जन्मदिन विशेष - संघर्ष के बलबूते सियासत में चमक गए संजीव बालियान

23 जून 1972 को कुटबा गांव में सुरेन्द्र एवं रविन्द्री देवी के घर में एक बालक ने जन्म लिया नाम रखा गया था संजीव बालियान

Update: 2021-06-23 04:44 GMT

मुजफ्फरनगर। 5 नवम्बर 2012 को मुजफ्फरनगर जिला मुख्यालय से लगभग 22 किलोमीटर दूर गांव कुटबा-कुटबी के मैदान पर हजारों की भीड़ के बीच मंच पर मौजूद थे, भाजपा के तत्कालीन राष्ट्रीय अध्यक्ष नितिन गड़करी एंड दिग्गज नेता पूर्व सीएम राजनाथ सिंह और रैली का आयोजन किया था संजीव बालियान ने। इस दिन मुजफ्फरगनर को ऐसा नेता मिलना तय हो गया था, जो जनपद का नाम अपने नाम के साथ राष्ट्रीय फलक पर चमकाएगा और हुआ भी वही । नवम्बर 2012 से मई 2014 आते-आते संजीव बालियान देश की संसद में जाने के साथ-साथ केन्द्र सरकार बन गये थे। मुजफ्फरनगर में मूर्छित पड़ी भाजपा के लिये संजीव बालियान संजीवनी भी साबित हुए। उनके सांसद बनने के बाद पहले जिला पंचायत अध्यक्ष पद पर कब्जा, फिर 2017 में सभी विधानसभा सीटों पर भाजपा की विजय, स्थानीय निकाय चुनाव में कई पंचायतों पर भाजपा का परचम लहराने के साथ-साथ संजीव बालियान ने 2019 का लोकसभा चुनाव दूसरी बार जीतकर साबित कर दिया वो ऐसे रण बांकुरे है, जब रण में उतरते है तो जीत पक्की हो जाती है। अपनी संघर्षशील कार्यशैली से संसद पहुंचने वाले सजीव बालियान के जन्मदिन पर खोजी न्यूज की स्पेशल रपट।


 23 जून 1972 को कुटबा गांव में सुरेन्द्र पाल सिंह एवं रविन्द्री देवी के घर में एक बालक ने जन्म लिया था। उसका नाम रखा गया था संजीव चूंकि गोत्र बालियान था तो पूरा नाम लिखा गया संजीव कुमार बालियान। बचपन में कुश्ती, कबड्डी एवं बेडमिन्टन के शौकीन रहे संजीव बालियान ने शुरूआती शिक्षा के बाद कृषि विश्व विद्यालय हरियाणा से पशु चिकित्सा विज्ञान में पीएचडी करके हरियाणा सरकार मे पशु चिकित्साधिकारी के रूप में काम करना शुरू कर दिया। मन में समाजसेवा का भाव वाले संजीव बालियान नौकरी तो कर रहे थे लेकिन उनका मन सियासत में जाकर समाज के लिये काम करने का था। संजीव बालियान ने राजनीति करने के लिये भाजपा को चुना, उसकी वजह भी थी क्योंकि संजीव बालियान शिक्षा के दौरान अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद से जुडे रहे है। आर.एस.एस के प्रति उनके झुकाव के चलते संजीव बालियान ने अपनी जन्मस्थली से ही सियासी पारी शुरू करने का फैसला लिया। 5 नवम्बर 2012 को जब कुटबा-कुटबी में नितिन गड़करी एंव राजनाथ सिंह जैसे दिग्गज संजीव बालियान द्वारा आयोजित गन्ना किसान महापंचायत में मौजूद थे तब मुजफ्फरनगर के लोग संजीव बालियान की भाजपा में एंट्री से रूबरू हुए, तब किसी ने सोचा भी नही होगा कि संजीव बालियान सांसद भी बन सकते है। मगर संजीव बालियान तो लक्ष्य को लेकर निकल चुके थे। 


1995 में सुनीता बालियान के साथ शादी के बंधन मे बंधे संजीव बालियान के संघर्षशील व्यक्तित्व का पता तब चलना शुरू हो गया, जब 2013 में मुजफ्फरनगर में हिंसा के हालात बन रहे थे तो संजीव बालियान ने सरकार के खिलाफ बिगुल बजा दिया था। वो निर्दोषों पर पुलिस कार्यवाही का आरोप लगाते हुए सरकार को ललकार रहे थे। सिम्बर 2013 में हुए मुजफ्फरनगर दंगो के बाद भी फर्जी नामजदगी का आरोप लगाते हुए संजीव बालियान घर-घर जाकर भाजपा की सरकार आने पर इंसाफ दिलाने का वादा कर रहे थे। यूपी में सत्ता परिवर्तन हुई तो संजीव बालियान ने 2013 में दंगो के दौरान और 2014 के लोकसभा चुनाव में किये गये अपने वादों को निभाया। केन्द्र और राज्य में भाजपा की सरकार होने का संजीव बालियान को लाभ मिला। उन्होंने साथी विधायको के साथ मिलकर फर्जी नामजदगी हटाने के साथ-साथ मुकदमों को भी शासन से वापस कराकर जनपद की जनता से किया वादा पूरा किया। अमेरिका, कनाड़ा, तुर्की जैसे देशों की यात्रा करने वाले संजीव बालियान 2014 में सांसद बनने के बाद केन्द्र की मोदी सरकार में कृषि एंव जल संसाधन विभाग के राज्यमंत्री बनाये गये थे। तीन साल तक राज्यमंत्री के रूप में काम करने वाले संजीव बालियान 2017 में इस्तीफा देकर संगठन में यूपी में भाजपा प्रदेश उपाध्यक्ष बन गये।

2019 के लोकसभा चुनाव में भाजपा ने संजीव बालियान पर ही दांव लगाया। इस बार संजीव बालियान के सामने कड़ी चुनौती थी, वजह थी कि उनके सामने संयुक्त विपक्ष के प्रत्याशी भारी भरकम जाट नेता अजित सिंह। अजित सिंह के सामने आने के बाद भी संजीव बालियान जनता से संवाद करते है। सियासी पंडित उनकी हार ज्यों-ज्यों पक्की मान रहे थे, संजीव बालियान त्यों-त्यों जनता के बीच जाकर अपने काम पर मुहर लगाने के लिये चुनावी रण में संघर्ष कर रहे थे। लोकसभा चुनाव के नतीजे आने वाले दिन संजीव बालियान खुद मतगणना स्थल पर मौजूद थे। उनके जीवट व्यक्तित्व का पता इसी से चलता है कि जब रूझान में वो अजित सिंह से पीछे होते तो मुस्कुराते हुए कहते जरूर थे कि मैने मुजफ्फरगनर की जनता के लिये काम किया है, इसलिए मुझे जनता हारने नहीं देगी और हुआ भी वही, 2019 की चुनावी जंग में संजीव बालियान रालोद मुखिया अजीत सिंह को 6526 वोटों से शिकस्त देकर दूसरी बार मोदी सरकार में पशुपालन, डेयरी और मत्स्य विभाग के राज्य मंत्री के रूप में काम कर रहे है।


 सांसद बनने के बाद भाजपा को दिलाई जिला पंचायत

मुजफ्फरनगर की जिला पंचायत के अध्यक्ष पद से जीत पर भाजपा मायूस ही नजर आती थी। 2000 में रालोद के तरसपाल मलिक, 2005 में तरसपाल मलिक की पत्नि तथा 2010 में तत्कालीन बसपा विधायक शाहनवाल राणा की पत्नि इंतखाब राणा चैयरमेन के रूप में जीतते रहे। भाजपा इन चुनाव मे किनारे पर ही रहती थी, मगर 2014 का लोक सभा चुनाव जीतने के बाद संजीव बालियान ने भाजपा के इस सूखे को खत्म करने की ठान ली। उन्होंने पंचायत चुनाव आते ही इसके लिये रणनीति बनानी शुरू कर दी थी। उन्होंने आंचल तोमर को भाजपा प्रत्याशी बनाकर खडा किया तो विपक्ष ने भी पूर्व मंत्री उमा किरण को अपना उम्मीदवार बना दिया। सूबे में समाजवादी पार्टी की सरकार और उमा किरण उनकी प्रत्याशी, मगर संजीव बालियान ने चक्रव्यूह ऐसा रचा कि सत्तारूढ समाजवादी पार्टी को संजीव बालियान की प्रत्याशी आंचल तोमर ने शिकस्त देकर वो जिले की प्रथम नागरिक बन गयी थी। अपनी सियासी पारी के मात्र तीन साल में खुद लोकसभा चुनाव तथा 2015 में जिला पंचायत अध्यक्ष का चुनाव में अपनी रणनीति से जीत हासिल कर संजीव बालियान ने बता दिया था कि मुजफ्फरनगर की सियासत का वो उभरता सितारा है।

2017 में भाजपा ने किया था क्लीन स्वीप 

भाजपा को चमकाने में संजीव बालियान की सभी को सहयोग करने की कार्यशैली का भी बड़ा योगदान हैं। विधानसभा चुनाव में अगर 1991 एवं 1993 भाजपा की जीत को छोड़ दें तो मुजफ्फरनगर शहरी सीट के अलावा वो चुनावी रण में पिछडती रही है। 2012 में तो भाजपा मुजफ्फरगनर की एक भी सीट नही जीत पायी थी मगर 2017 के विधानसभा चुनाव में पीएम नरेन्द्र मोदी की छवि और सभी प्रत्याशियों के साथ संजीव बालियान की कार्यशैली एवं उनके जनता के बीच जुडे रहने का ही परिणाम था कि भाजपा ने सूपड़ा साफ करते हुए सभी 6 विधानसभा सीटों पर कब्जा कर लिया था। चुनाव जीतकर भाजपा को 16 साल बाद लौटाई मुजफ्फरनगर लोकसभा सीट मुजफ्फरनगर लोकसभा सीट पर पहले रामलहर के चलते 1991 में भाजपा के प्रत्याशी नरेश बालियान की जीत के बाद 1996, एवं 1998 के लोकसभा चुनाव में अगर सोहनवीर सिंह की जीत छोड़ दें तो भाजपा इस सीट पर कभी चुनाव नही जीत पायी है। 1999 में मध्यावधि चुनाव में कांग्रेस प्रत्याशी सईदुज्जमा की जीत के बाद 2004 में सपा के मुनव्वर हसन, 2009 में बसपा के कादिर राणा जीतते रहे, मगर 2014 के लोकसभा चुनाव में संजीव बालियान ने बसपा के सांसद कादिर राना को 4 लाख से अधिक वोटों से हराकर 16 साल बाद भाजपा की झोली में इस सीट को डाल दिया था। अब 2019 में दूसरी बार लोकसभा में जाकर संजीव बालियान ने साबित कर दिया है कि वो जनता के बीच रहकर काम करने वाले सांसद है।



 


Tags:    

Similar News