किसानों को शोषण से मुक्ति दिलाने वाले सर छोटू राम चौधरी
सर छोटूराम ने ऐसे कई समाज-सुधारक कानून पारित करवाए, जिससे किसानों को शोषण से मुक्ति मिली।
नई दिल्ली। केन्द्र सरकार के तीन कानूनों के विरोध में किसानों ने लम्बा आंदोलन किया। नये साल की सबसे बड़ी खबर किसान ही बन गये। ऐसे में किसानों को शोषण से मुक्ति दिलाने वाले नेता सर छोटू राम की याद आती है। उन्होंने गिरवीं जमीन किसानों को मुफ्त में दिलायी थी। देश में कृषि की बेहतरी के लिए बनाया गया भाखड़ा नांगल बांध भी उन्हीं की देन है। लगभग 70 साल पहले सर छोटू राम ने कहा था कि दूसरे लोग जब सरकार से नाराज होते हैं तो कानून तोड़ते हैं लेकिन किसान जब नाराज होता तो कानून ही नहीं तोड़ेगा बल्कि सरकार की पीठ भी तोड़ेगा। गत 7 जनवरी को किसान जब ट्रैक्टर रैली निकाल कर अपनी शक्ति का प्रदर्शन कर रहे थे तब सर छोटू राम की ये बातें याद आ रही थीं। उनकी 9 जनवरी को पुण्यतिथि है। सर छोटू राम ने 9 जनवरी 1945 को अंतिम सांस ली थी।
छोटू राम चौधरी ने कहा था, मैं राजा-नवाबों और हिन्दुस्तान की सभी प्रकार की सरकारों को कहता हूँ, कि वो किसान को इस कद्र तंग न करें कि वह उठ खड़ा हो। दूसरे लोग जब सरकार से नाराज होते हैं तो कानून तोड़ते हैं, पर किसान जब नाराज होगा तो कानून ही नहीं तोड़ेगा, सरकार की पीठ भी तोड़ेगा।"साल 1945 में 9 जनवरी को सर छोटूराम ने अपनी आखिरी सांस ली। वे स्वयं तो चले गये पर उनके लेख आज भी देश की अमूल्य विरासत है। किसानों के इस नेता ने जो लिखा वह आज भी देश और समाज की व्यवस्था पर लागू होता है। भाखड़ा-नंगल बांध भी सर छोटूराम की ही देन है। उन्होंने ही भाखड़ा बांध का प्रस्ताव रखा था पर सतलुज के पानी पर बिलासपुर के राजा का अधिकार था, तब सर छोटूराम ने ही बिलासपुर के राजा के साथ एक समझौते पर हस्ताक्षर किए। बाद में उनके इस प्रोजेक्ट को बाबा साहेब अम्बेडकर ने आगे बढ़ाया।
वे कहते थे किसानों को अन्नदाता तो कहते हैं, लेकिन यह कोई नहीं देखता कि वह अन्न खाता भी है या नहीं। जो कमाता है वही भूखा रहे यह दुनिया का सबसे बड़ा आश्चर्य है।"
किसानों के रहबर, सर छोटू राम के इन चंद शब्दों ने इतिहास के पन्नों में किसानों को न केवल एक महत्वपूर्ण स्थान दिया बल्कि उनकी आवाज को बुलंदी भी दी। शायद उनकी इसी बुलंदी की वजह से आज भी सर छोटूराम को किसानों का मसीहा कहा जाता है। एक किसान का बेटा और देश के किसानों के हितों का रखवाला, जिसके लिए गरीब और जरुरतमन्द किसानों की भलाई हर एक राजनीति, धर्म और जात-पात से ऊपर थी। सर छोटू राम बस आम किसानों के थे। सर छोटूराम का जन्म 24 नवम्बर 1881 में झज्जर के छोटे से गाँव गढ़ी सांपला में बहुत ही साधारण किसान परिवार में हुआ (झज्जर तब रोहतक जिले का ही अंग था)। उस समय रोहतक पंजाब का भाग था। उनका असली नाम राम रिछपाल था। अपने भाइयों में से सबसे छोटे थे इसलिए सारे परिवार के लोग इन्हें छोटू कहकर पुकारते थे। स्कूल रजिस्टर में भी इनका नाम छोटू राम ही लिखा दिया गया और बाद में, ये महापुरुष छोटूराम के नाम से ही विख्यात हुए। उनके दादा जी रामरत्न के पास कुछ बंजर जमीन थी, जिसपर उनके पिता, सुखीराम किसानी करते पर कर्जे और मुकदमों में बुरी तरह से फंसे हुए थे। करते भी क्या, उनके परिवार को किसानी के अलावा और किसी चीज का सहारा नहीं था। छोटू राम की प्रारम्भिक शिक्षा तो गाँव के पास के स्कूल से हो गयी। पर वे आगे भी पढ़ना चाहते थे। इसलिए उनके पिता उनकी आगे की पढ़ाई के लिए साहूकार से कर्जा मांगने गये। पर वहां साहूकार ने उनका बहुत अपमान किया। उन्होंने एक इसाई मिशनरी स्कूल में दाखिला ले लिया, जहाँ से उनके जीवन की पहली क्रांति की शुरुआत हुई।
उन्होंने अन्य छात्रों के साथ मिलकर स्कूल के हॉस्टल के वार्डन के खिलाफ हड़ताल की, जिसकी वजह से स्कूल में उन्हें 'जनरल रोबर्ट' के नाम से जाना जाने लगा। अब तो 'छोटूराम' हर अन्याय के विरोध में खड़े होने का नाम बन था। साल 1905 में उन्होंने दिल्ली के सैंट स्टीफंस कॉलेज से ग्रेजुएशन की। आर्थिक हालातों के चलते उन्हें मास्टर्स की डिग्री छोड़नी पड़ी। उन्होंने कालाकांकर के राजा रामपाल सिंह के सह-निजी सचिव के रूप में कार्य किया और यहीं पर साल 1907 तक अंग्रेजी के हिन्दुस्तान समाचारपत्र का संपादन किया। इसके बाद वे आगरा में वकालत की डिग्री लेने चले गये।
वकालत में भी उन्होंने नए आयाम जोड़े। उन्होंने झूठे मुकदमे न लेना, बेईमानी से दूर रहना, गरीबों को निःशुल्क कानूनी सलाह देना, मुव्वकिलों के साथ सद्व्यवहार करना आदि सिद्धांतों को अपने वकालती जीवन का आदर्श बनाया। इन्हीं सिद्धान्तों का पालन करके केवल पेशे में ही नहीं, बल्कि जीवन के हर पहलू में चैधरी साहब बहुत ऊंचे उठ गये थे। सर छोटूराम देश में किसानों की दुर्दशा से भली-भांति परिचित थे। इसलिए उन्होंने साल 1915 में 'जाट-गजट' नामक अखबार शुरू किया। इसके माध्यम से उन्होंने ग्रामीण जनजीवन का उत्थान और साहूकारों द्वारा गरीब किसानों के शोषण पर क्रांतिकारी लेख लिखे। उन्होंने राष्ट्र के स्वाधीनता संग्राम में भी बढ़-चढ़ कर भाग लिया। वे अंग्रेजी अफसरों के अत्याचारों के खिलाफ न तो बोलने से डरते थे और न ही लिखने से।
साल 1937 में पंजाब के प्रोवेंशियल असेंबली चुनावों में उनकी पार्टी को जीत मिली और वे विकास व राजस्व मंत्री बन गए। इसके बाद लोग उन्हें 'राव बहादुर' कहने लगे।देश के किसानों को एक करने के लिए उन्होंने यूनियनिस्ट पार्टी का गठन किया, जिसे जमींदार लीग के नाम से जाना गया। किसानों के लिए उनके अभियान और आंदोलनों के चलते छोटूराम भारतीय राजनीति का प्रमुख स्तंभ बन गये थे। उनकी कलम जब भी चलती, तो भारतीयों के साथ-साथ ब्रिटिश राज को भी झकझोर कर रख देती। लोगों के बीच उनके बढ़ते कद को देख, एक बार रोहतक के ब्रिटिश डिप्टी कमिश्नर ने अंग्रेजी सरकार से सर छोटूराम को देश-निकाला देने का प्रस्ताव दिया। इस प्रस्ताव पर जब चर्चा हुई तो एक भी आवाज डिप्टी कमिश्नर के पक्ष में नहीं आई। तत्कालीन पंजाब सरकार ने अंग्रेज हुक्मरानों को बताया कि चैधरी छोटू राम अपने आप में एक क्रांति हैं। अगर उन्हें देश निकाला मिला तो फिर से देश में क्रांति होगी और इस बार हर एक किसान चौधरी छोटूराम बन जायेगा। सर छोटूराम के देश-निकाले की बात तो रद्द हो ही गयी पर साथ में उस कमिश्नर को उनसे माफी भी मांगनी पड़ी।
सर छोटूराम ने ऐसे कई समाज-सुधारक कानून पारित करवाए, जिससे किसानों को शोषण से मुक्ति मिली। इनमें शामिल हैं, पंजाब रिलीफ इंडेब्टनेस (1934), द पंजाब डेब्टर्स प्रोटेक्शन एक्ट (1936), साहूकार पंजीकरण एक्ट-1938, गिरवी जमीनों की मुफ्त वापसी एक्ट-1938, कृषि उत्पाद मंडी अधिनियम-1938, व्यवसाय श्रमिक अधिनियम-1940 और कर्जा माफी अधिनियम-1934 कानून। इन कानूनों में कर्ज का निपटारा किए जाने, उसके ब्याज और किसानों के मूलभूत अधिकारों से जुड़े हुए प्रावधान थे। उनके इन कामों को अब भी किसानों के लिए मील का पत्थर कहा जा सकता। (हिफी)