उपलब्धियों से भरा हुआ रहा हैं आनंदीबेन पटेल का जीवन
आनंदीबेन पटेल का जन्म मेहसाणा जिले के विजापुर तालुका के खरोद गांव में, 21 नवम्बर 1941 को एक पाटीदार परिवार में हुआ
लखनऊ। आनंदीबेन पटेल का जन्म मेहसाणा जिले के विजापुर तालुका के खरोद गांव में, 21 नवम्बर 1941 को एक पाटीदार परिवार में हुआ था। उनका पूरा नाम आनंदी बेन जेठाभाई पटेल है। उनके पिता जेठाभाई पटेल एक गांधीवादी नेता थे। उन्हें कई बार लोगों ने गाँव से निकाल दिया था क्योंकि वह ऊंच-नीच और जातीय भेदभाव को मिटाने की बात करते थे। आनंदी के ऊपर अपने पिता का भरपूर प्रभाव पड़ा। उनके आदर्श भी उनके पिता हीं हैं। उस समय जब कोई लड़कियों को स्कूल नहीं भेजता था उनकी मम्मी ने हमेशा पढ़ने के लिए प्रोत्साहित किया। उन्हीं की तरह आनंदीबेन भी किसी में भेदभाव नहीं रखती और पैसे खाने वाले और चापलूस लोगों को अपने करीब नहीं आने देतीं। उन्होंने कन्या विद्यालय में चतुर्थ कक्षा तक की पढ़ाई की। तत्पश्चात उन्हें आगे की पढ़ाई के लिए बजाज स्कूल में भर्ती कराया गया, जहां 700 लड़कों के बीच वे अकेले लड़की थीं। आठवीं कक्षा में उनका दाखिला विसनगर के नूतन सर्व विद्यालय में कराया गया। विद्यालीय शिक्षा के दौरान एथलेटिक्स में उत्कृष्ट उपलब्धि के लिए उन्हें "बीर वाला" पुरस्कार से सम्मानित किया गया।
वर्ष 1960 में उन्होंने विसनगर के भीलवाई कॉलेज में प्रवेश लिया, जहां पूरे कॉलेज में प्रथम वर्ष विज्ञान में वे एकमात्र लड़की थी। उन्होंने यहाँ से विज्ञान स्नातक की पढ़ाई पूरी की। स्नातक करने के बाद पहली नौकरी के रूप में वे महिलाओं के उत्थान के लिए संचालित महिला विकास गृह में शामिल हो गईं, जहां उन्होने 50 से अधिक विधवाओं के लिए व्यावसायिक पाठ्यक्रमों की शुरुआत की।
वे अपने पति मफ़तलाल पटेल के साथ 1965 में अहमदाबाद आ गईं, जहां उन्होने विज्ञान विषय के साथ स्नातकोत्तर की पढ़ाई पूरी की। शिक्षा के क्षेत्र में अभिरुचि के कारण उन्होने यही से एम॰एड॰ की भी पढ़ाई पूरी की और 1970 में प्राथमिक शिक्षक के रूप में अहमदाबाद के मोहनीबा कन्या विद्यालय में अध्यापन कार्य में संलग्न हो गईं। वे इस विद्यालय की पूर्व प्रधानाचार्या रह चुकी हैं।
उनके व्यक्तिगत जीवन की बात करें तो आनंदीबेन शाकाहारी हैं। उन्हें पक्षियों से बहुत लगाव है और बागवानी में अपना समय बिताना उन्हें बहुत अच्छा लगता है। वे एक मितव्ययी जीवन शैली को अपनाती हैं तथा जबरदस्त प्रशासनिक दक्षता के लिए जानी जाती हैं। वे एक निडर नेता हैं और अन्याय के खिलाफ आवाज़ उठाने से कभी पीछे नहीं हटतीं। वे बाहर से जितनी सख़्त हैं उतनी ही अंदर से सरल भी। उन्होंने स्थानीय सरकारी अधिकारियों से मिलने और कार्यों के निष्पादन के उद्देश्य से गुजरात राज्य भर में बड़े पैमाने पर यात्रा की हैं। उनके दो बच्चे क्रमश: संजय पटेल (बेटा) और अनार पटेल (बेटी) है।
आनंदीबेन अपने राजनीतिक जीवन की शुरुआत करते हुए
सन् 1988 में भाजपा में शामिल हुई। पहली बार वे उस समय चर्चा में आई जब उन्होंने अकाल पीडितों के लिए न्याय मांगने के कार्यक्रम में हिस्सा लिया। वर्ष 1995 में शंकर सिंह वाघेला ने जब बगावत की थी, तो उस कठिन दौर में उन्होंने नरेन्द्र मोदी के साथ पार्टी के लिए काम किया। इसी समय मोदी के साथ उनकी नज़दीकियाँ बढ़ी। 1998 में कैबिनेट में आने के बाद से उन्होने शिक्षा और महिला एवं बाल कल्याण जैसे मंत्रालयों का जिम्मा सँभाला। उन्हे वर्ष 1987 में "वीरता पुरस्कार" से भी नवाजा जा चुका है। यहां यह भी उल्लेखनीय है कि, एक छात्रा को डूबने से बचाने के लिए वे खुद झील में कूद गई थीं। बतौर शहरी विकास और राजस्व मंत्री उन्होने ई-जमीन कार्यक्रम, जमीन के स्वामित्व डाटा और जमीन के रिकॉर्ड को कंप्यूटरीकृत करके जमीन के सौदों में होने वाली धांधली की आशंका को कम कर दिया। उनकी इस योजना से गुजरात के 52 प्रतिशत किसानों के अंगूठे के निशानों और तस्वीरों का कंप्यूटरीकरण सफल हुआ।
गुजरात राज्य की कई और नीतियां, जिनके लिए मोदी ने वाहवाही लूटी है, उनके पीछे आनंदीबेन ही रही हैं। फिर चाहे वह ई-ज़मीन कार्यक्रम हो, जमीन के स्वामित्व डाटा और जमीन के रिकॉर्ड को कंप्यूटरीकृत करके जमीन के सौदों में होने वाली धांधली को रोकने की बात हो, या फिर गुजरात के 52 प्रतिशत किसानों के अंगूठे के निशानों और तस्वीरों का कंप्यूटरीकरण कर देने की बात हो।
गुजरात के तत्कालीन मुख्यमंत्री नरेन्द्र मोदी की बेहद करीबी आनंदीबेन उनके भारत के प्रधानमंत्री बन जाने के बाद गुजरात की नई मुख्यमंत्री बनने की रेस में सबसे आगे रहीं। नरेंद्र मोदी के गुजरात के मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा देने के बाद नरेंद्र मोदी की करीबी आनंदीबेन को गुजरात का नया मुख्यमंत्री बनाया गया। वे गुजरात की पहली महिला मुख्यमंत्री बनी हैं। 1 अगस्त 2016 को आनंदीबेन ने मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा दे दिया था।
वे 1998 से 2007 तक गुजरात सरकार में काबीना मंत्री के तौर पर शिक्षा मंत्रालय, उच्च और तकनीकी शिक्षा, महिला एवं बाल कल्याण, खेल, युवा एवं सांस्कृतिक गतिविधियां और 2007 से 2014 में मुख्यमंत्री बनने तक वे सड़क और भवन निर्माण, राजस्व, शहरी विकास और शहरी आवास, महिला एवं बाल कल्याण, आपदा प्रबंधन और राजस्व मंत्री का कार्य संभालती रहीं।
उनकी उपलब्धियों,सम्मान और पुरस्कारों की बात करें तो उन्हें सर्वश्रेष्ठ शिक्षक के लिए राष्ट्रपति पुरस्कार (1989), गुजरात में सबसे बेहतर शिक्षक के लिए राज्यपाल पुरस्कार (1988), दो छात्राओं को नर्मदा नदी में डूबने से बचाने के लिए गुजरात सरकार द्वारा 'वीरता पुरस्कार' पटेल जागृति मंडल मुम्बई द्वारा 'सरदार पटेल' पुरस्कार (1999), पटेल समुदाय द्वारा 'पाटीदार शिरोमणि' अलंकरण (2005), महिलाओं के उत्थान अभियान के लिए धरती विकास मंडल द्वारा विशेष सम्मान महेसाणा जिला स्कूल खेल आयोजन में पहली रैंकिंग के लिए 'बीर वाला' पुरस्कार, तपोधन ब्रह्म विकास मंडल द्वारा 'विद्या गौरव' पुरस्कार (2000), 1994 में उन्होंने बिजिंग में चतुर्थ विश्व महिला सम्मेलन में भारत का नेतृत्व किया।
नर्मदा नदी स्थित नवगाम जलाशय में डूबती हुई लड़की को बचाने हेतु उन्हें वीरता पुरस्कार मिला, शोर्य वीरता के पुरस्कार के रूप में चारुमति योद्धा पुरस्कार प्राप्त कर वे अंबुभाई व्यायाम विद्यालय पुरस्कार (राजपिपला) की विजेता भी बनी।
रिपोर्ट- सत्येन्द्र ठाकुर