केजरीवाल के दल को राष्ट्रीय पार्टी का दर्जा दे गया साल

आम आदमी पार्टी आप के लिए दिसम्बर का महीना भाग्यशाली है । दिसंबर मे ही पार्टी की पहली सरकार बनी थी

Update: 2022-12-29 14:31 GMT

नई दिल्ली। आम आदमी पार्टी आप के लिए दिसम्बर का महीना भाग्यशाली है । दिसंबर मे ही पार्टी की पहली सरकार बनी थी। दिल्ली के राजनीतिक इतिहास में 28 दिसंबर की तारीख राजनीतिक उलटफेर के रूप में भी याद की जाती है। इसी दिन साल 2013 में आम आदमी पार्टी ने पहली बार दिल्ली में सरकार बनाकर ऐसा उलटफेर किया था जो आज तक नहीं सुलझ पाया है । गठन के 10 साल बाद दिसम्बर 2022 में आम आदमी पार्टी अब राष्ट्रीय पार्टी बन चुकी है। दिल्ली के अलावा पंजाब में आम आदमी पार्टी की सरकार है। गोवा के साथ ही गुजरात में पार्टी ने अपनी मौजूदगी दर्ज कराई है। पंजाब में भगवंत मान पार्टी की तरफ से मुख्यमंत्री हैं। आम आदमी पार्टी के देशभर में कुल 161 विधायक हैं। इनमें से दिल्ली में 62, पंजाब में 92, गोवा में 2 और गुजरात में 5 विधायक हैं। इसके अलावा हाल ही में हुए दिल्ली नगर निगम चुनाव में पार्टी ने बीजेपी को हरा दिया है। आम आदमी पार्टी ने 250 में से 134 वार्ड में जीत हासिल की है। हालांकि, लोकसभा में पार्टी का एक भी सांसद नहीं है। इससे पहले पार्टी के एकमात्र सांसद भगवंत मान ने मुख्यमंत्री बनने से पहले लोकसभा से इस्तीफा दे दिया था। राज्यसभा में पार्टी के 10 सांसद हैं। इस प्रगति के साथ केजरीवाल सरकार का वहां के लेफ्टिनेंट गवर्नर एलजी के साथ झगड़ा बराबर चलता रहा है । बीते साल में विदाई के समय एलजी ने सरकार को करोडों के विज्ञापन की वसूली का नोटिस जारी कर दिया है ।

अरविंद केजरीवाल ने अक्टूबर 2012 में आम आदमी पार्टी बनाने का ऐलान किया था। 26 नवंबर 2012 को आम आदमी पार्टी लॉन्च की गई। अन्ना आंदोलन से अलग होकर राजनीतिक दल बनाने वाले अरविंद केजरीवाल 28 दिसंबर 2013 को पहली बार दिल्ली के मुख्यमंत्री बने थे। इस सरकार को कांग्रेस ने बाहर से समर्थन दिया था। आज भले अरविंद केजरीवाल की आम आदमी पार्टी देश के अन्य राज्यों में भी अपनी जड़े जमा रही है, लेकिन उस समय उनका दिल्ली का मुख्यमंत्री बन जाना किसी चमत्कार से कम नहीं था। अन्ना हजारे का भ्रष्टाचार विरोधी आंदोलन छोड़कर अरविंद केजरीवाल ने राजनीति में प्रवेश किया था। 2013 में चुनावी मैदान में उतरी नव गठित आम आदमी पार्टी ने दिल्ली विधानसभा में अपनी किस्मत आजमाई।इस चुनाव परिणाम में कांग्रेस और बीजेपी जैसे दमदार खिलाड़ियों के साथ ही राजनीतिक पंडितों को भी हैरान कर दिया था। आम आदमी पार्टी ने तमाम अनुमानों को खारिज करते हुए 28 सीटें जीती थीं। केजरीवाल ने तीन बार दिल्ली की मुख्यमंत्री रही शीला दीक्षित को रिकॉर्ड वोटों से हराया। इस चुनाव में कांग्रेस को महज 8 सीटों पर ही जीत मिली थी। ऐसे में कांग्रेस ने भाजपा को सत्ता से दूर रखने के लिए आम आदमी पार्टी को बिना शर्त समर्थन देने का फैसला किया था। इससे आम आदमी पार्टी की सरकार बनाने का रास्ता साफ हो गया था।

कांग्रेस के साथ आम आदमी पार्टी का सफर ज्यादा दिन तक नहीं चला। 49 दिन बाद ही अरविंद केजरीवाल ने कांग्रेस के साथ नाता तोड़ लिया। इसके बाद 2014 के लोकसभा चुनाव में आम आदमी पार्टी ने देशभर में अपने 400 उम्मीदवार उतार दिए। हालांकि, पंजाब को छोड़कर आप को अधिक सफलता नहीं मिली। पंजाब से आम आदमी पार्टी के 4 उम्मीदवार लोकसभा पहुंचने में सफल हो गए। इससे एक बात तो साफ हो गई कि पार्टी को पंजाब में भविष्य की राह दिखने लगी। पार्टी ने यहां अपनी जड़े मजबूत करने पर फोकस किया। 2017 में आम आदमी पार्टी ने पंजाब में विधानसभा चुनाव लड़ा। इस चुनाव में 20 सीटों पर जीत मिली। इसके साथ ही पार्टी यहां मुख्य विपक्षी दल भी बन गई। इससे पहले साल 2015 में पार्टी ने दिल्ली में विधानसभा चुनाव लड़ा। इस चुनाव में पार्टी ने 70 में से 67 सीटों पर चुनाव जीतकर इतिहास रच दिया। पार्टी ने कांग्रेस के साथ ही बीजेपी को भी तगड़ा झटका दिया। सत्ता में आते ही केजरीवाल ने दिल्ली के लोगों को लिए बिजली और पानी को फ्री कर दिया। हालांकि, इस दौरान पार्टी में फूट भी देखने को मिली। प्रशांत भूषण और योगेंद्र यादव ने केजरीवाल पर श्सुप्रीम लीडरश् होने का आरोप भी लगाया। प्रशांत भूषण, योगेंद्र यादव और अजीत झा जैसे नेताओ को पार्टी से किनारे कर दिया गया। इसके बाद कुमार विश्वास और अरविंद केजरीवाल के रिश्ते में भी मतभेद उभरने लगे थे। 2018 में मतभेद इतने बढ़ गए कि कुमार विश्वास ने पार्टी छोड़ दी।

फ्री बिजली और पानी के बाद दिल्ली के सरकारी स्कूलों की स्थिति में सुधार और मोहल्ला क्लिनिक जैसी योजनाओं के दम पर दिल्ली में केजरीवाल ने साल 2020 में फिर दमदार वापसी की। इस चुनाव में पार्टी ने 70 में से 62 सीटें जीती। पिछली बार के मुकाबले सीटें कुछ कम जरूर हुई लेकिन केजरीवाल का जादू फीका नहीं पड़ा। केजरीवाल को दिल्ली में महिलाओं के लिए फ्री बस सफर के फैसले का भी फायदा मिला। हालांकि, इससे पहले 2019 में हुए लोकसभा चुनाव में आम आदमी पार्टी को बड़ा झटका भी लगा था। 70 में से 67 सीटों पर कब्जा होने के बावजूद पार्टी को लोकसभा की सभी 7 सीटों पर बीजेपी के हाथों हार का सामना करना पड़ा। लोकसभा चुनाव में दिल्ली के बाद पंजाब में भी पार्टी को झटका लगा। पंजाब में 2014 में 4 सीटे जीतने वाली पार्टी इस बार महज 1 सीट पर ही जीत दर्ज कर सकी। दिल्ली और पंजाब के बाद आम आदमी पार्टी ने गुजरात और उत्तराखंड में विधानसभा चुनाव में हाथ आजमाया। हालांकि, इन दोनों चुनाव में पार्टी को खास सफलता नहीं मिली। इसके बाद इस साल पार्टी ने गुजरात चुनाव में दमदार तरीके से चुनाव लड़ा। चुनाव परिणाम से पहले पार्टी को गुजरात में बीजेपी के खिलाफ कांग्रेस के मुकाबले मजबूत प्रतिद्वंद्वी बताया जा रहा था। इस चुनाव में भले ही पार्टी को सिर्फ 5 सीटों पर जीत मिली लेकिन वोट प्रतिशत के लिहाज से पार्टी के लिए यह काफी महत्वपूर्ण रहा। पार्टी ने गुजरात चुनाव में 13 प्रतिशत के करीब वोट हासिल किए। इसके बाद आम आदमी पार्टी को राष्ट्रीय पार्टी का दर्जा मिल गया। मजे की बात है कि दिसम्बर में ही दिल्ली के उपराज्यपाल विनय कुमार सक्सेना ने मुख्य सचिव को सरकारी विज्ञापन के रूप में प्रकाशित राजनीतिक विज्ञापनों के लिए आम आदमी पार्टी से 97 करोड़ रुपये वसूलने के आदेश दिए हैं। एलजी ने आदेश दिया है कि आम आदमी पार्टी से 97 करोड़ रुपए ब्याज समेत वसूले जाएं। एलजी कार्यालय की ओर से जारी आदेश में मुख्य सचिव को सुप्रीम कोर्ट की गाइडलाइन को लागू करने को कहा गया है। इसप्रकार एलजी सक्सेना भी एलजी नजीबजंग और बैजल की परम्परा का निर्वहन बखूबी कर रहे हैं। (हिफी)

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