किसान आंदोलनः एक संघर्ष पर 'सुप्रीम विराम'
केन्द्र सरकार के किसान बिलों को लेकर भ्रम और भय दोनों की स्थिति बन गयी है।
किसान आंदोलनः एक संघर्ष पर 'सुप्रीम विराम'
नई दिल्ली। केन्द्र सरकार के किसान बिलों को लेकर भ्रम और भय दोनों की स्थिति बन गयी है। किसानों के नेता इस बात को जगह-जगह कहते भी हैं। अपनी बात के समर्थन में किसानों ने धान का सरकारी खरीद मूल्य नहीं मिलने का प्रमाण भी पेश किया। किसानों के भय का उल्लेख सुप्रीम कोर्ट में याचिकाकर्ता एमएल शर्मा ने किया। उन्होंने कहा कि किसानों को डर है कि उनकी जमीन बेंच दी जाएगी। इस पर सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश जस्टिस एसए बोवडे ने कहा कि कौन कह रहा है कि जमीनें बेंच दी जाएंगी। चीफ जस्टिस ने आश्वासन दिया कि किसी भी किसान की जमीनी नहीं बिकेगी। कोर्ट ने कहा कि यह कोई राजनीति नहीं है। हम समस्या का समाधान चाहते हैं। इस प्रकार किसानों को अब सुप्रीम कोर्ट की बात मान लेनी चाहिए। सुप्रीम कोर्ट ने विवादास्पद किसान बिलों को लेकर अमल पर रोक लगा दी और 4 सदस्यों की एक कमेटी गठित कर दी है जो इस मामले को देखेगी।
देश की सर्वोच्च अदालत सुप्रीम कोर्ट ने नरेंद्र मोदी सरकार द्वारा बनाए गए तीन कृषि कानूनों के लागू होने पर रोक लगा दी है। इसके साथ ही सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले को देखने के लिए 4 सदस्यों की कमेटी गठित कर दी है। सुप्रीम कोर्ट के इस आदेश के साथ ही अगले आदेश तक तीनों कृषि कानून लागू नहीं होंगे। इस कमेटी में जो 4 लोग हैं वो हैं, भारतीय किसान यूनियन के भूपेंद्र सिंह मान, डॉ. प्रमोद कुमार जोशी (कृषि विशेषज्ञ), अशोक गुलाटी (कृषि विशेषज्ञ) और अनिल घनावंत (शेतकारी संगठन)। गत 12 जनवरी को सुप्रीम कोर्ट में इस मामले की सुनवाई हुई। सबसे पहले याचिकाकर्ता एमएल शर्मा ने कहा कि किसानों को ये डर है कि उनकी जमीनें बेच दी जाएगी। किसान अभी भी तीनों कानूनों को रद्द करने की मांग पर अड़े हैं।
इस पर चीफ जस्टिस ने कहा कि कौन कह रहा है कि जमीनें बेच दी जाएगी। इसके जवाब में एमएल शर्मा ने कहा कि अगर एक बार किसान कॉरपोरेट हाउस से समझौता करता है तो उसे शर्तों के मुताबिक उत्पाद पैदा करना होगा, नहीं तो उसे हर्जाना देना होगा। एमएल शर्मा ने कहा कि किसान कमेटी के सामने पेश नहीं होना चाहते हैं। चीफ जस्टिस ने कहा कि ये किसने कहा कि जमीन बिक जाएगी, किसी भी किसान की जमीन नहीं बिकेगी। हम समस्या का समाधान चाहते हैं। सीजेआई ने कहा कि हमारे पास निहित अधिकारों के तहत हम कानून को सस्पेंड भी कर सकते हैं। सीजेआई ने कहा कमिटी हम अपने लिए बना रहे है। किसी को खुश करने के लिए नहीं बना रहे हैं। कमिटी हमें रिपोर्ट देगी। कमिटी के समक्ष कोई भी जा सकता है।
ये कोई राजनीति नहीं है- मुख्य न्यायाधीश ने किसानों की ओर से पेश वकील को कहा कि आप कोर्ट को सपोर्ट करें। कोर्ट ने कहा कि ये कोई राजनीति नही है। हम समस्या का समाधान चाहते है। हम जमीनी हकीकत जानने के लिए कमिटी का गठन चाहते हैं।
सीजेआई ने कहा कि किसानों के वकील दुष्यंत दवे ने साफ साफ कहा कि किसान 26 जनवरी को ट्रैक्टर रैली नही निकालेंगे। अगर किसान सरकार के समक्ष जा सकते हैं तो कमिटी के समक्ष क्यों नहीं जा सकते?
मुख्य न्यायाधीश एस ए बोबड़े ने कहा कि अगर किसान समस्या का समाधान चाहते है तो हम ये नही सुनना चाहते हैं कि किसान कमिटी के समक्ष पेश नहीं होंगे। इस पर वकील एम एल शर्मा ने कहा कि पीएम मोदी अब तक किसानों से बात करने आगे नहीं आए। इस पर सॉलिसिटर जनरल ने कहा कि कृषिमंत्री और सरकार के अन्य सीनियर मंत्री किसानों से आठ दौर की बातचीत में शामिल हो चुके हैं। मुख्य न्यायाधीश ने कहा कि अगर बिना किसी हल के आपको सिर्फ प्रदर्शन करना है तो आप अनिश्चितकाल तक प्रदर्शन करते रहिए उससे हल नही निकलेगा। हम हल निकालने के लिए ही कमेटी बनाना चाहते हैं। हम कमेटी बनाने जा रहे हैं। कमेटी इस पूरी न्यायिक प्रक्रिया का हिस्सा रहेगी।
सुनवाई के दौरान किसान संगठन (भानु) के वकील एपी सिंह ने कहा कि किसानों को कॉन्फिडेंस में लेना होगा। उन्होंने कहा कि आपका संदेश हमने अपने मुवक्किल संगठनों को पहुंचा दिया है। उन्होंने कहा कि बुजुर्ग, महिलाएं और बच्चे चिल्ला सहित यूपी बॉर्डर पर हो रहे प्रदर्शन में शामिल नहीं होंगे। अब तक धरने प्रदर्शन में 65 किसानों की मृत्यु हो चुकी है। सीजेआई ने कहा हम आपकी बात को रिकॉर्ड पर रख रहे हैं जिसमें आप कह रहे है कि धरने में महिलाएं, बच्चे और बुजुर्ग शामिल नही होंगे।
मामले की सुनवाई के दौरान वरिष्ठ वकील हरीश साल्वे ने कहा कि ये सुनिश्चित होना चाहिए कि 26 जनवरी को कुछ नहीं होगा। साल्वे ने कहा कि सिख फॉर जस्टिस का प्रदर्शन में शामिल होना चिंता की बात है क्योंकि ये संगठन खालिस्तान की मांग करता है।
इस बीच याचिकाकर्ता विकास सिंह ने कहा कि प्रदर्शन में सोशल डिस्टेंसिंग का पालन नही हो रहा है, प्रदर्शनकारियों को एक बड़ा इलाका दिया जाए ताकि वो विजिबल हो। इसके लिए रामलीला मैदान का नाम सुझाया गया।
सीजेआई ने पूछा क्या किसी संगठन ने दिल्ली के राम लीला मैदान में प्रदर्शन की इजाजत मांगी थी? विकास सिंह ने कहा कि पुलिस ने उन्हें दिल्ली में आने की इजाजत नही दी। सीजेआई ने कहा कि हमें नहीं पता लेकिन प्रदर्शन के लिए पहले अर्जी देनी होती है और फिर पुलिस नियम और शर्तें लगाकर इसकी इजाजत देती है।
मुख्य न्यायाधीश ने कहा कि हम अपने आदेश में यह लिख सकते हैं कि किसी किसान की जमीन नहीं ली जाएगी। सुनवाई के दौरान वरिष्ठ वकील नरसिम्हन ने कहा कि एक प्रतिबंधित संगठन भी इस आंदोलन को समर्थन कर रहा है। इस पर कोर्ट ने एजी से पूछा क्या आप इसके बारे में जानते हैं? एजी ने कहा कि मेरी जानकारी के मुताबिक एक प्रतिबंधित संगठन है जो आंदोलनकारियों को भटकाने में मदद कर रहा है। करनाल में जो घटना हुई ये उसी का एक उदाहरण है। बहरहाल, सुप्रीम कोर्ट ने जो रास्ता किसान आंदोलन के समाधान का दिखाया है, किसानों को उस पर चलकर ही न्याय मिलेगा। (हिफी)