसके बाद वह उस सूची से अधिकारियों का चयन करता है।
आईएएस संवर्ग नियमों के नियम 6(1) में कहा गया है कि एक अधिकारी, संबंधित राज्य सरकारों और केंद्र सरकार की सहमति से, केंद्र सरकार या किसी अन्य राज्य सरकार के अधीन सेवा के लिए प्रतिनियुक्त किया जा सकता है। रूल यह भी कहता है, असहमति के किसी भी मामले में मामला केंद्र सरकार द्वारा तय किया जाएगा और संबंधित राज्य सरकार या राज्य सरकारें केंद्र सरकार के निर्णय को प्रभावी करेंगी। नियम कहता है कि राज्य सरकार के अधीन तैनात सिविल सेवा अधिकारियों के खिलाफ केंद्र सरकार कोई कार्रवाई नहीं कर सकती है। अखिल भारतीय सेवा (अनुशासन और अपील) नियम, 1969 के नियम 7 में कहा गया है, यदि अधिकारी राज्य में सेवा कर रहे हैं तो कार्यवाही शुरू करने और जुर्माना लगाने का अधिकार राज्य सरकार का होगा। नियम कहता है कि अखिल भारतीय सेवाओं के किसी भी अधिकारी के खिलाफ किसी भी कार्रवाई के लिए राज्य और केंद्र दोनों को सहमत होने की आवश्यकता है।
मौजूदा स्थिति में अलपन बंद्योपाध्याय के मामले में अब तीन विकल्प दिखते हैं- पहला यह कि बंद्योपाध्याय राज्य सरकार से मिले सेवा विस्तार को अस्वीकार कर सेवानिवृत्त हो जाएं और केंद्रीय प्रतिनियुक्ति को नजरअंदाज कर दें। दूसरा यह कि बंदोपाध्याय मुख्य सचिव के रूप में सेवा विस्तार लेकर पद पर बने रह सकते हैं लेकिन उन्हें केंद्र सरकार के अनुशासनात्मक कार्रवाई का सामना करना पड़ सकता है और ऐसा हुआ तो उन्हें रिटायरमेंट बेनिफिट मिलने में कठिनाई हो सकती है। तीसरा यह कि केंद्र सरकार को 31 मई तक रिपोर्ट करें और केंद्रीय प्रतिनियुक्ति पर अपना सेवा विस्तार का समय जारी रखें।
बंगाल के टॉप नौकरशाह अलपन बंद्योपाध्याय के ट्रांस्फर को लेकर केंद्र और बंगाल सरकार आमने सामने हो गए हैं। पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने इस मामले को लेकर पीएम मोदी को पांच पेज की चिट्ठी लिखी है, जहां उन्होंने साफ तौर पर चीफ सेक्रेटरी को रिलीव करने से इनकार कर दिया है। अपने पत्र में मुख्यमंत्री बनर्जी ने आदेश को एक तरफा करार देते हुए इस पर हैरानी जताई है। ममता बनर्जी ने लिखा कि बंगाल सरकार इस नाजुक दौर में अपने मुख्य सचिव को रिलीव नहीं करेगी। हमने अपनी आपसी समझ, लागू कानून और वैध परामर्शों के आधार पर ही उनकी सेवा विस्तार का फैसला लिया था। मुख्यमंत्री की चिट्ठी ने साफ कर दिया कि वह पश्चिम बंगाल में ही रहेंगे और कोविड संकट के दौरान अपनी सेवाएं जारी रखेंगे। अपने पत्र में उन्होंने केंद्र सरकार के आदेश को पूरी तरह से असंवैधानिक, कानूनी रुप से अस्थिर करार दिया। कलाईकुंडा का जिक्र करते हुए उन्होंने पूछा कि क्या इस आदेश के पीछे कलाईकुंडा मीटिंग का कुछ लेना-देना है। बकौल ममता, मैं पूरी ईमानदारी से उम्मीद करती हूं ऐसा कोई कारण नहीं रहा होगा लेकिन यदि ऐसा है, तो यह बेहद दुखद और दुर्भाग्यपूर्ण है।
दुर्भाग्यपूर्ण तो यह अहं की लड़ाई भी है जिसमें एक ईमानदार नौकरशाह पिस रहा है। (हिफी)