असंतुष्टों से निपटने का चौहान फार्मूला
राजनीति में अपने विरोधी को पटकनी देने के अलग अलग तरीके होते हैं मध्य प्रदेश में सीएम शिवराज सिंह चौहान का तरीका अलग है
भोपाल। राजनीति में अपने विरोधी को पटकनी देने के अलग अलग तरीके होते हैं। मध्य प्रदेश में मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान का तरीका अलग है। सत्ता के शीर्ष की तरफ वह भी कुछ उसी तरह बढे जैसे नरेन्द्र मोदी बढे़ थे। मध्य प्रदेश में उस समय उमा भारती ने कांग्रेस से सत्ता छीनी थी। बेंगलुरू के एक मामले को लेकर उमा भारती को सीएम पद से इस्तीफा देना पड़ा था। बाबूलाल गौर सरकार संभाल नहीं पा रहे थे, इसलिए शिवराज सिंह चौहान को मुख्यमंत्री की कुर्सी पर बैठा दिया गया था। नरेन्द्र मोदी को भी गुजरात में मुख्यमंत्री तब बनाया गया था, जब केशू भाई पटेल सरकार और संगठन को संभाल नहीं पा रहे थे। इसलिए शिवराज सिंह चौहान के साथ भी भाग्य और भरोसा कंधे से कंधा मिलाकर चल रहे हैं। उस समय संघ उनके साथ था, अब सिंधिया उनका साथ दे रहे हैं। यही कारण माना जा रहा है कि राज्यसभा सांसद ज्योतिरादित्य सिंधिया के दो कट्टर समर्थक तुलसी सिलावट और गोविंद राजपूत की मंत्रिमंडल में इंट्री हो गई है। इन दो चेहरों को मंत्री बनाने के लिए सिंधिया प्रयास कर रहे थे।
इस प्रकार सिलावट और राजपूत को मंत्री बनाए जाने का संदेश स्पष्ट है। सत्ता में ज्योतिरादित्य सिंधिया को जिस तरह से महत्व मिल रहा है, उसमें इस बात से इंकार नहीं किया जा सकता कि मुख्यमंत्री चौहान उन्हें मजबूत कर रहे हैं ताकि वक्त जरूरत पर भाजपा पर भी दबाव बनाने में सिंधिया का साथ लिया जा सके। मंत्री पद की शपथ से पहले तुलसी सिलावट ने कहा कि शिव-ज्योति की जोड़ी मध्य प्रदेश में इतिहास रचेगी। यहां उल्लेखनीय है कि पिछले साल मार्च में ज्योतिरादित्य सिंधिया ने अपने 22 विधायकों के साथ कांग्रेस पार्टी छोड़ दी थी। विधायकों के इस्तीफे से कमलनाथ सरकार अल्पमत में आ गई थी। भाजपा की पंद्रह माह बाद सरकार में वापसी का रास्ता खुला। भाजपा के राष्ट्रीय नेतृत्व ने सिंधिया की सहमति से ही शिवराज सिंह चौहान को राज्य का मुख्यमंत्री बनाया था और 28 सीटों के विधानसभा उपचुनाव के प्रचार के दौरान शिवराज सिंह चौहान और ज्योतिरादित्य सिंधिया के बीच अच्छी कैमेस्ट्री दिखाई दी। सिंधिया ने इस कैमेस्ट्री को शिव-ज्योति एक्सप्रेस का नाम दिया। इन दोनों नेताओं के संयुक्त प्रयासों से ही उपचुनाव में भाजपा मजबूत होकर उभरी। नतीजा यह रहा कि कांग्रेस सत्ता में वापसी नहीं कर सकी।
कांग्रेस सिलावट- राजपूत के मंत्री न बन पाने को लेकर सिंधिया का मजाक उड़ा रही थी। विधानसभा उपचुनाव के नतीजे दस नवंबर को आए थे। तीन मंत्री चुनाव हार गए थे। इनमें दो इमरती देवी और गिर्राज दंडोतिया सिंधिया के कट्टर समर्थक हैं। एक अन्य एंदल सिंह कंशाना भी सुमावली से चुनाव हार गए। शिवराज सिंह चौहान के मंत्रिमंडल में सिंधिया समर्थक कुल चौदह गैर विधायकों को मंत्री और राज्यमंत्री बनाया गया था। चुनाव हार जाने के कारण इमरती देवी और गिर्राज दंडोतिया का इस्तीफा 1 जनवरी को मुख्यमंत्री ने स्वीकार किया था। एंदल सिंह कंशाना ने चुनाव परिणाम आने के बाद ही पद छोड़ दिया था। छह माह की अवधि में विधायक न चुने जाने के कारण सिलावट और राजपूत ने 20 अक्टूबर को मंत्री पद से इस्तीफा दिया था। चुनाव जीतने के बाद भी मंत्रिमंडल में वापसी न होने से शिव-ज्योति की जोड़ी टूटने की चर्चाएं चल निकली थीं।
बहरहाल, राज्यसभा सांसद ज्योतिरादित्य सिंधिया के दो कट्टर समर्थक तुलसी सिलावट और गोविंद राजपूत की मंत्रिमंडल में इंट्री हो गई है। इन दो चेहरों को मंत्री बनाने के लिए सिंधिया उपचुनाव के बाद से ही मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान पर दबाव बनाए हुए थे। चौहान पर दबाव पार्टी के वरिष्ठ विधायकों की ओर से भी था, लेकिन किसी को भी मंत्रिमंडल में जगह नहीं मिल पाई। माना जा रहा है कि पार्टी में संतुलन बनाना शिवराज के लिए चुनौती भरा काम है।
वर्ष 2018 में हुए विधानसभा के आम चुनाव में भाजपा ने अपनी पंद्रह साल पुरानी सरकार गंवा दी थी। शिवराज सिंह चौहान की लोकप्रियता में आई कमी को बड़े कारण के तौर पर देखा गया। भाजपा की सरकार में वापसी ज्योतिरादित्य सिंधिया और उनके समर्थक विधायकों के पाला बदलने के कारण हुई। हालांकि, सिंधिया और उनके समर्थकों के भाजपा में प्रवेश से पार्टी के आतंरिक समीकरण बुरी तरह गड़बड़ा गए हैं। सबसे ज्यादा असर ग्वालियर-चंबल इलाके में पड़ा। निमाड, मालवा भी अछूते नहीं रहे। पार्टी के भीतर विभिन्न स्तरों पर सिंधिया के विरोध के स्वर भी सुनाई दिए। सिंधिया के परंपरागत विरोधियों ने उन्हें कमजोर करने की पहली कोशिश उपचुनाव के उम्मीदवार तय करते समय की। पार्टी ने अपने वादे के अनुसार इस्तीफा देने वाले सभी विधायकों को उपचुनाव में उम्मीदवार बनाया। इससे पहले चौदह लोगों को मंत्री बनाकर पार्टी सिंधिया को लेकर अपनी रणनीति का संकेत दे चुकी थी। सिंधिया समर्थकों को साधने के लिए शिवराज सिंह चौहान ने अपने कई पुराने साथियों को हासिए पर डाल दिया। राजेन्द्र शुक्ला और रामपाल सिंह का नाम उल्लेखनीय है। वरिष्ठ विधायक अजय विश्नोई जैसे पुराने विरोधी भी अपने आप किनारे लग गए। शिवराज सिंह चौहान के लिए अब नए और पुराने भाजपाइयों के बीच संतुलन बनाना बेहद चुनौती भरा होगा।
हालांकि असंतुष्ट विधायकों के पास भी शिवराज सिंह चौहान को स्वीकार करने के अलावा कोई दूसरा विकल्प नहीं है। भाजपा में जो नेता चौहान का विकल्प बन सकते थे, वे पंद्रह साल में राज्य की राजनीति से दूर हो गये हैं। इस मामले में नरेन्द्र सिंह तोमर का नाम हमेशा चर्चा में रहता है। वे देश के कृषि मंत्री हैं। तोमर उसी ग्वालियर-चंबल इलाके से आते हैं,जहां सिंधिया का प्रभाव ज्यादा है। विधानसभा के पिछले तीन विधानसभा चुनाव में चौहान की राह तोमर ने ही आसान की है। सबसे सफल जोड़ी मानी जाती रही है, लेकिन अब शिव-ज्योति की जोड़ी है। सिंधिया भी देर-सबेर केन्द्र में मंत्री बनेंगे तो शिवराज सिंह चौहान का रास्ता निर्बाध हो जाएगा। सिंधिया के भाजपा में आ जाने के बाद राष्ट्रीय नेतृत्व मध्य प्रदेश में कई नई राजनीतिक संभावनाओं का आकलन कर रहा है।
सिंधिया को मजबूत करने की कोशिश भी राष्ट्रीय नेतृत्व द्वारा लगातार की जा रही हैं। सिंधिया भी अपने आपको भाजपाई दिखाने में गुरेज नहीं कर रहे हैं। भाजपा ने राष्ट्रीय सह संगठन मंत्री शिव प्रकाश को बड़ी रणनीति के तहत मध्य प्रदेश भेजा है। शिव प्रकाश का मुख्यालय भोपाल तय किया गया है। यहीं से वे चार अन्य राज्यों का काम भी देखेंगे। इनमें पश्चिम बंगाल भी एक है। पश्चिम बंगाल के प्रभारी महासचिव कैलाश विजयवर्गीय मध्य प्रदेश के ही हैं। विजयवर्गीय और मुख्यमंत्री चौहान के राजनीतिक रिश्ते बेहतर नहीं माने जाते। विजयवर्गीय समर्थक इंदौर के विधायक रमेश मेंदोला को मुख्यमंत्री चौहान मंत्रिमंडल में जगह नहीं दे रहे हैं। अपने पिछले कार्यकाल में भी चैहान ने इंदौर से किसी भी विधायक को मंत्री नहीं बनाया था। मंत्रिमंडल में अभी चार जगह खाली हैं। जगह खाली रखना भी चैहान की रणनीति का हिस्सा है। इसके जरिए वे असंतोष को उभरने नहीं देते। उनके इस काम में ज्योतिरादित्य सिंधिया मदद करेंगे। (हिफी)