UP में कांग्रेस का फ्लाप शो जारी,एक सीट पर टिकी

मौजूदा चुनाव में पार्टी मात्र एक सीट पर जीत हासिल कर सकी है जबकि एक में जीत के लिये गुरूवार देर शाम तक संघर्ष कर रही थी

Update: 2022-03-10 14:32 GMT

लखनऊ। अस्सी के दशक में उत्तर प्रदेश में लगातार दो बार पूर्ण बहुमत की सरकार बनाने का कारनामा दिखाने के बाद लगातार पतन की ओर अग्रसर कांग्रेस का दयनीय प्रदर्शन जारी है और मौजूदा चुनाव में पार्टी मात्र एक सीट पर जीत हासिल कर सकी है जबकि एक में जीत के लिये गुरूवार देर शाम तक संघर्ष कर रही थी।

विधानसभा चुनाव के आज घोषित चुनाव परिणाम में रामपुर खास सीट से किस्मत आजमाने वाली पार्टी विधानमंडल दल की नेता आराधना मिश्रा मोना ने अपने निकटतम प्रतिद्वंदी नागेश प्रताप सिंह को हरा दिया वहीं फरेंदा सीट पर पार्टी प्रत्याशी वीरेन्द्र चौधरी देर शाम तक भाजपा के बजरंग बहादुर सिंह से मात्र 920 वोटों से आगे चल रहे थे। इस चुनाव में कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष अजय कुमार लल्लू और पूर्व केन्द्रीय मंत्री सलमान खुर्शीद की पत्नी लुइस खुर्शीद समेत कई बड़े चेहरों को शर्मनाक हार झेलने पर मजबूर होना पड़ा है। लगभग सभी हारी हुयी सीटों पर कांग्रेस प्रत्याशी दूसरी पायदान पर भी नहीं पहुंच सके है जबकि कई की जमानत जब्त हाेना तय है। कुशीनगर के तमकुहीराज क्षेत्र में लल्लू तीसरी पायदान पर खिसक गये हैं।

कांग्रेस महासचिव प्रियंका गांधी वाड्रा की अगुवाई में लड़ा गया चुनाव कांग्रेस की दिशा और दशा बदलने में नाकाम साबित हुआ है। 'लड़की हूं लड़ सकती हूं' के नारे के साथ कांग्रेस ने यह चुनाव सभी 403 सीटों पर अकेले दम पर लड़ा था जिसमें 40 फीसदी सीटे महिला प्रत्याशियों को देने का ऐलान प्रियंका ने किया था। इसका मकसद प्रदेश की महिला आबादी को कांग्रेस के प्रति आकर्षित करना था मगर चुनाव परिणाम दिखाते हैं कि प्रियंका का यह प्रयोग बुरी तरह असफल हुआ है। सीटों के नुकसान के साथ पार्टी का वोट प्रतिशत भी गिरा है। 2017 में पार्टी ने सात सीटे जीतने के साथ 6़ 25 फीसदी वोट हासिल किये थे जबकि मौजूदा चुनाव में उसका वोट प्रतिशत 2़ 41 पर टिक गया है।

अपने भाई और पूर्व कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी की जगह उत्तर प्रदेश की कमान संभालने आयी प्रियंका ने पिछले करीब तीन साल से संगठनात्मक ढांचा सुधारने के लिये काफी काम किया मगर चुनाव परिणाम उनकी ईमानदार कोशिश को झुठलाते दिखायी पड़ती है। वह पार्टी के मौजूदा विधायकों को संभालने में असफल साबित हुयी जब कांग्रेस के चार विधायक समाजवादी पार्टी (सपा) और भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) में शामिल हो गये। इनमें रायबरेली सदर की विधायक अदिति सिंह और हरचंदपुर के विधायक राकेश सिंह के अलावा पंकज चौधरी भी शामिल थे।

पार्टी पदाधिकारी और कार्यकर्ता पार्टी की असफलता का ठीकरा पार्टी नेतृत्व पर मढ़ते है। पार्टी के एक वरिष्ठ नेता ने कहा " खराब दौर से गुजर रही पार्टी को प्रियंका से काफी उम्मीद थी मगर आखिर में निराशा हाथ लगी है। चुनाव से पहले चार विधायकों के पार्टी से किनारा करने के साथ ही 40 फीसदी महिलाओं को टिकट देने का फैसला शायद सही नहीं था। महिलाओं को अगर टिकट देना था तो उनके नाम का ऐलान करीब एक साल पहले किया जाना चाहिये था ताकि वह अपने क्षेत्र में कार्य के जरिये पहचान बना सकती थी। "

उन्होने कहा कि पीड़ित महिलाओं को टिकट देकर आधी आबादी के सहानुभूति वोट जुटाने का फैसला भी बचकाना साबित हुआ। पूरे चुनाव में पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष अजय लल्लू भी प्रचार से लगभग नदारद रहे और अपनी सीट बचाने में भी असफल साबित हुये।

माल एवन्यू स्थित पार्टी दफ्तर में पसरे सन्नाटे के बीच दो चार पदाधिकारी ही यहां वहां बैठे चुनावी चर्चा में व्यस्त दिखायी पड़े मगर उन्होने माना कि परिणाम पार्टी के लिये अप्रत्याशित कतई नहीं थे। यह बात दीगर है कि उन्हे यह उम्मीद कतई नहीं थी कि पार्टी सिर्फ एक या दो सीटों पर सिमट जायेगी।

दरअसल, प्रदेश की राजनीति में कांग्रेस की असफलता की कहानी नयी नहीं है। पिछले चार विधानसभा चुनाव में पार्टी का प्रदर्शन बेहद दयनीय रहा है। वर्ष 1980 के विधानसभा चुनाव में अकेले दम पर 309 सीटें जीतने वाली कांग्रेस ने 1985 में भी 269 सीटे जीतकर लगातार दूसरी बार पूर्ण बहुमत की सरकार बनाने का गौरव हासिल किया था हालांकि बाद के सालों में पार्टी के प्रदर्शन में निरंतर गिरावट दर्ज की गयी और 2002 के विधानसभा चुनाव में पार्टी 25 सीटों पर सिमट गयी थी। 2007 में पार्टी ने 22 और 2012 में 28 सीटें अपने खाते में डाली।

इस बीच 2017 में उत्तर प्रदेश में पार्टी की दशा सुधारने का जिम्मा वरिष्ठ नेता राहुल गांधी ने उठाया और सपा अध्यक्ष अखिलेश यादव के साथ 114 सीटों पर चुनाव लड़ा मगर इस चुनाव में कांग्रेस को महज सात सीटें ही मिल सकी। कांग्रेस के साथ मिलकर चुनाव लड़ने का फायदा सपा को भी नहीं हुआ और वह भी सिर्फ 47 सीटें ही जीत सकी। इसके बाद राहुल अखिलेश की दोस्ती पर विराम लग गया।

वार्ता

Tags:    

Similar News