बसपा सुप्रीमो मायावती ने उठाया दमदार मुद्दा

गाजियाबाद में खुलने जा रहे डिटेन्शन सेंटर के मसले पर योगी सरकार ने फैसला वापस ले लिया। मायावती इसे अपनी जीत बता रही हैं

Update: 2020-09-18 12:16 GMT

लखनऊ। उत्तर प्रदेश की राजनीति में अर्से तक उदासीन भाव दिखा रही बसपा प्रमुख मायावती ने उचित समय पर एक महत्वपूर्ण मुद्दा उठाया है। उत्तर प्रदेश में 8 विधानसभा क्षेत्रों में उपचुनाव होने हैं। अपनी पूर्व की रणनीति से अलग हटकर बसपा प्रमुख ने सभी 8 सीटों पर उपचुनाव लड़ने का फैसला किया है। इन उपचुनावों में मायावती के पास खोने के लिए कुछ भी नहीं है लेकिन पाने के लिए बहुत कुछ है। बसपा प्रमुख को एक मुद्दा भी अच्छा मिल गया है। यह मुद्दा है गाजियाबाद में दलित और आदिवासी छात्रों के लिए बनाए गये हास्टल को डिटेन्शन सेंटर में तब्दील करने का। यूपी की योगी आदित्यनाथ सरकार ने अभी हाल ही यह फैसला किया है। बसपा प्रमुख का इस मुद्दे से अपने परम्परागत दलित वोट और एक खास रणनीति के तहत जोड़े जा रहे मुस्लिम वोट जुटाने की उम्मीद है। डिटेन्शन सेंटर में अवैध विदेशियों को रखा जाना है और ये अवैध विदेशी पाकिस्तान, बांग्लादेश और अफगानिस्तान से आने वाले मुस्लिम हैं। इसलिए डिटेन्शन सेंटर के विरोध से मुसलमानों का समर्थन बसपा को मिल सकता है। दलित और आदिवासी छात्रों के लिए बने हास्टल को डिटेन्शन सेंटर न बनाए जाने की आवाज उठाकर मायावती अपने को दलितों और आदिवासियों की हितैषी भी साबित कर देंगी। इसका लाभ आगामी उपचुनावों में  बसपा को मिल सकता है। यह हास्टल डा. अम्बेडकर के नाम पर बनाया गया है।

उत्तर प्रदेश की आठ विधानसभा सीटों पर होने वाले उपचुनाव को लेकर राजनीतिक समीकरण बनाए जाने लगे हैं। बहुजन समाज पार्टी भी सूबे में होने वाले उपचुनाव में किस्मत आजमाएगी है। बसपा ने यूपी की सभी आठों सीटों पर चुनाव लड़ने का ऐलान किया है। हालांकि, बसपा पहले उपचुनाव नहीं लड़ती रही है, लेकिन पिछले साल हुए चुनाव से मैदान में उतरने लगी है। सूबे के आठ विधानसभा क्षेत्रों में उपचुनाव होने हैं। इसमें घाटमपुर, मल्हनी, स्वार, बुलंशहर, टूंडला, देवरिया, बांगरमऊ व नौगावां सादात विधानसभा सीट शामिल है। यूपी की जिन आठ सीटों पर उपचुनाव होने हैं, उसमें से छह बीजेपी और दो समाजवादी पार्टी के कब्जे वाली हैं। भले ही इन सीटें के चुनावी नतीजों से विधानसभा में बहुमत पर कोई असर नहीं पड़े। लेकिन आगामी विधानसभा चुनाव के लिए बड़ा राजनीतिक संदेश के तौर पर देखा जाएगा। यही वजह है कि बसपा प्रमुख मायावती उत्तर प्रदेश की सभी आठ सीटों पर उपचुनाव लड़ने की तैयारी में है। बसपा के पास खोने के लिए कुछ नहीं है, क्योंकि एक भी सीट उसके पास नहीं थी। ऐसे में उपचुनाव लड़कर अपनी सियासी ताकत को आजमा सकती है। वहीं, सपा और कांग्रेस भी उपचुनाव के लिए पूरी तरह से कमर कस चुके हैं। कांग्रेस ने सभी आठों सीटों पर उम्मीदवारों के चयन के लिए एक कमेटी भी गठित की है। बीजेपी प्रदेश अध्यक्ष स्वतंत्र देव सिंह और महामंत्री संगठन सुनील बंसल ने उपचुनाव वाले क्षेत्र के कार्यकर्ताओं के साथ प्रशिक्षण कार्यशाला अयोजित की थी। इस दौरान उन्होंने मतदाता सूचियों को दुरुस्त कराने के साथ संभावित उम्मीदवारों के नामों पर भाजपाइयों का मन टटोलने का काम किया है।


बसपा प्रमुख ब्राह्मण वोट बैंक को भी जोड़ना चाहती हैं। मायावती ने कहा कि यूपी में बसपा की सरकार बनने पर ब्राह्मण समाज की आस्था के प्रतीक परशुराम और सभी जातियों, धर्मों में जन्मे महान संतों के नाम पर अस्पताल और ठहरने की सुविधाओं का निर्माण किया जाएगा। मायावती ने कहा कि यूपी में चार बार बनी बसपा सरकार ने सभी वर्गों के महान संतों के नाम पर अनेक जनहित योजनाएं शुरू की थीं, और जिलों के नाम रखे थे जिसे बाद में आई सपा सरकार ने जातिवादी मानसिकता और द्वेष की भावना के चलते बदल दिया था। बसपा की सरकार बनते ही इन्हें फिर से बहाल किया जाएगा। मायावती ने कहा कि यदि समाजवादी पार्टी की सरकार को परशुराम की प्रतिमा लगानी ही थी तो अपने शासन काल के दौरान ही लगा देते। बसपा किसी भी मामले में सपा की तरह कहती नहीं है, बल्कि करके भी दिखाती है। बसपा की सरकार बनने पर सपा की तुलना में परशुराम जी की भव्य मूर्ति लगाई जाएगी।

बसपा प्रमुख ने कहा कि पांच अगस्त को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने राम मंदिर का शिलान्यास किया। अच्छा होता उस दिन पीएम दलित समाज से जुड़े राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद को साथ लेकर अयोध्या आते। वहीं कुछ दलित संत भी चिल्लाते रहे कि उन्हें नहीं बुलाया गया। दलित संतों को बुलाया, लेकिन राष्ट्रपति को बुला लेते तो अच्छा संदेश जाता। इस प्रकार मायावती अपने वोट बैंक को मजबूत कर रही हैं। हालांकि जौनपुर की मल्हनी सीट पर ठाकुरों और यादवों का बोलबाला रहा है। सपा के पारसनाथ यादव यहां से जीतते रहे, क्योंकि यादव वोट उन्हें एकमुश्त मिलते रहे। हालांकि, धनंजय सिंह भी यहां से जीत का परचम फहराने में कामयाब रहे हैं। 2012 में उनकी पत्नी डॉ। जागृति सिंह और फिर 2017 के चुनाव में धनंजय सिंह को लगभग 50 हजार वोट मिले थे, लेकिन जीत नहीं मिल सकी थी। एक बार फिर से चुनावी मैदान में उतरने की तैयारी कर रहे हैं और निषाद पार्टी से किस्मत आजमाना चाहते हैं। हालांकि, धनंजय सिंह दो बार सपा को हराकर विधायक रह चुके हैं। रामपुर की स्वार विधानसभा पर भी बीजेपी ने कभी जीत का स्वाद नहीं चखा है। हालांकि, नंबर दो की हैसियत जरूर बनाकर रखने में कामयाब रही है। यहां से आजम खान के बाद अब्दुल्ला आजम खान 2017 में जीतकर विधायक बने थे। लेकिन उनकी सदस्यता खत्म हो गई है और फिलहाल जेल में बंद है। ऐसे में बीजेपी इस सीट पर खाता खोलने के लिए बेताब है। ऐसे हालात में  बसपा प्रमुख मायावती भी अपनी ताकत आजमाने का प्रयास कर रही हैं। 

                                                          योगी सरकार ने फैसला वापस लिया

गाजियाबाद में  खुलने जा रहे डिटेन्शन सेंटर के मसले पर योगी सरकार ने अपना फैसला वापस ले लिया है। बसपा प्रमुख मायावती इसे अपनी जीत बता रही हैं। केन्द्र सरकार के आदेश के बाद योगी सरकार ने गाजियाबाद के नंदग्राम मंे दो अलग-अलग बने दलित छात्रावासों मंे से एक को डिटेन्शन सेंटर बनाने का फैसला किया था। इस फैसले का बसपा प्रमुख मायावती समेत अन्य विपक्षी दल भी विरोध कर रहे थे। मायावती ने इसे दलितों व आदिवासियों के प्रति भाजपा सरकार का अन्याय बताया था। 

(अशोक त्रिपाठी-हिन्दुस्तान समाचार फीचर सेवा)

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